For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जैसे ही वह ऑफिस से लौटी एक बार फिर वही नज़ारा उसके आँखों के सामने था| कितना भी समझा ले, न तो बेटा समझता था और न ही बाप, दोनों अपने आप को ही समझदार मानते थे| उसके घर में घुसते ही कुछ पल के लिए दोनों खामोश हो गए और उसकी तरफ फीकी मुस्कान फेंकते हुए देखने लगे|

"कब समझोगे तुम विक्की, मान क्यों नहीं लेते कि वह तुमसे ज्यादा समझते हैं| आखिर पिता हैं तुम्हारे, तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है उन्होंने", कहते हुए बैग उसने टेबल पर रखा और सोफे पर अधलेटी हो गयी| राजन ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा, अक्सर तो इसके विपरीत ही होता था, आज ऐसा क्या हो गया|

तब तक विक्की बोल पड़ा "उम्र या अनुभव ज्यादा होने से अगर व्यक्ति समझदार होता तो अपना माली काका हम सबसे समझदार होता माँ"| बात बहुत तीखी थी और उसके दिल पर लग गयी| लेकिन उसने इसको नज़रअंदाज करते हुए कहा "तुलना करते समय लोगों की परिस्थिति और उनके बौद्धिक स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिए विक्की"|

"यही तो मैं भी कहता हूँ, पापा जब तब अपने दोस्तों के बेटों से मेरी तुलना करते रहते हैं| मैं उनकी तरह एम बी ए करके इनके बिज़नेस में लग गया होता तो इनकी नज़र में मैं बेहतर होता", विक्की ने अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा|

"तो क्या तुम ही समाज सुधार का काम करने के लिए पैदा हुए हो| जब पेट भरा हो तो मुँह से ऐसी बातें खूब निकलती हैं, दो निवाले के लिए तरसते तब समझ में आता", राजन का लहज़ा भी बहुत तल्ख़ हो गया था| विक्की ने एक बार उसकी तरफ देखा, वह सोच नहीं पा रही थी कि अब किसे समझाए|

विक्की अपने पिता की तरफ मुड़ा और बेहद संयत स्वर में बोला "आप जो सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है पिताजी| मैं भी अगर निवाले को तरस रहा होता तो यह सब सोच भी नहीं पाता, भरे हुए पेट से जब मैं उन भूखे लोगों के बीच में जाता हूँ तो उनको बेहतर समझ पाता हूँ, आप नहीं समझेंगे"|

उसके राजन की तरफ देखा, राजन भी शायद समझ रहे थे लेकिन उनका पिता भाव उनको यह मान लेने से रोकता था| वह सोफे से उठी, राजन की तरफ मुस्कुरा कर देखा और विक्की के सर पर हाथ फेरते हुए किचन की तरफ बढ़ गयी|

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on September 25, 2017 at 10:04am

बहुत बहुत आभार आ सुरेन्द्र नाथ सिंह कुश्क्षत्रप जी 

Comment by विनय कुमार on September 25, 2017 at 10:03am

बहुत बहुत आभार आ शेख शहजाद जी इस टिप्पणी के लिए 

Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2017 at 4:59am
विनय जी उम्दा कहानी का प्रयास,अच्छा लगा पढ़ के, बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2017 at 1:14am
// भरे हुए पेट से जब मैं उन भूखे लोगों के बीच में जाता हूँ तो उनको बेहतर समझ पाता हूँ, आप नहीं समझेंगे"|// .. बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। पात्रों के नामों वाले कुछ वाक्यों/वाक्यांशों में थोड़ी अस्पष्टता लग रही है मुझे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service