फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
बह्र - 212 212 212 212
गीत बुलबुल सुनाती रही रात भर
दिलरुबा को रिझाती रही रात भर
भाव ही नींद खाती रही रात भर
उसको मैं बस मनाती रही रात भर
ज़िंदगी से सुना गीत जो सारा दिन
उसको मैं गुनगुनाती रही रात भर
उनकी दिलकश अदा और दीवानगी
सोच मैं मुस्कुराती रही रात भर
तेरी पहली छुअन याद करके सनम
मन ही मन मैं लजाती रही रात भर
चाँद तकने दिया भूख ने कब किसे
रोटियाँ ही दिखाती रही रात भर
ख़्वाब में ख़ुशनुमा ज़िंदगी को दिखा
नींद पागल बनाती रही रात भर
बिन पज़ीराई जब जिस्म भोगा गया
अपना तकिया भिगोती रही रात भर
उनकी बाहों में जन्नत सा पाकर सुकूँ
ज़िंदगी मुस्कुराती रही रात भर
हारने जब लगा हौसला ज़ीस्त से
आस लोरी सुनाती रही रात भर
ज़ीस्त से जो हैं "राखी" ने पाए सबक़
उनको लिखती मिटाती रही रात भर
अप्रकाशित (मौलिक)
अप्रकाशित (मौलिक)
Comment
आदरणीया राखी जी जैसा कि समर साहब ने कहा है कि प्रयास अच्छा है...दूसरे शे'र का ऊला "भाव ही नींद खाती रही रात भर" मुझे लगता है भाव शब्द पुल्लिंग है...इसमें सुधार चाहिए... बाकी शुभ शुभ
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी हार्दिक आभार आपका
जी आदरणीय की कही हर एक बात को ध्यान में रखकर सुधार का प्रयास करती रहूंगी
आदरणीय समर कबीर जी हृदय से आभार मार्गदर्शन के लिए
आपके समस्त निर्देशों को ध्यान में रखूंगी ग़ज़ल में तुरंत सुधार कर लेती हूं
हार्दिक आभार आपका
आ. राखी जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई।
आ. भाई समर जी की बातों का संज्ञान लें।
मुहतरमा राखी जैन साहिब: आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
आपकी पिछली ग़ज़ल पर जो मैंने टिप्पणी दी थी उसका जवाब आपने अभी तक नहीं दिया? ख़ैर !
'जिस्म बाज़ार जब कर दिया हार के
दाम ख़ुद के लगाती रही रात भर'
कौन? भाव स्पष्ट नहीं हुआ, ग़ौर करें ।
'अपना तकिया भिगाती रही रात भर'
इस मिसरे में 'भिगाती' शब्द ठीक नहीं, सहीह शब्द है "भिगोती", देखें ।
'हाँफने जब लगा हौंसला जीस्त से'
इस मिसरे में 'हाँफने' शब्द उचित नहीं इसकी जगह "हारने" शब्द उचित होगा, ग़ौर करें और 'हौंसला' को "हौसला" लिखें ।
कुछ टंकण त्रुटियाँ :-
चांद--'चाँद'
रोटियां--'रोटियाँ'
सुकूं--'सुकूँ'
जीस्त--'ज़ीस्त'
सबक--'सबक़'
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