For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल जिन्हें ढूंढे, वो हालात कहाँ

खाली दिल में वो है जज्बात कहाँ

बस एक रस्म निभा देते हैं

अब वो पहले सी मुलाक़ात कहाँ

लॉन शहरों में खूबसूरत हैं

गांव की उसमें मगर बात कहाँ

वक़्त बस यूँ ही गुजर जाता है

अब वो दिन और अब वो रात कहाँ

कभी शामिल थे जिनकी हर शै में

उनके अब ऐसे, खयालात कहाँ !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 746

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on August 5, 2017 at 6:08pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, बिलकुल प्रयास रहेगा 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2017 at 5:53pm

आ० विनय जी . हिंदी के लिहाज से यह  गीत नहीं है . आ० समर कबीर साहिब ने ठीक कहा यह गजल की तरह कही गयी  है , उम्मीद है अगली  बार मुकम्मिल गजल से मुलाकात होगी . सादर .

Comment by विनय कुमार on August 5, 2017 at 2:38pm

बेहद शुक्रिया आ मोहतरम समर कबीर साहब, धन्यवाद इस सुझाव के लिए| आशा है आगे भी आप मार्गदर्शित करते रहेंगे 

Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 2:25pm
आपकी फ़रमाइश जनाब तस्दीक़ साहिब ने पूरी कर दी है,बस ये शैर यूँ करलें :-
'पारकें शहरों की सुंदर हैं बहुत
गांव सी उनमें मगर बात कहाँ'
इसमें 'पारकें'शब्द अच्छा नहीं लग रहा इसे यूँ होना चाहिए:-
"बाग़ शहरों में भी सुंदर हैं बहुत
गांव सी उनमें मगर बात कहाँ'
Comment by विनय कुमार on August 5, 2017 at 2:04pm

बहुत बहुत आभार आ गजेन्द्र श्रोतीय जी 

Comment by विनय कुमार on August 5, 2017 at 2:04pm

आ मोहतरम तसदीक़ अहमद ख़ान साहब, बहुत बहुत धन्यवाद आपका, मेरी रचना पर इतनी मेहनत करने के लिए| अब यह एक मुकम्मल गज़ल बन गयी है तो इसको रख लेते हैं| शुक्रिया आपका 

Comment by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 1:06pm
आ० विनयकुमार जी आप अपने बेशकीमती खयालों को गीत गजल जो चाहे रुप दे सकते हैं। ओबीओ इसके लिए बेहतरीन माध्यम है। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 5, 2017 at 12:30pm
जनाब विनय कुमार साहिब ,ग़ज़ल जैसी ही गीत की अच्छी कोशिश हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें। आपके गीत को ग़ज़ल बनाने की कोशिश की है ,सही लगें तो रख लीजियेगा।
उनसे मिलने के हैं हालात कहाँ।
मेरे क़ाबू में हैं जज़्बात कहाँ।
रस्म मिलने की निभाते हैं सभी
अब वह पहले सी मुलाक़ात कहाँ।
पारकेँ शहरों की सुन्दर हैं बहुत
गावं सी उन में मगर बात कहां।
वक़्त तो यूँ ही गुज़र जाता है
अब वो दिन हैं कहाँ वह रात कहाँ।
जो मिलाते थे कभी हाँ में हाँ
उनके अब ऐसे ख़यालात कहाँ।
Comment by विनय कुमार on August 5, 2017 at 10:59am

शुक्रिया आ मोहतरम समर कबीर साहब, क्या मैं आपसे इस गीत को गज़ल में बदलने की गुजारिश कर सकता हूँ|

Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 10:37am
ग़ज़ल के बारे में पटल पर आलेख मौजूद हैं,उनका अध्यन करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
8 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service