For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हौंसलों का पंछी-1

हौसलों का पंछी(कहानी,सोमेश कुमार )

“हवा भी साथ देगी देख हौसला मेरा

मैं परिंदा ऊँचे आसमान का हूँ |”

कुछ ऐसे ही ख्यालों से लबरेज़ था उनसे बात करने के बाद |ये उनसे दूसरी मुलाकात थी|पहली मुलाक़ात दर्शन मात्र थी |सो जैसे ही बनारस कैंट उतरा तेज़ कदमों से कैंट बस डिपो के निकट स्थित उनके कोलड्रिंक के ठेले पर जा पहुँचा |जाने कौन सी प्रेणना थी कि 4 घंटे की विलंब यात्रा और बदन-तोड़ थकावट के बावजूद मैंने उनसे मिलने का प्रण नहीं छोड़ा |

“दादा,एक छोटा कोलड्रिंक दीजिए|” मैंने उनसे कहा

“कौन वाला ?” उन्होंने मुझे देखते हुए पूछा

“स्प्राईट या कोक |”

सॉफ्ट-ड्रिंक खत्म करके मैं उन्हें पैसे चुकाता हूँ और वहीं खड़ा रहता हूँ |वे आईस-बॉक्स में कुछ और बोतले ठंडी होने को डाल सीधे होते हैं |

“दादा,आप बिशनपुरा गाँव से हैं ?” मैं उनकी व्यस्तता में खलल डालते हुए पूछता हूँ |

“तुम किस गाँव के - - - - और मुझे कैसे ?”उन्होंने चौकते हुए कहा

“मेरे बड़े भैया आपके गाँव में ब्याहे हैं |”

“किसके घर ?”अब वो और चौकते हैं |

जवाब सुनकर वो पैसे की डिब्बी खोलते हैं और नाराजगी से मेरी तरफ देखते हुए पैसे लौटाते हुए बोलते हैं-धोखा करते हो |पहले नहीं बताना था कि आप पवन सिंह के सम्बन्धी हैं |

“क्षमा करें,दादा,मैं पैसे वापस नहीं लूँगा |”

“तो क्या मैं इतना दीन हो गया हूँ कि घर आए बेटी-दामाद से पैसे लूँ ?नहीं-नहीं,तुम्हें पैसे वापस लेने होंगे |”उस समय उनकी आवाज़ में आत्मीयता और बेबसी दोने प्रकट थी |

“दादा,मैं आपसे मिलने आया हूँ |आप से बात करने |आपको जानने और अगर आप मुझसे जिद्द करेंगे तो मुझे निराश होकर वापस जाना होगा |” मैंने अपनी सफ़ाई रखते हुए कहा

“मैं तुम्हारे ससुर जैसा हूँ और तुम हो कि - - - - - “ निराश होते हुए कहते हैं |

“आपका स्नेहभाव ही मुझे आप तक ले आया है |दो सप्ताह पहले जब मैं आया था तो उसी कार में बैठा था जिसमें भाभी थीं |वहीं से आपके बारे में सुना था और तभी से मिलने की इच्छा थी |”

“मैंने ऐसा क्या किया कि तुम - - -?”

“मई की तेज़ धूप में आप सॉफ्ट-ड्रिंक बेचकर कुछ पैसे कमाते हैं |हम लोग ए.सी. गाड़ी में बैठे थे |उसके बावजूद आप ने सॉफ्ट-ड्रिंक के पैसे नहीं लिए |”

“तो तुम अहसान उतारने आए हो !”उनके चेहरे पर बेबसी और घृणा का मिश्रित भाव था |

“ऐसा नहीं है,भगवान की दया और आपके आशीर्वाद से दिल्ली में अच्छी नौकरी पर हूँ |ये कहीं से अच्छा नहीं लगता कि परिचय के नाम पर मैं आपसे ठगी करूं |आप दिन भर एक-पैर खड़े होकर कमाएँ और मैं आपसे मेहमान –नवाजी कराऊँ |”

“पाहून तो भगवान होता है |और सब उसी का दिया तो है बाकि दस-बीस रुपया से क्या बरक्कत या कमी होगी |सब उसका ही खेला है |कब राजा बना दे |कब भिखारी कर दे |”

“ आपकी इसी सहृदयता देखकर और जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में सुनकर तो भीतर से आपसे मिलने की इच्छा हुई |”

“बैठो |”कुर्सी मेरी तरफ बढ़ाते हैं

“नहीं,आप उस पर बैठें |मैं बाक्स पर बैठ जाता हूँ |”

“मैंने जिस पर सबसे ज़्यादा यकीन किया | उसी ने मुझे खोखला कर दिया |मैंने जिसे रेस का घोड़ा समझा उसी ने - - - -“ गहरी साँस लेते हुए कहते हैं

उ बड़का पेप्सी कितने का है|ग्राहक के सम्बोधन पर वो उसमें व्यस्त हो जाते हैं |जब वो फ्री होते हैं तो मैं फिर योजक जोड़ता हूँ |

“सुना है कि आपके भाईयों ने ही छल किया ?”

“भाईयों नही,भाई |कई बार मालूम नहीं चलता कि मसहरी(चारपाई )का कौन सा गोड़ा खोखला हो चला है |बस एक दिन अचानक से हि सब तल-विचल हो जाता है |” ये हताशा और निराशा से भरी आवाज़ थी |

“क्या उसने सब कुछ हड़प लिया ?आप को ये सब कब पता लगा ?”

“सब कुछ नहीं पर बहुत कुछ |पैसा तो इतना माने नहीं रखता |आज है कल नहीं |पर ईज्जत-मर्यादा सब पोछ दिया साला !- - - - - - - -- -दो साल पहले बलदेव(मझले भाई) से जो उस तरफ रेहड़ी लगाए है उसका झगड़ा हुआ तो प्रकाश(सबसे छोटा भाई)ईशारा दिया कि सब बर्बाद हो जाएगा |पर ये बात पिछले साल समझ आई जब उसने बाकि की दोनों बस बेचने और घर से अलग होने की घोषणा की |रीना(मझले भाई की बेटी) की शादी और सब लेन-देन तय था |ऐन मौक़ा पर बोला कि आर्थिक हालात अच्छे नहीं है इसलिए मन्दिर से शादी कर देते हैं और सामान में भी कटौती कर देते हैं |सा s ला !आस्तीन का साँप |”

“तो आप ने क्या किया ?”

“मझला भी उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाने लगा |पर,मैंने मझले को कह दिया कि खानदान के नाम को ऐसे नहीं मिटने देंगे |शादी वैसे ही होगी जैसे तय है चाहे मुझे खुद को गिरवी रखना पड़े |”

“फिर ? ”

“हिम्मते बंदे मददे खुदा |मेरे बैंक में जो कुछ था वो सब भजवा लिया और जमीन का एक टुकड़ा भी गिरवी रख दिया |अब लगे हैं दोनों भाई उसी को छुटाने की जुगत में |” माथे का पसीना पोछते हुए बोले

“उस छोटे वाले ने कोई मदद नहीं की ?”

“चूहे का क्या काम है !- - - - - -वो पैरों के नीचे की मिट्टी खोदेगा और तुम्हारा अन्न-धन बर्बाद करेगा |वो दोनों मिया-बीबी उस वक्त कलकत्ता चले गए |शादी में भी शरीक नहीं हुए |”

“और गाड़ियों वाला मसला वो कैसे सुलझा ?” मैंने पूछा

“कहने लगा कि बसें उसके नाम से है |उसका ही हक़ बनता है |वो चाहे बेचे या चाहे रखे |”

“आप लोगो ने क्या किया ?”

“मझला तो थाना-पुलिस-कचहरी सबको तैयार था |पर मैंने ही मना कर दिया |घर की इज्जत भी उछले और कौड़ी भी ना मिले |”

“प्रकाशजी ने खुद कुछ नहीं दिया |”

“वो साss ला देता भी तो क्या हम लेते ?सारी ज़िन्दगी हम कमाकर खिलाएँ हैं |और उनकी भीख लेते |वो थोड़ा बिमारी ने कमज़ोर कर दिया वरना अभी भी सारे घर को हमी चला रहे हैं |”

“मतलब अभी गाँव में आप और मझले दादा साँझे में हैं |”

“हाँ |”

तभी ग्राहक जोड़ा आता है |पुरुष एक लीटर की ठंडी मिरिंडा माँगता है |मैं बाक्स से खड़ा हो जाता हूँ|वो बाक्स में बोतल टटोलने लगते हैं |महिला उनकी कुर्सी अपनी तरफ खींचकर उस पर आसीन हो जाती है |फिर उनकी तरफ पानी की बोतल दिखाते हुए पूछती है –पीने का पानी मिलेगा |

पति जर्दा की तलब में पान-दुकान की तरफ बढ़ जाता है |

दादा पास खड़े जलजीरा वाले की तरफ ईशारा करते हैं |

“तुहि ला दा,पता ना हमके देई का ना देई |”

“उसे मेरा नाम बता देना |” दादा उसे देखते हुए बोलते हैं |

“नाहि,आपही ला देईं |” इस बार औरत का स्वर कुछ नर्म था

वो आवाज़ लगाकर जलजीरे वाले से पानी लाने को कहते हैं |महिला पानी पीकर बैठी रहती है|पति सॉफ्ट-ड्रिंक का दाम सुनकर –“ये तो लिखे से ज़्यादा है |”

“बाहर वाला ले लो लिखे पर दे देंगे |ठंडा करने का खर्च अलग लगता है |”

पति-पत्नी को चलने का ईशारा करता है |कुर्सी खाली होने पर मुझे बैठने का ईशारा करते हैं |मेरी झेंप समझकर वो जलजीरे वारे को फिर पुकारते हैं-‘जरा बलदेव से एक कुर्सी ले आवा |’                                                                                   क्रमशः                           

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2015 at 1:23pm

सोमेश भाई

कथ्य खुल कर आरहा है . बढ़िया लगा .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
28 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
30 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
32 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service