प्रसंग था 'दशा और 'बोध ' किसे कहते हैं ? जिज्ञासु और दार्शनिक के बीच इस विषय को लेकर काफी वाद-विवाद चला । जिज्ञासु दार्शनिक के तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रहा था । अंत में दार्शनिक ने जो सांकेतिक जवाब दिया उसे सुनकर जिज्ञासु अभिभूत हो गया । दार्शनिक ने उंगली से चींटियों के जाते हुए झुण्ड की ओर इशारा कर दिया ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी । लेखन सार्थक हो गया ।
इतनी "लघु" लघु कथा और इतना बड़ा संदेश ! आपकी "सबसे छोटी गज़ल की याद आ गई, भाई मोहम्मद आरिफ़ जी। दिल से बधाई।
बहुत -बहुत हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
आदरणीय आरिफ मुहम्मद जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया लघुकथा की प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।
दिली शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब । लेखन सार्थक हो गया ।
आ.जनाब आरिफ़ साहिब आदाब, गागर में सागर यानी कम लफ़्ज़ों में ज़बरदस्त लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से लघुकथा पर सफलता की मोहर लगाने का बहुत-बहुत शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
आदरणीय आशुतोष जी आदाब,
लघुकथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से अवगत करवाने का बहुत-बहुत आभार ।
दार्शनिक और जिज्ञासु के वाद-विवाद का विषय 'दशा और 'बोध' है । दार्शनिक अंत में चींटियों के झुण्ड के माध्यम से इसका समाधान सांकेतिक रूप से करवाने का आशय ही यही है कि चींटियों जब चलती है तो एक साथ और एक ही दिशा में समूह के रूप में चलती है । उनकी अपनी एक निश्चत दिशा होती है । जब वे अनुशासनबद्ध तरीके से चलती है तब उनकी दशा देखने लायक होती है । शायद, अब आप समझ गए होंगे ।
आदरणीय आरिफ जी येतो लघु लघु कथा हो गयी प्रतीक का बढ़िया प्रयोग हुआ है अंत में दार्शनिक ने जो सांकेतिक जवाब दिया उसे सुनकर................संकेत को सुनना थोडा असमंजस में हूँ रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करी सादर
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,वाह बहुत खूब,शानदार लघुकथा,इस् प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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