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सियासत के जरिये हुआ है धमाका
जुबां बंद करिये हुआ है धमाका
किसे फ़िक्र है अब लहू फिर बहेगा
कि वहशत बजरिये हुआ है धमाका
कहाँ शांति रहती है सरहद पे यारों
ज़रा आँख भरिये हुआ है धमाका
है जाना जरूरी चले जाइयेगा
तनिक तो ठहरिये हुआ है धमाका
बड़ी देर से आप चश्मेकफस में
कि आहिस्ता ढरिये हुआ है धमाका
नहीं खून का खेल गर खेल सकते
तो बेमौत मरिये हुआ है धमाका
धमाकों से गर यूँ ही डरते रहेंगे
तो बेखौफ़ डरिये हुआ है धमाका
मिटेगी यकीनन धमाके की दहशत
अभी धीर धरिये हुआ है धमाका
नयी राह चलिये नजरिये बदलिये
कि अब तो सुधरिये हुआ है धमाका
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
हाँ सादर समर कबीर साहिब , अब जरीया हमेशा याद रहेगा . आभार .
आ० अनुज , बहुत बहुत आभार
अदरणीय बड़े भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने ,दिली बधाइयाँ प्रेषित है स्वीकार कीजिये ।
आ० मिथिलेश जी . बहुत बहुत आभार . समर कबीर साहिब की बात मैं सदैव गंभीरता से लेता हूँ . सादर .
आ० सुरेन्द्र जी , आभार .
आ० समर कबीर साहिब , जरीया मुझे पता नहीं था पर हिन्दी शब्दकोष में में जरिया शब्द स्वीकृत है और गजल में इसे संशोधित कर पाना अब संभव नहीं है . तकाबुले -ए- रदीफैन मैंने अपने संग्रह में सही कर लिया है . बेख़ौफ़ दरिये व्यंगात्मक है और विरोधाबास नामक अंगरेजी अलंकार से अनुप्राणित है . पर आपकी सम्मति सर्वोपरि है . सादर .
आ० आरिफ जी , बहुत बहुत आभार
आदरणीय गोपाल सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. आदरणीय समर कबीर जी की बातों पर गौर कीजियेगा. सादर
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