तुम्हें मेरी फिक्र कहाँ है
साँझ के आगोश में
दिन भर की थकान
राहत ले रही है
विश्वास की लौ धीरे-धीरे टिमटिमा रही है
ऐसे में अब तुम्हारी प्रतीक्षा शेष है
तुम्हें मेरा वादा कहाँ याद है
कह दो आज फिर मैं झूठ नहीं बोलूँगा
तुम्हारे झूठ पर मेरा विश्वास टिका है
शहर के कॉफी हाऊस से
बूढ़ों की टोलियाँ भी घर जा रही है
मस्जिद की मीनार और
मंदिर के कलश पर
दिन भर मंडराने वाले
कबूतरों का झुंड भी चला गया है
ऐसे में मेरे भरोसे की पतवार कहाँ…
Added by Mohammed Arif on February 21, 2019 at 3:18pm — 1 Comment
देश की धड़कन
वाणी का यौवन
संवाद का आँगन
हिंदी है मेरा तन-मन
अपनों से रखती है लगाव
भरती दिलों के घाव
मिटाती है अलगाव
हिंदी में है मेरा झुकाव
सबकी ज़रूरत
दिलों की हसरत
मिटाती नफ़रत
हिंदी है मेरी वकालत
शब्दों का हल
खुशियों का हर पल
सरस कलकल छलछल
हिंदी है मेरा आत्मबल
भारत की है शान
संपर्क की पहचान
सरगम की तान
हिंदी है मेरा स्वाभिमान
भेदभाव भी सहती है
मगर सच को सच कहती है
दिलों में…
Added by Mohammed Arif on September 14, 2018 at 8:00am — 5 Comments
ज़माने को मेरी ज़रूरत नहीं है
मुझे तो किसी से शिकायत नहीं है ।
.
अकेले में रहने की आदत है मुझको
किसी से भी मेरी अदावत नहीं है ।
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नई पीढ़ी का ये चलन आज देखो
ज़रा सी भी इनमें लियाक़त नहीं है ।
.
है कितना यहाँ झूट महफ़ूज़ यारो
कि सच्चों की कोई अदालत नहीं है ।
.
सरे आम लुटती है इज़्ज़त यहाँ पर
किसी की यहाँ अब हिफ़ाज़त नहीं है ।
.
लगा मुझको झूटों के बाज़ार में यूँ
कि सच बोलने की इजाज़त नहीं है ।
.
मौलिक…
ContinueAdded by Mohammed Arif on September 5, 2018 at 11:30pm — 18 Comments
(1) बूँदें नहीं
चाँदी के सिक्के गिरते हैं
बादलों की झोली से
और धरती लूट लेती है ।
*******
(2) वर्षा कुबेर
दोनों हाथों से लुटाता है
वर्षा -धन
नदियाँ, सरोवर और तालाब
लूटकर संग्रहित कर लेते हैं ।
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(3) बारिश की आत्मकथा
साल भर लिखते रहते हैं
पेड़-पौधे और हरियाली ।
*******
(4) बारिश की बूँदें
नई धुनें
तैयार करने लगती है
राग-मल्हार के लिए ।
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(5) बारिश का
अहसास कब होता है ?
जब…
Added by Mohammed Arif on July 17, 2018 at 8:36am — 27 Comments
(1) ख़त्म तपन
हरा हुआ चमन
मचले मन ।
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(2) भीगी है रात
बादलों की बारात
हो मुलाक़ात ।
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(3) खेत-मैदान
हरियाली मचले
जीवन चले ।
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(4) कहीं बरसे
मन मौजी बादल
धरा को बल ।
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(5) नदियों में है
लहरों का यौवन
जल का धन ।
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(6) घर-आँगन
जल की मनमानी
जीने की ठानी ।
******
(7)ककड़ी-भुट्टे
मन को ललचाते
सबको भाते ।
*******
(8) बूँदें…
Added by Mohammed Arif on July 4, 2018 at 8:54am — 21 Comments
शैतानों की देखो दावत करता है
पापी है पर जन्नत जन्नत करता है ।
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कोई तुझे न देखे अच्छी नज़रों से
क्यों तू ऐसी वैसी हरकत करता है ।
*******
क्या होता है हाथों की रेखाओं में
मिहनत कर क्यों क़िस्मत क़िस्मत करता है ।
*******
काली काली बदली जब भी छाये तो
दहक़ाँ फिर बारिश की हसरत करता है ।
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भेद नहीं है कोई उसकी नज़रों में
फिर क्यों तू औरों से नफ़रत करता है ।
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अता किया सबकुछ क़ुदरत ने उसको पर
वो तो…
Added by Mohammed Arif on July 1, 2018 at 4:22pm — 13 Comments
क़लम लाचार है
विरोध की तेज़ धार है
घोषणाएँ जारी हैं
ग़रीब का भूखा पेट भी आभारी है
झोंपड़ियों के ऐब सारे ढँक गए
ग़रीब के घर बेबसी की बीमारी है
संसद में भूख का आँकड़ा गरमा रहा है
रहनुमा विकास का तराना गुनगुना रहा है
धर्म के ठेकेदारों की दबंगई है
ईमान की बोली सस्ती लगी है
दहशत में सबकुछ फलफूल रहा है
मदारी ख़ुद झूठ के बाँस पर चल रहा है
बहुत तरक़्की हो चुकी है
चैन की बाँसुरी भी सुर खो चुकी है
सरकार का चरित्र साफ़-साफ़ नज़र आ रहा है…
Added by Mohammed Arif on June 26, 2018 at 8:30am — 17 Comments
कश्मीर अभी ज़िंदा है आँसू गैस में
डल झील की बर्फ में फैले ख़ून में
जवान बेटे की मौत पर दहाड़े मारती माँ में
ईद की खुशियों में शामिल होते मातम में
जवान बेटों के अगवा होने में
आतंकियों के दुष्कर्म में
कश्मीर अभी ज़िंदा है सीज़फायर उल्लंघन में
बर्फ की वादियों में ख़ून के कोहरे में
डरी सहमी , सिसकती रंगीन कालीनों में
गलियों , चौराहों से रोज़ गुज़रते जनाज़ों में
बंद खिड़की , दरवाज़ों से झाँकते मासूमों में
देश विरोधी तकरीरों में
कश्मीर अभी ज़िंदा है जलती…
Added by Mohammed Arif on June 21, 2018 at 12:58am — 18 Comments
कश्मीर अभी ज़िंदा है
झेलम के ख़ून में
केसर के रक्त में नहाया
बेवाओं की चीख पुकार में
दहााड़ेंं मारती माँओं में
पत्थरबाज़ी में
कश्मीर अभी ज़िंदा है भटके नौजवानों में
कश्मीर अभी ज़िंदा है शहीदों के जनाज़ोंं में
डरे सहमे शिकारों में
ख़ूूून से सनी पतवारों में
दया के लिए भीख माँगते हाथों में
धमकी भरे पत्रों में
हैण्ड ग्रेनेड में
मोर्टार और एके फोर्टी सेवन में
असंख्य हथियारों के ज़खीरों में
बरामद पाकिस्तानी हथियारों में…
Added by Mohammed Arif on June 17, 2018 at 8:30am — 16 Comments
हाँ , हमें अभी और देखना है
टूटते शहर का मंज़र
रिश्तों में उलझी संवेदनहीनता का दंश
अपनों के बीच परायेपन का अहसास
घुट घुटकर रोज़ मरना
पीढ़ियों के अंतर की गहरी खाई में गिरना
निर्मम व्यवस्था का शिकार होना
हाँ, हमें अभी और देखना है
लालच का उफनता समुद्र
अकेलेपन के चुभते काँटें
बीमार बाप के लरजते हाथ
झुर्रियों की ख़ामोशियाँ
बेचैन माँ की प्रतीक्षा
कर्कश तरंगों का शोर
विघटन की शैतानी लकीरें
भरोसे में लालच के दैत्य
ठहरा…
Added by Mohammed Arif on June 8, 2018 at 10:00am — 14 Comments
विवाह में शामिल होने आए दोस्त , रिश्तेदार क़रीबी और परिवार के सदस्य सभी यह जानने के बड़े उत्सुक थे कि आख़िर राहुल मंच से ऐसी क्या घोषणा करेगा जिससे उसकी शादी हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बन जाएगी । प्रीतिभोज से निवृत्त होकर सभी मेहमान मंच के सामने एकत्रित हो गए । राहुल अपनी जीवन संगिनी वर्षा का हाथ थामे मंच पर उपस्थित हुआ । हाथ जोड़कर दोनों ने सबका अभिवादन किया और कहा-" साथियों , आप सभी का आभारी हूँ कि आपने अपनी गरिमामयी उपस्थित देकर मेरा मान बढ़ाया । ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा । आज के इस विवाह आयोजन को…
ContinueAdded by Mohammed Arif on May 1, 2018 at 10:30am — 10 Comments
प्रसंग था 'दशा और 'बोध ' किसे कहते हैं ? जिज्ञासु और दार्शनिक के बीच इस विषय को लेकर काफी वाद-विवाद चला । जिज्ञासु दार्शनिक के तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रहा था । अंत में दार्शनिक ने जो सांकेतिक जवाब दिया उसे सुनकर जिज्ञासु अभिभूत हो गया । दार्शनिक ने उंगली से चींटियों के जाते हुए झुण्ड की ओर इशारा कर दिया ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 23, 2018 at 9:00am — 16 Comments
अनकही ख़ामोशियाँ
बहुत कुछ कहती है
उनका शोर बहुत दूर तक सुनाई देता है
उन ख़ामोशियों की ज़मीन पे
बीज अंकुरित होते हैं
बहुत कुछ कहने के
मगर अनकही ख़ामोशियाँ
ख़ामोश बनकर रह जाती है
जैसे हड़ताल की अधूरी रह जाती है माँगें
जो कभी पूरी नहीं होती है
और माँगें हड़ताल को चलाती है
अतीत की स्मृतियों को भी
दबाती है अनकही ख़ामोशियाँ
धीरे-धीरे अनकही ख़ामोशियाँ
कब भीतर की तपिश बन जाती है
पता ही नहीं चलता है
यह तपिश
लावा बनकर फूट पड़ती है…
Added by Mohammed Arif on April 8, 2018 at 9:06am — 12 Comments
एक दिन तंग आकर ज़िंदगी मौत से बोली-" आख़िर तू मुझे कब तक डसती रहेगी ?"
मौत खिलखिलाकर बोली-" जब तक तू जीने की हठ करती रहेगी ।"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 9:00am — 8 Comments
" आप समस्त शहरवासियों से हाथ जोड़कर विनम्र अपील करता हूँ कि इस बार होने जा रहे 'स्वच्छता सर्वेक्षण ' में बढ़ चढ़कर भाग लें , अपना सकारात्मक फीडबेक देकर शहर को स्वच्छता की सूची में नंबर-वन बनाएँ ।यह शहर आपका है , इसे अपने घर की भाँति साफ-सुथरा और सुंदर बनाएँ। यह सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है । शहर का नाम पूरे देश में रोशन करें । अपने आसपास गंदगी को फटकने न दें , घरों से निकलने वाला गीला और सूखा कचरा अलग-अलग डस्टबिन में डालें । मुझे उम्मीद है इस बार हमारा शहर स्वच्छता में पूरे देश में नंबर-वन…
Added by Mohammed Arif on March 25, 2018 at 9:13am — 10 Comments
एक राजनेता से पूछा -" आप तीखी बयानबाज़ी या शोला बयानी क्यों करते हैं ? इससे दूसरे वर्गों की भावनाएँ आहत है । देश का माहौल ख़राब होता है । अपनी ज़बान पर थोड़ा ताला क्यों नहीं लगाते ?"
राजनेता -" ज़बान पर ताला या नियंत्रण नहीं लगा सकता । मेरे हाथों में नहीं है ।"
मैंने पलटवार करते हुए पूछा -" फिर किसके हाथों में है ?"
" पार्टी आला कमान के ।" कुतिलता से मुस्कुराते हुए चल दिए ।
मौलिक एवं अप्रकाशित। ।
Added by Mohammed Arif on March 21, 2018 at 10:30am — 14 Comments
एक समय था जब आनंदी लाल जी घंटों अख़बार पढ़ा करते थे । उम्र बढ़ने के साथ-साथ नेत्र ज्योति ने साथ छोड़ दिया । उन्हें अब अक्षर दिखाई नहीं देते । पोता चिण्टू सुबह की ताज़ा ख़बरें और अनमोल विचार रोज़ पढ़कर सुनाता है । वह दादा जी का सच्चा समाचार वाचक है । आज सुबह के सारे समाचार सुन लेने के बाद दादा जी बोले-" बेटा चिण्टू कोई अच्छा-सा अनमोल वचन सुनाओ ।" कुछ देर अख़बार के पन्ने पलटने के बाद चिण्टू बोला -" दादा जी ,व्हिक्टर ह्यूगो का बहुत बढ़िया विचार आया है वो सुनाता हूँ । सुनो ,"बुद्धिमान व्यक्ति बूढ़ा नहीं…
ContinueAdded by Mohammed Arif on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments
अलमारी में रखे शब्दकोष के पन्ने अचानक फड़फड़ाने लगे । हो सकता है ये उनके अंदर की बेचैनी या घबराहट हो । " सहिष्णुता " शब्द ने "संस्कार " से अपनी व्यथा बताते हुए कहा -" मेरे अर्थ को लोग भूल से गए हैं । मैं उपेक्षित जीवन जी रहा हूँ । मेरे मर्म को कोई जानना नहीं चाहता । बुरा तो तब और लगता है जब मेरे आगे "अ" जोड़कर " असहिष्णुता " बनाकर देश में बवाल मचाया जा रहा है ।"
" सच कहती हो " सहिष्णुता" बहना । मेरी भी हालत अनाथों की तरह हो गई है । कोई मुझे अपनाने को तैयार ही नहीं है ।" "संस्कार…
Added by Mohammed Arif on March 11, 2018 at 9:00am — 27 Comments
बड़े बेटे ने माँ के फटे पुराने कपड़े इकट्ठे किए । दूसरा बेटा चश्मा और छड़ी ढूँढकर लाया । तीसरे ने दवाई की शीशी और पुड़ियाँ अलमारी से निकाली । छोटी बहू कड़वा ताना देती हुई बोली-" जाने कब मरेगी । लगता है कोई अमर बूटी खाकर आई है ।" चारों मिलकर माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए । अब चारों ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला -चिल्लाकर सभी को बता रहे हैं कि माँ अपनी राजी-मर्जी से हमेशा के लिए अपनी बेटी के घर चली गईं ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on March 6, 2018 at 8:00am — 16 Comments
समय का काला
क्रूर धुआँ
आख़िरकार
तैर गया आँखों में
बन के मोतियाबिंद
बड़ा चुभता है आठों पहर
उन दिनों आँखें
बड़ी व्यस्त रहती थी
किसी के दिल को लुभाती थी
किसी के मन को भाती थी
सारा संसार समाया था इनमें
लेकिन धीरे-धीरे
इनका यौवन फीका पड़ गया
पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा
अब ये आँखें
पथराई-सी
डबडबाई-सी
लाचार-सी रहती है
बस यही पहचान रह गई है इनकी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on March 1, 2018 at 5:00pm — 16 Comments
आवश्यक सूचना:-
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