For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 19

कल से आगे .....

‘‘बाबा मैं भी गुरुकुल जाऊँगी।’’ आठ साल की मंगला पिता की पीठ पर लदी, उसके गले में हाथ पिरोये लड़िया कर बोली। मंगला का पिता मणिभद्र अवध का एक श्रेष्ठी (सेठ) है। उसकी अनाज की ठीक-ठाक सी आढ़त है। बहुत बढ़िया तो नहीं फिर भी अच्छा खासा चल रहा है उनका धंधा। मंगला उसकी दुलारी पुत्री है। दुलारी हो भी क्यों न, आखिर पाँच पुत्रों के बाद तमाम देवी-देवताओं की मनौती के बाद मंगला प्राप्त हुई है।


सेठ बाजार में अपनी गद्दी पर बैठे हिसाब-किताब में मगन थे। मंगला की बात सुन कर ठठाकर हँस पड़े -
‘‘अरे लड़कियाँ भी कहीं गुरुकुल जाती हैं ? तू अम्मा के साथ रोटी बनाना क्यों नहीं सीखती ?’’
‘‘वो तो सीख ली मैंने। पर मुझे गुरुकुल जाना है। मुझे भी वेद पढ़ना है।’’
‘‘अरे मुनीम जी ! देखा आपने, हमारी बिटिया वेद पढ़ना चाहती है। आपने पढ़े हैं ?
‘‘नहीं सेठ जी मैं ने तो नहीं पढ़े।’’ मुनीम जी ने हँसते हुये कहा।’’
‘‘मैंने भी नहीं पढ़े मुनीम जी !’’ मणिभद्र ने मंगला को चिढ़ाते हुये कहा।’’
‘‘बाबा आप ठिठोली कर रहे हो। जाओ मैं नहीं बोलती आपसे।’’ मंगला वैसे ही उनकी पीठ पर लदे-लदे बोली।’’
मंगला घर में सबसे छोटी थी, इसलिये सबकी दुलारी थी। सेठ जी उसे मनाते हुये बोले -
‘‘अरे नाराज नहीं होते बेटा ! हमारी बिटिया हमसे नाराज हो जायेगी तो हमसे मीठी-मीठी बातें कौन करेगा ? क्यों मुनीम जी, आपको तो मीठी-मीठी बातें करना आता नहीं।’’
‘‘हाँ सेठजी हमें तो नहीं आता।’’
सेठ जीने हाथ पकड़ कर बिटिया को गोद में खींच लिया और पेट में गुदगुदाते हुये बोले -
‘‘तो तुमने रोटी बनाना सीख लिया।’’
‘‘बताया तो सीख लिया।’’ मंगला मुँह बना कर बोली।
‘‘तो और बढ़िया-बढ़िया खाना बनाना सीख। फिर हमको खिलाना। हमें तो आज तक तुमने अपने हाथ से रोटी बनाकर खिलाई ही नहीं।’’
सेठ उसका दिमाग इस गुरुकुल जाने की बात से हटाना चाहते थे। उस समय लड़कियों को गुरुकुल भेजने की आर्यावर्त में परिपाटी नहीं थी। गुरुकुल के आचार्यों की कन्यायें ही थोड़ा बहुत पढ़-लिख लेती थीं या फिर कभी-कभी कोई राजकन्या गुरुकुल भेज दी जाती थी, पर मात्र अपवाद के रूप में। शेष क्षत्रिय और वैश्यों की लड़कियाँ तो आमतौर पर गुरुकुल का मुँह भी नहीं देख पाती थीं। लड़के भी कौन सा बहुत गुरुकुल जाते थे। ऊँचे खानदान के लड़के ही यह सौभाग्य प्राप्त कर सकते थे जिन्हें रोटी कमाने की फिकर नहीं होती थी। बाकी तो घर पर ही बाप-चाचा से थोड़ा बहुत हिसाब सीख कर काम-धंधे में लग जाते थे। कुछ क्षत्रिय या वणिक जिन्हें अपने लड़कों को पढ़ाने का बहुत शौक होता था थोड़े दिन के लिये उन्हें गुरुकुल भेज देते थे। सेठ के भी बड़े चारों लड़के थोड़े-थोड़े दिन के लिये गुरुकुल गये थे। वेदादि ग्रन्थों की सूरतें देखी थीं, थोड़ा सा हिसाब सीखा था और फिर पिता के व्यापार में हाथ बटाने लगे थे। सबसे छोटा बेटा ‘वेद’ अवश्य अभी भी गुरुकुल में था। उसे पढ़ाई से लगाव था। तीन साल हो गये थे उसे वहाँ, ‘देखो कितने दिन तक और पढ़े’ सेठ ने सोचा। मंगला की जिद ने अचानक उन्हें उसकी याद दिला दी थी। पर मंगला कैसे जा सकती थी गुरुकुल। लड़कियों के बारे में तो किसी को विचार ही नहीं आता था कि उन्हें भी गुरुकुल भेजा जाना चाहिये या भेजा जा भी सकता है। लड़कियों से भी बदतर स्थिति शूद्रों की भी थी। उनका पढ़ना तो पाप की श्रेणी में आता था। उनके लिये तो इस विषय में तो सोचना भी अपराध था।


ऐसी स्थिति में भी उस काल में लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रीयी जैसी असंख्य विदुषी ऋषिकायें हुयीं जिन्होंने वेदों की रचना तक में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। खैर ... आइये वापस अपनी कहानी से जुड़ते हैं।
पर मंगला तो जिद पर अड़ गयी थी, सेठ की रोटियों की बात में उसका दिमाग नहीं भटका। वह बोली
‘‘पहले गुरुकुल भेजने के लिये हाँ कहिये, फिर बनाकर खिलाऊँगी।’’
मणिभद्र ने सिर पीट लिया। आखिर में उस समय बात टालने के लिये उन्हें मंगला को दिलासा देनी ही पड़ी -
‘‘अच्छा तसल्ली रख। बात करूँगा आचार्य से। अगर उन्होंने अनुमति दे दी तो तुझे भी भेज दूँगा गुरुकुल।’’
‘‘मेरे अच्छे बाबा !’’ मंगला ने इतने से ही खुश होकर उनके गले में बाहें डाल दीं।
‘‘अच्छा अब घर जा। मुझे काम करने दे। अरे ओ मधू ! जा मंगला को घर छोड़ आ।’’ उन्होंने बड़े बेटे को आवाज दी।
‘‘बाबा बिद्धू के साथ भेज दो ना ! मैं गेहूँ की बोरियाँ गिन रहा हूँ।’’ बिद्धू सेठ के नौकर का नाम था। नाम तो शायद विद्यानाथ था पर विद्या से उसका उसके जैसे बाकी सारे शूद्रों की तरह कोई नाता नहीं था शायद इसीलिये सब उसे बिद्धू ही बुलाते थे। असली नाम तो उसे खुद भी याद नहीं रहा था।
‘‘बोरियाँ छोड़ो, इधर आओ फौरन।’’ सेठ की आवाज अचानक अस्वाभाविक रूप से तेज हो गयी। आवाज की इस तेजी से सकपकाकर मधू सब काम छोड़ कर भाग कर आ गया -
‘‘जी बाबा !’’
‘‘जी बाबा के बच्चे। तनिक भी लोकलाज की परवाह है कि नहीं। बड़ी हो गयी है अब मंगला, इसके-उसके साथ भेज दें उसे ? जा भेज कर आ।’’
मधू चाहकर भी नहीं कह पाया कि बाबा बिद्धू इसके-उसके में नहीं आता। उसे अपनी बेटी से ज्यादा परवाह है मंगला की। वह चुपचाप मंगला को लेकर घर की आर चल दिया। मंगला गुरुकुल जाने की संभावना से प्रसन्न मन उसकी उँगली पकड़ कर चल दी। एक ऐसे दिन का सपना देखती हुयी जो शायद कभी नहीं आना था।
‘‘भइया आप तो गुरुकुल गये हो।’’ चलते-चलते मंगला ने भइया से पूछा।
‘‘नहीं गया।’’
‘‘अम्मा बता रहीं थी कि आप गये हो। बताओ ना भइया।
‘‘अच्छा चबड़-चबड़ बंद कर, चुपचाप चल।’’
‘‘बता दो न, मेरे प्यारे भइया। कैसा होता है गुरुकुल ?’’
‘‘अच्छा चुपचाप चल, नहीं तो धरूँ एक कान पर।’’ भइया ने झुंझला कर डपट दिया। वह किसी और काम में लगा था और पिता ने जबरदस्ती इसके साथ भेज दिया था।
मंगला सहमकर चुुपचाप उसके साथ चलने लगी।

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2016 at 8:29pm

यह कड़ी किसी अन्य कथा की भूमिका की तरह सामने आयी है. बढ़िया है. प्रतीक्षा है.. 

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा अष्टक***हर पथ जब आसान हो, क्या जीवन संघर्ष।लड़-भिड़कर ही कष्ट से, मिलता है उत्कर्ष।।*सहनशील बन…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सादर अभिवादन।"
4 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
yesterday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Jan 4
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service