For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास

2×16

अशआर की आंखें खुलती है, जब सारा आलम सोता है।
मेरे कमरे में रात गए तंजीम का मौसम होता है।

तकदीर के हाथों सौंप दिया जब तूने मुझे महबूब मेरे,
मेरी हालत को सुनकर क्यों अब तन्हाई में रोता है।

खुशियों से गम का रिश्ता जग में ऐसा लगता है हमको,
कोई हाथों में रसगुल्लें देकर पीठ में कील चुभोता है।

मैंने तो सदा चाहा है यही इस गम को रिहा कर दूं खुद से,
हर और शिकारी बैठा है और ये पिंजरे का तोता है

उसकी मेहनत का फल उसको जाने क्यों देर से मिलता है,
जो सपनों को आंखों में भर खेतों में पसीना होता है।

गुटखे की महक से उसके पिता के होंठ नहीं थकते हैं कभी
पर एक अदद कॉपी के लिए वो व्याकुल बच्चा रोता है

धो लेते हैं हम भी मन अपना वो खाक हुए जज्बात उठा,
जैसे कोई धोबी गंदे पानी में कपड़े धोता है ।

बच्चे आखिर में आपस में उस दौलत पर लड़ जाते हैं,
जिसकी खातिर इक बाप जमाने भर का कचरा ढोता है।

ऐसे ही नहीं खींच पाए हैं यें दर्द के नक्शे कागज पर ,
'अहसास' की मिट्टी को हमने यादों के फल से जोता है।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 510

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on January 28, 2020 at 4:57pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार मैं इस गजल पर दोबारा काम करूंगा क्योंकि इसमें कई गलतियां दिख गई हैं श्री सुरेंद्र जी की बात पर पूरा ध्यान देने की कोशिश करूंगा आशीर्वाद बनाए रखें सादर आभार

Comment by Samar kabeer on January 21, 2020 at 9:08pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,लगता है ये ग़ज़ल आपने जल्द बाज़ी में कही है ।

'मेरे कमरे में रात गए तंजीम का मौसम होता है'

इस मिसरे में 'तंजीम' का क्या अर्थ लिया है आपने?

'कोई हाथों में रसगुल्लें देकर पीठ में कील चुभोता है'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

'उसकी मेहनत का फल उसको जाने क्यों देर से मिलता है,
जो सपनों को आंखों में भर खेतों में पसीना होता है'

इस शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़' कुल्ली का दोष है ।

'धो लेते हैं हम भी मन अपना वो खाक हुए जज्बात उठा'

इस मिसरे का कथ्य स्पष्ट नहीं है ।

'बच्चे आखिर में आपस में उस दौलत पर लड़ जाते हैं'

इस मिसरे में 'में' शब्द दो बार मिसरे को कमज़ोर कर रहा है ।

'ऐसे ही नहीं खींच पाए हैं यें दर्द के नक्शे कागज पर'

इस मिसरे की लय बाधित है ।

इस बह्र के बारे में पहले भी आपको समझाइश दे चुका हूँ ।

जनाब सुरेन्द्र जी की बात से सहमत हूँ ।

Comment by मनोज अहसास on January 21, 2020 at 7:24pm

मैं भी प्रयास करूंगा मित्र

Comment by नाथ सोनांचली on January 21, 2020 at 7:40am

आद0 मनोज जी,, समय तो शायद हम सभी के पास नहीं है मित्र। बस इसी भागमभाग में साहित्य रस लेने की महत्वाकांक्षा हमें दुसरो की रचनाओं पर बरबस खीच लाती है। कल्पना कीजिये आपने रचना डाली और कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली,, तो कैसा अनुभव होगा। प्रतिक्रियाएँ हम साहित्यकारों के लिए संजीवनी होती है। अब रही बात योग्य सुयोग्य कि तो मैं भी उस के लायक खुद को नहीं समझता पर आप सबकी रचनाओं पर अपनी समझ के हिसाब से उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करता ही रहता हूँ।

Comment by मनोज अहसास on January 20, 2020 at 10:06pm

उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शुक्रिया आदरणीय मित्र आपने ठीक कहा मैंने रचना पर प्रतिक्रिया कम ही दे पाता हूं दरअसल मैं थोड़ा सा व्यस्त ज्यादा रहता हूं इसलिए प्रतिक्रिया नहीं दे पाता दूसरी बात यह है कि मैं अभी स्वयं ही सीख रहा हूं तो किसी दूसरे की रचनाओं में कोई त्रुटि बता पाना भी मेरे लिए संभव नहीं है सादर अभिवादन

Comment by नाथ सोनांचली on January 20, 2020 at 2:48pm

आद0 मनोज अहसास जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने,, बधाई स्वीकार कीजिये। एक निवेदन है, समयानुकूल और लोगों की रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया दिया करें। सीखने सिखाने को मिलेगा। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service