उसने मुझको देखा है,
शायद कुछ तो सोचा है।
मंज़र कुछ ऐसा है जो,
उसकी आँखों देखा है।
मुश्क़िल राहों पे अब वो,
धीरे-धीरे चलता है।
कहता है वो सच को सच
सबको कड़वा लगता है।
उस पे शक़ करना कैसा,
वह तो जाँचा परखा है।
सुख-दुख के मौसम को, वह
ख़ामोशी से सहता है।
बारिश हो जाने से अब,
मौसम बदला-बदला है।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मो. आरिफ भाई , छूती बहर मे अच्छे शेर निकाले हैं , अच्छी गज़ल हुई है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।
जनाब मोहम्मद आरिफ जी,,, आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आई,,, सारी ग़ज़ल शानदार लगी..
मुश्क़िल राहों पे अब वो,
धीरे-धीरे चलता है।
उस पे शक़ करना कैसा,
वह तो जाँचा परखा है।
सुख-दुख के मौसम को, वह
ख़ामोशी से सहता है।
बारिश हो जाने से अब,
मौसम बदला-बदला है।
यह अशआर बहुत ज़्यादा पसंद आए ,,, इस ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
ग़ज़ल अच्छी हुई है मोहतरम जनाब आरिफ साहब
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