हौसलों का पंछी(कहानी,सोमेश कुमार )
“हवा भी साथ देगी देख हौसला मेरा
मैं परिंदा ऊँचे आसमान का हूँ |”
कुछ ऐसे ही ख्यालों से लबरेज़ था उनसे बात करने के बाद |ये उनसे दूसरी मुलाकात थी|पहली मुलाक़ात दर्शन मात्र थी |सो जैसे ही बनारस कैंट उतरा तेज़ कदमों से कैंट बस डिपो के निकट स्थित उनके कोलड्रिंक के ठेले पर जा पहुँचा |जाने कौन सी प्रेणना थी कि 4 घंटे की विलंब यात्रा और बदन-तोड़ थकावट के बावजूद मैंने उनसे मिलने का प्रण नहीं छोड़ा |
“दादा,एक छोटा कोलड्रिंक दीजिए|” मैंने उनसे कहा
“कौन वाला ?” उन्होंने मुझे देखते हुए पूछा
“स्प्राईट या कोक |”
सॉफ्ट-ड्रिंक खत्म करके मैं उन्हें पैसे चुकाता हूँ और वहीं खड़ा रहता हूँ |वे आईस-बॉक्स में कुछ और बोतले ठंडी होने को डाल सीधे होते हैं |
“दादा,आप बिशनपुरा गाँव से हैं ?” मैं उनकी व्यस्तता में खलल डालते हुए पूछता हूँ |
“तुम किस गाँव के - - - - और मुझे कैसे ?”उन्होंने चौकते हुए कहा
“मेरे बड़े भैया आपके गाँव में ब्याहे हैं |”
“किसके घर ?”अब वो और चौकते हैं |
जवाब सुनकर वो पैसे की डिब्बी खोलते हैं और नाराजगी से मेरी तरफ देखते हुए पैसे लौटाते हुए बोलते हैं-धोखा करते हो |पहले नहीं बताना था कि आप पवन सिंह के सम्बन्धी हैं |
“क्षमा करें,दादा,मैं पैसे वापस नहीं लूँगा |”
“तो क्या मैं इतना दीन हो गया हूँ कि घर आए बेटी-दामाद से पैसे लूँ ?नहीं-नहीं,तुम्हें पैसे वापस लेने होंगे |”उस समय उनकी आवाज़ में आत्मीयता और बेबसी दोने प्रकट थी |
“दादा,मैं आपसे मिलने आया हूँ |आप से बात करने |आपको जानने और अगर आप मुझसे जिद्द करेंगे तो मुझे निराश होकर वापस जाना होगा |” मैंने अपनी सफ़ाई रखते हुए कहा
“मैं तुम्हारे ससुर जैसा हूँ और तुम हो कि - - - - - “ निराश होते हुए कहते हैं |
“आपका स्नेहभाव ही मुझे आप तक ले आया है |दो सप्ताह पहले जब मैं आया था तो उसी कार में बैठा था जिसमें भाभी थीं |वहीं से आपके बारे में सुना था और तभी से मिलने की इच्छा थी |”
“मैंने ऐसा क्या किया कि तुम - - -?”
“मई की तेज़ धूप में आप सॉफ्ट-ड्रिंक बेचकर कुछ पैसे कमाते हैं |हम लोग ए.सी. गाड़ी में बैठे थे |उसके बावजूद आप ने सॉफ्ट-ड्रिंक के पैसे नहीं लिए |”
“तो तुम अहसान उतारने आए हो !”उनके चेहरे पर बेबसी और घृणा का मिश्रित भाव था |
“ऐसा नहीं है,भगवान की दया और आपके आशीर्वाद से दिल्ली में अच्छी नौकरी पर हूँ |ये कहीं से अच्छा नहीं लगता कि परिचय के नाम पर मैं आपसे ठगी करूं |आप दिन भर एक-पैर खड़े होकर कमाएँ और मैं आपसे मेहमान –नवाजी कराऊँ |”
“पाहून तो भगवान होता है |और सब उसी का दिया तो है बाकि दस-बीस रुपया से क्या बरक्कत या कमी होगी |सब उसका ही खेला है |कब राजा बना दे |कब भिखारी कर दे |”
“ आपकी इसी सहृदयता देखकर और जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में सुनकर तो भीतर से आपसे मिलने की इच्छा हुई |”
“बैठो |”कुर्सी मेरी तरफ बढ़ाते हैं
“नहीं,आप उस पर बैठें |मैं बाक्स पर बैठ जाता हूँ |”
“मैंने जिस पर सबसे ज़्यादा यकीन किया | उसी ने मुझे खोखला कर दिया |मैंने जिसे रेस का घोड़ा समझा उसी ने - - - -“ गहरी साँस लेते हुए कहते हैं
उ बड़का पेप्सी कितने का है|ग्राहक के सम्बोधन पर वो उसमें व्यस्त हो जाते हैं |जब वो फ्री होते हैं तो मैं फिर योजक जोड़ता हूँ |
“सुना है कि आपके भाईयों ने ही छल किया ?”
“भाईयों नही,भाई |कई बार मालूम नहीं चलता कि मसहरी(चारपाई )का कौन सा गोड़ा खोखला हो चला है |बस एक दिन अचानक से हि सब तल-विचल हो जाता है |” ये हताशा और निराशा से भरी आवाज़ थी |
“क्या उसने सब कुछ हड़प लिया ?आप को ये सब कब पता लगा ?”
“सब कुछ नहीं पर बहुत कुछ |पैसा तो इतना माने नहीं रखता |आज है कल नहीं |पर ईज्जत-मर्यादा सब पोछ दिया साला !- - - - - - - -- -दो साल पहले बलदेव(मझले भाई) से जो उस तरफ रेहड़ी लगाए है उसका झगड़ा हुआ तो प्रकाश(सबसे छोटा भाई)ईशारा दिया कि सब बर्बाद हो जाएगा |पर ये बात पिछले साल समझ आई जब उसने बाकि की दोनों बस बेचने और घर से अलग होने की घोषणा की |रीना(मझले भाई की बेटी) की शादी और सब लेन-देन तय था |ऐन मौक़ा पर बोला कि आर्थिक हालात अच्छे नहीं है इसलिए मन्दिर से शादी कर देते हैं और सामान में भी कटौती कर देते हैं |सा s ला !आस्तीन का साँप |”
“तो आप ने क्या किया ?”
“मझला भी उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाने लगा |पर,मैंने मझले को कह दिया कि खानदान के नाम को ऐसे नहीं मिटने देंगे |शादी वैसे ही होगी जैसे तय है चाहे मुझे खुद को गिरवी रखना पड़े |”
“फिर ? ”
“हिम्मते बंदे मददे खुदा |मेरे बैंक में जो कुछ था वो सब भजवा लिया और जमीन का एक टुकड़ा भी गिरवी रख दिया |अब लगे हैं दोनों भाई उसी को छुटाने की जुगत में |” माथे का पसीना पोछते हुए बोले
“उस छोटे वाले ने कोई मदद नहीं की ?”
“चूहे का क्या काम है !- - - - - -वो पैरों के नीचे की मिट्टी खोदेगा और तुम्हारा अन्न-धन बर्बाद करेगा |वो दोनों मिया-बीबी उस वक्त कलकत्ता चले गए |शादी में भी शरीक नहीं हुए |”
“और गाड़ियों वाला मसला वो कैसे सुलझा ?” मैंने पूछा
“कहने लगा कि बसें उसके नाम से है |उसका ही हक़ बनता है |वो चाहे बेचे या चाहे रखे |”
“आप लोगो ने क्या किया ?”
“मझला तो थाना-पुलिस-कचहरी सबको तैयार था |पर मैंने ही मना कर दिया |घर की इज्जत भी उछले और कौड़ी भी ना मिले |”
“प्रकाशजी ने खुद कुछ नहीं दिया |”
“वो साss ला देता भी तो क्या हम लेते ?सारी ज़िन्दगी हम कमाकर खिलाएँ हैं |और उनकी भीख लेते |वो थोड़ा बिमारी ने कमज़ोर कर दिया वरना अभी भी सारे घर को हमी चला रहे हैं |”
“मतलब अभी गाँव में आप और मझले दादा साँझे में हैं |”
“हाँ |”
तभी ग्राहक जोड़ा आता है |पुरुष एक लीटर की ठंडी मिरिंडा माँगता है |मैं बाक्स से खड़ा हो जाता हूँ|वो बाक्स में बोतल टटोलने लगते हैं |महिला उनकी कुर्सी अपनी तरफ खींचकर उस पर आसीन हो जाती है |फिर उनकी तरफ पानी की बोतल दिखाते हुए पूछती है –पीने का पानी मिलेगा |
पति जर्दा की तलब में पान-दुकान की तरफ बढ़ जाता है |
दादा पास खड़े जलजीरा वाले की तरफ ईशारा करते हैं |
“तुहि ला दा,पता ना हमके देई का ना देई |”
“उसे मेरा नाम बता देना |” दादा उसे देखते हुए बोलते हैं |
“नाहि,आपही ला देईं |” इस बार औरत का स्वर कुछ नर्म था
वो आवाज़ लगाकर जलजीरे वाले से पानी लाने को कहते हैं |महिला पानी पीकर बैठी रहती है|पति सॉफ्ट-ड्रिंक का दाम सुनकर –“ये तो लिखे से ज़्यादा है |”
“बाहर वाला ले लो लिखे पर दे देंगे |ठंडा करने का खर्च अलग लगता है |”
पति-पत्नी को चलने का ईशारा करता है |कुर्सी खाली होने पर मुझे बैठने का ईशारा करते हैं |मेरी झेंप समझकर वो जलजीरे वारे को फिर पुकारते हैं-‘जरा बलदेव से एक कुर्सी ले आवा |’ क्रमशः
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सोमेश भाई
कथ्य खुल कर आरहा है . बढ़िया लगा .
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