For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कह मुकरियाँ-11से 16 (कल्पना रामानी)

(11)

थक जाऊँ तो पास बुलाए।

नर्म छुअन से तन सहलाए।

मिले सुखद, अहसास सलोना।

क्या सखि साजन?

नहीं, बिछौना!

12)

रातों की वो नींद उड़ाए।

अपनी धुन में गीत सुनाए।

बात न माने, बैरी बर्बर।

क्या सखि साजन?

ना सखि, मच्छर!

13)

उसका नाम सदा मैं टेरूँ।

नित्य उसी की माला फेरूँ।

रूठ न जाए, मुझसे दैया!

क्या सखि साजन?

नहीं, रुपैया!

14)

सो जाती जब पलकें मींचे।

चुपके से बाहों में भींचे।

सपने देख गुजरती रतिया।

क्या सखि साजन?

ना सखि तकिया!

15)

रातें मेरे साथ बिताए।

परीलोक की सैर कराए।

दिन में मुँह न दिखाए अपना।

क्या सखि साजन?

ना सखि सपना!

16)

चिपका-चिपका साथ घूमता।

बाल सूँघता, गाल चूमता।

लट उलझाए वो मतवाला।

क्या सखि साजन?

ना सखि बाला!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 650

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on February 25, 2014 at 11:22pm

आदरणीय सूबे सिंह जी सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on February 25, 2014 at 11:22pm

आदरणीया प्राची जी आपके प्रोत्साहन से बहुत बल मिलता है, बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by सूबे सिंह सुजान on February 24, 2014 at 11:19pm

बहुत ही  सुन्दर व सार्थक मुकरियाँ कही हैं। आपको इस विधा  में सफलता पर बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 10:09pm

सभी कह मुकरियाँ सुन्दर हुई है 

मच्छर और बाला वाली बहुत अच्छी लगी 

कहमुकरियों पर सार्थक प्रयास बना रहे 

शुभकामनाएं 

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:55pm

रचना तक पहुँचने और सराहने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद बृजेश जी/सादर 

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:53pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, सुंदर टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 10:52pm

आदरणीय गिरिराज जी, आपकी रचना पर उपस्थिति से बहुत प्रसन्नता हुई। हार्दिक धन्यवाद आपका 

Comment by बृजेश नीरज on February 21, 2014 at 7:47pm

वाह! बहुत सुन्दर! मज़ा आ गया! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 20, 2014 at 9:39pm

आज मेरा विश्वास और दृढ़ हो गया कि अच्छी कह मुकरियाँ लिखने के लिए शिल्प की समझ के साथ साथ जीवन का अनुभव होना भी जरूरी है। बहुत सुंदर कह मुकरियाँ हैं आदरणीय कल्पना जी, और लिखिए, लिखती रहिए।

बारंबार बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 5:21pm

आदरणीया कल्पना जी , कह मुकरियाँ बहुत सुन्दर लगी , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service