सवाल-ए-इश्क़, रुख़ पे, क्या असर लाये, सुभान’अल्ला!
झुकी नज़रेँ उठेँ, उठ कर झुकेँ, हाए, सुभान’अल्ला!
पलक से, वक़्त बे-क़ाबू, हवा मोड़े जो, चाल ऐसी,
खुले जो ज़ुल्फ, मौज आये, घटा छाये, सुभान’अल्ला!
तेरी खुशबू के रंगोँ से, बहारोँ की धनक महके,
तेरी आवाज़, क़ुदरत का सुकूँ, हाए, सुभान’अल्ला!
उफक़ ये हुस्न, तो, वो चाँद-सूरज हैँ तेरी बिन्दी,
सितारा, बन तेरी नथनी, चमक पाये, सुभान’अल्ला!
कमर प्याला, सुराहीदार गर्दन, जिस्म मै’ख़ाना,
गुलाबी होँट अंगूरी, नशा छाये, सुभान’अल्ला!
अदा-शोख़ी क़यामत, सादगी-शर्म-ओ-हया ऐसी,
हक़ीक़त क्या, तसव्वुर भी मचल जाये, सुभान’अल्ला!
है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,
झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्ला’!
तेरी हस्ती मेरी साँसेँ, दवा-‘आब-ए-हयात’ आँखेँ,
हँसी शबनम-सी, गुलशन की सहर लाये, सुभान’अल्ला!
मेरे बे-दार ख़्वाबोँ के तरन्नुम की जवाँ महफिल,
मुहब्बत की शमा से रौशनी पाये, सुभान’अल्ला!
यही यादेँ, मेरे दिन-रात, साहिल हैँ, समन्दर हैँ,
“बशर” की डूबती कश्ती, ग़ज़ल गाये, ‘’सुभान’अल्ला’’!!!
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मौलिक व अप्रकाशित
* शब्दावली : मौज = लहर, धनक = इंद्रधनुष, उफक़ = क्षितिज, मै’ख़ाना = शराब’ख़ाना, मदिरालय, तसव्वुर = कल्पना, काफिर = नास्तिक, सदा = आवाज़, हस्ती = ज़िन्दगी, आब-ए-हयात = अमृत, शबनम = ओस, गुलशन = बाग़ या बगीचा, सहर = सुबह, बे-दार = जागते हुए, निद्रारहित, तरन्नुम = संगीत, साहिल = किनारा
Comment
Saurabh Pandey साहब, ये तो आप का हुस्न-ए-नज़र है । आप का ख़ास इंतिख़ाब, दाद और हौसला'अफज़ाइ सर-आँखोँ पर । तह-ए-दिल से आप का शुक्रिया ।
शकील जमशेदपुरी साहब, तह-ए-दिल से शुक्रिया आप का ।
Shijju Shakoor साहब, बहुत-बहुत शुक्रिया आप का ।
Sushil Joshi साहब, इंतिख़ाब-ओ-दाद के लिए हम आप के दिल से शुक्रगुज़ार हैँ ।
Umesh Katara साहब, आप की दाद सर-आँखोँ पर । तह-ए-दिल से आप का शुक्रिया ।
कमर प्याला, सुराहीदार गर्दन, जिस्म मै’ख़ाना,
गुलाबी होँट अंगूरी, नशा छाये, सुभान’अल्ला!
है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,
झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्ला’!.. . .
इन दो अश’आर में मजाज़ी और हक़ीक़ी इश्क़ का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत हुआ है.
बधाई स्वीकारें.
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्
शानदार संदीप भाई जी
है चेहरा ईद का वो चाँद जिस को देखकर यारो
झुका सजदे में हर काफिर सदा आये सुभान अल्ला
दाद कबूलें आदरणीय
अदा-शोख़ी क़यामत, सादगी-शर्म-ओ-हया ऐसी,
हक़ीक़त क्या, तसव्वुर भी मचल जाये, सुभान’अल्ला!
है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,
झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्ला’!............... वाह वाह क्या कहने आ0 संदीप भाई जी..... बहुत खूब...
///तेरी खुशबू के रंगोँ से, बहारोँ की धनक महके,
तेरी आवाज़, क़ुदरत का सुकूँ, हाए, सुभान’अल्ला!/// Waah bahut badhiya daad kubul k
aren
सुभान अल्लाह...क्या कहने।
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