For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवारों में दरारें -3(सोमेश कुमार )

दीवारों में दरारें-3 

मीना की अध्यापिका पद  पर नियुक्ति के बाद

"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है | “आशा ये सन्देशा देकर चली जाती है |

रूम में पहुँचने पर |

“आ गई बेटा |” सुनीता दलाल की नानी पुष्पा ने मीना गौतम को देखकर कहा |

सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी और लंच में गर्मागर्म खाना उसके लिए लेकर आ गईं थी |

“इसकी क्या ज़रूरत थी,नानीजी ,मैं तो इसके लिए भी रोटियाँ लाई हूँ |”मीना ने अपने लंच का बाक्स खोलते हुए और नानी के हाथ में लंचबॉक्स बाक्स देखकर कहा |

“बेटी ,बीमारी में साफ़-सफ़ाई की बहुत ज़रूरत होती है |तुम लोगों का पता नहीं,पर मैं तो नहा-धोकर,पूजा-पाठ करके ही रसोईं करती हूँ |”

नानी की बात सुन दोनों आँखों में देखतीं हैं और मुस्कुरा पड़ती हैं |

“ले मीना ,ये सब्ज़ी खाकर बता,कैसी बनी है ?”अपने लिए और सुनीता के लिए अलग अपने डिब्बों में खाना निकाल नानी ने कहा |

“सुनीता,तेरी पसंद की भिंडी लाई हूँ| “कहते हुए मीना ने लंचबॉक्स उसकी तरफ बढ़ाया |

“अरे नहीं-नहीं,अभी ये बीमार है |अभी साफ़-सफ़ाई की बहुत जरूरत है |”कहते हुए नानी झल्लाईं और सुनीता के हाथ बढ़ते-बढ़ते थम गए |

दोनों की आँखे एकबार मिली फिर झुक गईं |

खाना खत्म करके मीना ने रोटी वाला अलमुनियम लिफ़ाफ़ा टेबल पर रखा और अपनी क्लास के लिए चल दी |नानी ने एक बच्चे को बुलवाया और उससे कहकर लिफ़ाफ़ा कूड़ेदान में डलवा दिया |

नानी रोज़ आती रहीं और रोज़ दीवार में एक रद्दा जोड़ती जातीं |

“सुनीता,तुने इस छोटी जात की लड़की को सहेली बना रखा है |मुझे ये अच्छा नहीं लगता |तू दूसरे स्कूल में बदली करवा ले|”

“नानी वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है !आपका व्यवहार हमें हर्ट करता है |”

“बेटी,ये मैं तेरे भले के लिए कह रहीं हूँ |मास्टरनी होने से वो हमारी बिरादरी की थोड़े ना हो जाएगी,रहेगी तो - - - -“

उसी रोज़ छुट्टी के वक्त,स्कूल से कुछ दूर

“मीना टिक्की खाएगी |”

“तुझे खाना है तो कम्पनी दे दूंगी |”

“नानी आप ?”

“बच्चों का मन है तो मैं भी -- --, अरे भाई तीन प्लेट टिक्की लगा दे |”

“नहीं भईया,दो प्लेट ही बनाना,मीना मैं तेरी प्लेट में खाऊँगी |”

“तीन प्लेट ले ले ,पैसे मैं दे दूँगी |तू अभी-अभी ठीक हुई है |जूठा खाने से फिर कहीं - - --”नानी ने मुँह बनाते हुए कहा |

“नही नानी,अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ और मीना ने प्रोमिस किया था कि मेरे ठीक होने पर वो मुझे  पार्टी देगी |क्यों मीना ”सुनीता ने लाडपूर्वक नानी के गले में हाथ डाले हुए और मीना की तरफ देखते हुए कहा |

“ठीक है|,सुनीता,जैसा कहती है |”कुछ गहरी साँस लेते हुए और नानी की तरफ ना देखते हुए वो बोली

दोनों मज़े से टिक्की खाती रहीं |नानी ने किसी तरह आधी टिक्की पानी के जरिए गले से नीचे उतारी और आधी यह कहते हुए छोड़ दी कि उनका जी खराब हो रहा था |

“बेटी,अब तू बिल्कुल ठीक है |भगवान तुझे सद्बुद्धि दे ! ”कहते हुए उसी शाम नानी मामा के घर लौट गईं |

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on March 19, 2015 at 11:10pm

शुक्रिया डा.विजय शंकर सर एवं गिरिराज भंडारी सर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 10:33am

आदरणीय सोमेश भाई , अफसोस कि कानून केवल तन पर काम करता है , मानसिकता नही बदल सकता , दर असल मन के अंदर दूरियाँ  वैसी ही हैं । रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 10:25am
आदरणीय सोमेश जी , कथा अच्छी है ,आप महत्वपूर्ण विषय लेते हैं , बधाई, सादर।
Comment by Nidhi Agrawal on March 19, 2015 at 10:12am

सोमेश जी धन्यवाद्.. अगर यह पात्र का अनुभव है तो मुझे कुछ नहीं कहना .. 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 18, 2015 at 10:31pm

संसमरणात्मक कथा की सुन्दर तीसरी कड़ी!आजभी गाव ही नही शहरो में भी ऐसा होना आम बात है!बहुत बहुत बधाईयां!भाई सोमेश जी!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:01pm

सोमेश भाई , सुन्दर , आप लिख भी रहें हैं और विद्वजनो से  सीखने को भी मिल रहा है , इससे बढ़िया बात और क्या होगी :-))), हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 6:53pm

निधि जी ,संसमरण में प्रख्यात निजी स्कूलों वाला माहौल ढूंढने की कोशिश करेंगी तो कहानी अटपटी ही लगेगी |इस संस्मरण का आधार दिल्ली के देहात क्षेत्र का एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय है |सरकारी स्कूलों में विशेष तौर पर अभी प्राथमिक में स्टाफरूम कल्चर अनिवार्य नहीं है |स्कूलों में कई तरह के वर्ग विभाजन कार्य करते हैं जिसमें जाति ,पद,वरिष्ठता,नियुक्ति-स्वरूप (पक्का-कच्चा )  सभी अपनी तरह से काम करते हैं |आदर्श स्थितियों से परे पुराने समय में शीघ्र विवाह और सन्तान होने और 40 साल की उम्र माँ नानी बनना आम घटना रही है |ई टी.ई जैसे कोर्से करके पहले कई लोग 19-20 वर्ष में नियुक्ति पा लेते थे |अपवाद और पौत्री-स्नेह वशीभूत नानी का रोज़ आना और देहात का स्कूल होने के कारण किसी का आपत्ति ना करना संभव है |पोती होने के कारण और नानी के स्नेह के कारण सुनीता हद्द होने तक चुप रही |मीना नानी के व्यवहार से आहत जरुर थी पर अपनी प्रिय सखि को हर्ट करने से बचने के लिए और नानी के लिहाज़ वश चुप्प रही |यकीन कीजिए ये एक संस्मरण है और ये सब मेरे पात्र के साथ हुआ है |

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 6:35pm

जैसा आ.गोपाल सर और निधि जी ने ईंगित किया शायद नानी के विद्यालय आगमन की बात को और स्पष्टता की जरूरत है ,ऐसा करने की कोशिश करूँगा 

Comment by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:24pm

कहानी में कई झोल हैं .. मुझे भी थोडा खटका .. 

१. खाना जहाँ तक मेरा ख़याल है स्टाफ रूम में खाया जाता है ..क्लास रूम में नहीं. स्टाफ रूम में और भी टीचर होंगे

२. अगर क्लास रूम में खाया जाएगा तो हो सकता है वहां बच्चे भी होंगे जो खाना खा रहे होंगे या आ-जा रहे होंगे 

३. अगर सुनीता टीचर है मतलब कम से कम २५ की तो होगी.. इस हिसाब से उसकी नानी कम से कम ७० साल की तो होगी.. 

   ऐसे में एकाध दिन नानी का स्कूल आना जंच भी जाए रोज रोज उनका आना ज़रा जंचता नहीं है 

   दुसरे उस उम्र के लोग अकेले स्कूल में खाना लेकर आ पाने की स्थिति में नहीं होते 

४. नानी स्कूल में टिफिन देने आ भी जाए .. खाना समाप्त होने तक रुकना कुछ समझ में नहीं आता 

५. आखरी दिन छुट्टी के वक़्त नानीजी साथ में कैसे थी? वो तो लंच के समय खाना लेकर आती थी 

६. रोज रोज नानी द्वारा अपमान करने के बावजूद सुनीता इतने दिनों तक नानी का व्यवहार क्यों झेलती रही

   पहले या दुसरे ही दिन जवाब दे दिया होता.. या मीना ने साथ खाने से इनकार कर दिया होता 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 12:50pm

प्रिय सोमेश

मैं शिल्प् की  बात नहीं  करूंगा  . कहानी पर कुछ् कहता हूँ ----

"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है |

सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी--------------यहाँ यानि की घर ----

बुलाया क्लास रूम में और जाना हुआ घर

सस्नेह .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service