For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता- वो आँखें


समय का काला
क्रूर धुआँ
आख़िरकार
तैर गया आँखों में
बन के मोतियाबिंद
बड़ा चुभता है आठों पहर
उन दिनों आँखें
बड़ी व्यस्त रहती थी
किसी के दिल को लुभाती थी
किसी के मन को भाती थी
सारा संसार समाया था इनमें
लेकिन धीरे-धीरे
इनका यौवन फीका पड़ गया
पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा
अब ये आँखें
पथराई-सी
डबडबाई-सी
लाचार-सी रहती है
बस यही पहचान रह गई है इनकी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on March 4, 2018 at 6:16pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय मोहित जी ।

Comment by Mohammed Arif on March 4, 2018 at 8:18am

कविता के अनुमोदन और उत्सासवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीया रक्षिता सिंह जी ।

Comment by रक्षिता सिंह on March 3, 2018 at 10:35pm

आदरणीय आरिफ जी, नमस्कार

  1. उन दिनों आँखें
    बड़ी व्यस्त रहती थी
    किसी के दिल को लुभाती थी
    किसी के मन को भाती थी।बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ......मुबारकबाद कुबूल करें।
Comment by Mohammed Arif on March 3, 2018 at 4:41pm

रचना के अनुमोदन और उस पर इतनी सुंदर टिप्पणी करने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी ।

Comment by vijay nikore on March 3, 2018 at 2:40pm

//समय का काला
क्रूर धुआँ
आख़िरकार 
तैर गया आँखों में
बन के मोतियाबिंद
बड़ा चुभता है आठों पहर//

इतनी गहराई, इतने सुन्दर भाव, कैसे न पढ़ूँ इसको बार-बार। आनन्द आ गया। आपका धन्यवाद यह मोती-से भाव पोस्ट करने के लिए।

Comment by Mohammed Arif on March 3, 2018 at 12:32pm

कविता के अनुमोदन और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।

Comment by Mohammed Arif on March 3, 2018 at 12:31pm

जी, बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सलीम रज़ा साहब ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 3, 2018 at 10:49am
जी माफ़ी चाहूंगा... कविता ही लिखना था... ख़ूबसूरत कविता के लिए फिर से मुबारक़बाद.
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 3, 2018 at 8:55am

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब ,दिल उतरती सुन्दर कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Mohammed Arif on March 3, 2018 at 8:14am

रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service