अब नारों से डरते हम,
ख़ामोशी से मरते हम।
ख़ौफ बढ़े जब उसका तो,
तब फिर कहाँ उभरते हम।
ये जीना कैसा जीना,
ग़र्बत में ही मरते हम।
सपने देखे तो कैसे,
जीने से ही डरते हम।
याद करे दुनिया 'आरिफ़',
काम सदा वो करते हम।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आरिफ साहब बहरे मीर पर अच्छे अशआर कहे गजल के लिये दिली दाद हाजिर है चौथे शेर मे अपने भाव के अनुकूल सपने देखें तो कैसे ( मजबूरी का भाव ) सपने देखे तो कैसे ( अवर्णननीय सपने ) के अनुसार देखे को ( देखे या देखें ) जैसा भी उचित हो कर सकते है । आप गजल सुनाएंगे तो स्वरागधात और उच्चारण से काफी कुछ समझ आ जाता है पर लिपि बद्ध रूप में यह शब्दों के सही अंकन से ही समझ आएगा । सादर
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