For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल बह्र -फऊलुन -फऊलुन -फऊलुन -फऊलुन

ज़माने को मेरी ज़रूरत नहीं है
मुझे  तो किसी से शिकायत नहीं है ।
.
अकेले में रहने की आदत है मुझको
किसी से भी मेरी अदावत नहीं है ।
.

नई पीढ़ी का ये चलन आज देखो
ज़रा सी भी इनमें लियाक़त नहीं है ।
.

है कितना यहाँ झूट महफ़ूज़ यारो
कि सच्चों की कोई अदालत नहीं है ।

.

सरे आम लुटती है इज़्ज़त यहाँ पर
किसी की यहाँ अब हिफ़ाज़त नहीं है ।

.

लगा मुझको झूटों के बाज़ार में यूँ
कि सच बोलने की इजाज़त नहीं है ।

.

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 843

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 12, 2018 at 11:22am

आपकी गज़ल लाजवाब लगी, मित्र मोहम्मद आरिफ़ जी। बधाई।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:59pm

हार्दिक आभार आदरणीय नवीनमणि जी ।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय आमोद जी .

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:57pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब । आपका हुक्म सर आँखों पर । संशोधन कर लिया है ।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:56pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी ।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:54pm

हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी ।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:53pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:52pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।

Comment by Mohammed Arif on September 9, 2018 at 1:51pm

हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2018 at 4:53pm

जनाब आरिफ साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है । हार्दिक मुबारकवाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
15 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
15 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service