एक समय था जब आनंदी लाल जी घंटों अख़बार पढ़ा करते थे । उम्र बढ़ने के साथ-साथ नेत्र ज्योति ने साथ छोड़ दिया । उन्हें अब अक्षर दिखाई नहीं देते । पोता चिण्टू सुबह की ताज़ा ख़बरें और अनमोल विचार रोज़ पढ़कर सुनाता है । वह दादा जी का सच्चा समाचार वाचक है । आज सुबह के सारे समाचार सुन लेने के बाद दादा जी बोले-" बेटा चिण्टू कोई अच्छा-सा अनमोल वचन सुनाओ ।" कुछ देर अख़बार के पन्ने पलटने के बाद चिण्टू बोला -" दादा जी ,व्हिक्टर ह्यूगो का बहुत बढ़िया विचार आया है वो सुनाता हूँ । सुनो ,"बुद्धिमान व्यक्ति बूढ़ा नहीं होता वह तो उम्र बढ़ने के साथ संजीदा होता जाता है ।"
" बहुत बढ़िया अनमोल वचन है ।"
" मगर मेरी समझ में कुछ नहीं आया दादा जी ।"
" कुछ नहीं चिण्टू बेटा , मेरी उम्र में आते-आते तू सब समझ जाएगा जब तुझे सुबह सात बजे की चाय दस बजे मिलेगी और तू चुपचाप बैठा-बैठा इंतज़ार करेगा जैसे मैं कर रहा हूँ ।"
दादा जी ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सोमेश जी ।
समझदारी bhri snjida rchna.
रचना के अनुमोदन और हौसला अफज़ाई का हार्दिक आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। बढिया कटाक्ष लिए उम्दा लघुकथा। अंत बहुत बेहतरीन। बहुत बहुत बधाई आपको इस प्रस्तुति पर सादर
बहुत-बहुत आभार आदरणीय नीलेश जी ।
बहुत अच्छे..वाह वाह
दिली आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी । लेखन सार्थक हो गया ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब ,बहुत ही उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी । लेखन सार्थक हो गया ।
आपकी अच्छी लघु कथा से जो उमीद होती है, वह हमेशा ही पूरी होती है, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी
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