दिल जिन्हें ढूंढे, वो हालात कहाँ
खाली दिल में वो है जज्बात कहाँ
बस एक रस्म निभा देते हैं
अब वो पहले सी मुलाक़ात कहाँ
लॉन शहरों में खूबसूरत हैं
गांव की उसमें मगर बात कहाँ
वक़्त बस यूँ ही गुजर जाता है
अब वो दिन और अब वो रात कहाँ
कभी शामिल थे जिनकी हर शै में
उनके अब ऐसे, खयालात कहाँ !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, बिलकुल प्रयास रहेगा
आ० विनय जी . हिंदी के लिहाज से यह गीत नहीं है . आ० समर कबीर साहिब ने ठीक कहा यह गजल की तरह कही गयी है , उम्मीद है अगली बार मुकम्मिल गजल से मुलाकात होगी . सादर .
बेहद शुक्रिया आ मोहतरम समर कबीर साहब, धन्यवाद इस सुझाव के लिए| आशा है आगे भी आप मार्गदर्शित करते रहेंगे
बहुत बहुत आभार आ गजेन्द्र श्रोतीय जी
आ मोहतरम तसदीक़ अहमद ख़ान साहब, बहुत बहुत धन्यवाद आपका, मेरी रचना पर इतनी मेहनत करने के लिए| अब यह एक मुकम्मल गज़ल बन गयी है तो इसको रख लेते हैं| शुक्रिया आपका
शुक्रिया आ मोहतरम समर कबीर साहब, क्या मैं आपसे इस गीत को गज़ल में बदलने की गुजारिश कर सकता हूँ|
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