शैतानों की देखो दावत करता है
पापी है पर जन्नत जन्नत करता है ।
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कोई तुझे न देखे अच्छी नज़रों से
क्यों तू ऐसी वैसी हरकत करता है ।
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क्या होता है हाथों की रेखाओं में
मिहनत कर क्यों क़िस्मत क़िस्मत करता है ।
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काली काली बदली जब भी छाये तो
दहक़ाँ फिर बारिश की हसरत करता है ।
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भेद नहीं है कोई उसकी नज़रों में
फिर क्यों तू औरों से नफ़रत करता है ।
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अता किया सबकुछ क़ुदरत ने उसको पर
वो तो हरदम दौलत दौलत करता है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित। ।
Comment
इस पर प्रतिक्रिया बहुत समय पहले दी थी, duplicate हो गई थी, तो अब एक को delete किया तो दोनों ही अपने आप delete हो गईं। हार्दिक बधाई, भाई आरिफ़ जी
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आ दाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
आ. भाई आरिफ जी, खूबसूरत गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय राज़ नवादवी जी ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब, बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने. बधाई हो. मतला भी बहुत सुन्दर बन पडा है. सादर
हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी । लेखन सार्थक हो गया ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, खूबसूरत गजल की पेशकश के लिए मुबारकबाद कुबूल करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार जी।
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