For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

17)

जी करता है उड़कर जाऊँ।

कुछ पल उसके संग बिताऊँ।

दूर बहुत ही है  उसका घर,

क्या सखि, साजन?

ना सखि, अम्बर!

18)

रातों को जब नींद न आए।

खिड़की खोल, सखी वो आए।

बाग बाग हो जाता मनवा,

क्या सखि प्रियतम?

ना री, पुरवा!

19)

उसको प्यार बहुत करती हूँ।

मगर पास जाते डरती हूँ।

दूर खड़ी देखूँ जी भरकर,

क्या सखि, प्रियतम?

ना सखि सागर!

20)

जब भी मेरा मन भर आए।

आँसू पोंछे प्यार जताए।

रखता मेरा पल-पल खयाल,

क्या सखि, साजन?

ना सखि, रुमाल!

21)

महफिल-महफिल रंग जमाए।

अपने हाथों भंग पिलाए।

मधुर-मदिर लगते उसके गुन,

क्या सखि प्रियतम?

ना सखि, फागुन!

22)

जब से उससे प्रीत लगाई।

घर बाहर होती खिलवाई।

पास न हो तो रहूँ अनमनी,

क्या सखि साजन?

नहीं, लेखनी!

23)

जब जब मेरा मन अकुलाता।

झट बहार बनकर आ जाता।

वो मेरे प्राणों की पुलकन।

क्या सखि प्रियतम?

ना सखि सावन।

24)

सदा नज़र में रखना चाहूँ।  

तनिक जुदाई सह ना पाऊँ।

उससे मेरा मोह निराला,

क्या सखि साजन?

ना सखि माला! 

25)

सखी! मुझे वो बहुत सताए।

नैन मिलाकर, फिर छिप जाए।

रहे तरसता मन बेचारा,

क्या सखि प्रियतम?

नहीं, सितारा!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on March 22, 2014 at 10:18pm

आदरणीय सौरभ जी आपका प्रोत्साहन और प्रशंसा पाकर मन बहुत हर्षित होता है। आपका हृदय से धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2014 at 8:25pm

आदरणीया कल्पनाजी, आपका रचनाकर्म प्रभावित तो करता ही है. इसकी अंतर्निहित गरिमा भी अनुकरणीय है. साजन और प्रियतम की बूझ पर मनभावन रचनायें हुई हैं, इसके लिए हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ
 

Comment by कल्पना रामानी on February 25, 2014 at 10:41pm

आदरणीय राहुल जी, बृजेश जी, प्राची जी, रचना की सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद। सादर

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2014 at 10:22pm

वाह! बहुत सुन्दर कह-मुकरियाँ! आपको बहुत-बहुत बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2014 at 1:13pm

सुन्दर कह मुकरियाँ हुई हैं आदरणीया कल्पना जी 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:49pm

आदरणीय लड़ीवाला जी, सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:48pm

आदरणीय जितेंद्र जी, आपको मुकरियाँ रुचिकर लगीं, मन को संतोष हुआ। इतनी मेहनत पाठकों के लिए ही तो करते हैं ना। आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:46pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपकी प्रशंसा से मन बहुत हर्षित हुआ। संग्रह का तो सोचा ही नहीं अपना लेखन धर्म का पालन कर रही हूँ। पाठकों को संतोष हो वही बहुत है। आपका हृदय से धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:42pm

आदरणीय रक्ताले जी, आपका सुझाव बेहतरीन है। यहाँ बात सचमुच नहीं बन रही थी। आपका हृदय से आभार

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:40pm

आदरणीया कल्पना मिश्रा जी, मुकरियों की सराहना के लिए हार्दिक आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service