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मन में ही हार, जीत मन में..

मन में ही हार, जीत मन में,
मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,
लेखनी बदल दे मनोभाव,
तो समझो सत्य, समर्थ लिखा !

यदि प्रेम प्रस्फुटित हो मन में,
अनुराग परस्पर संचित हो,
नि:स्वार्थ भावना हो शाश्वत,
कोई भी नहीं अपवंचित हो,
जब हो समाज में रामराज्य,
तो समझो सार्थक अर्थ लिखा !

यदि छद्म भेष, छल दम्भ द्वेष,
मानव में ही घर कर जाये,
यदि राम कृष्ण की जन्मभूमि,
पर मानवता ही मर जाये,
यदि मन मलीन हो, जड़वत हो,
तो लगा, कदाचित् व्यर्थ लिखा !

मन में ही हार, जीत मन में,
मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,
लेखनी बदल दे मनोभाव,
तो समझो सत्य, समर्थ लिखा !

अजय शर्मा " अज्ञात "
मौलिक एवं अप्रकाशित.

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Comment

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Comment by Samar kabeer on August 10, 2018 at 2:06pm

जनाब अजय कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 10, 2018 at 11:20am
कोई भी नहीं अपवंचित हो,------- एक मात्रा अधिक
तब कोई क्यों अपवंचित हो , आ० --------------कविता बहुत ही अच्छी है भावपूर्ण, अर्थपूर्ण और शिक्षाप्रद , बधाई .

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