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दिल जिन्हें ढूंढे, वो हालात कहाँ

खाली दिल में वो है जज्बात कहाँ

बस एक रस्म निभा देते हैं

अब वो पहले सी मुलाक़ात कहाँ

लॉन शहरों में खूबसूरत हैं

गांव की उसमें मगर बात कहाँ

वक़्त बस यूँ ही गुजर जाता है

अब वो दिन और अब वो रात कहाँ

कभी शामिल थे जिनकी हर शै में

उनके अब ऐसे, खयालात कहाँ !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 5, 2017 at 10:12am

बहुत बहुत आभार आ मोहतरम समर कबीर साहब, सुधार कर देता हूँ| गजल कहना मुझे बहुत कठिन लगता है, दरअसल इसकी तकनीकी जानकारी से वाकिफ नहीं हूँ मैं| बहरहाल आपने कहा है तो प्रयास करूंगा, धन्यवाद आपका 

Comment by Samar kabeer on August 4, 2017 at 6:29pm
जनाब विनय कुमार जी आदाब,गीत का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
तीसरी पंक्ति में 'रश्म' को "रस्म" कर लें ।
आपका गीत ग़ज़ल से बहुत क़रीब है, आप थोड़ी कोशिश करें तो ग़ज़ल कह सकते हैं ।

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