दीवारों में दरारें-3
मीना की अध्यापिका पद पर नियुक्ति के बाद
"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है | “आशा ये सन्देशा देकर चली जाती है |
रूम में पहुँचने पर |
“आ गई बेटा |” सुनीता दलाल की नानी पुष्पा ने मीना गौतम को देखकर कहा |
सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी और लंच में गर्मागर्म खाना उसके लिए लेकर आ गईं थी |
“इसकी क्या ज़रूरत थी,नानीजी ,मैं तो इसके लिए भी रोटियाँ लाई हूँ |”मीना ने अपने लंच का बाक्स खोलते हुए और नानी के हाथ में लंचबॉक्स बाक्स देखकर कहा |
“बेटी ,बीमारी में साफ़-सफ़ाई की बहुत ज़रूरत होती है |तुम लोगों का पता नहीं,पर मैं तो नहा-धोकर,पूजा-पाठ करके ही रसोईं करती हूँ |”
नानी की बात सुन दोनों आँखों में देखतीं हैं और मुस्कुरा पड़ती हैं |
“ले मीना ,ये सब्ज़ी खाकर बता,कैसी बनी है ?”अपने लिए और सुनीता के लिए अलग अपने डिब्बों में खाना निकाल नानी ने कहा |
“सुनीता,तेरी पसंद की भिंडी लाई हूँ| “कहते हुए मीना ने लंचबॉक्स उसकी तरफ बढ़ाया |
“अरे नहीं-नहीं,अभी ये बीमार है |अभी साफ़-सफ़ाई की बहुत जरूरत है |”कहते हुए नानी झल्लाईं और सुनीता के हाथ बढ़ते-बढ़ते थम गए |
दोनों की आँखे एकबार मिली फिर झुक गईं |
खाना खत्म करके मीना ने रोटी वाला अलमुनियम लिफ़ाफ़ा टेबल पर रखा और अपनी क्लास के लिए चल दी |नानी ने एक बच्चे को बुलवाया और उससे कहकर लिफ़ाफ़ा कूड़ेदान में डलवा दिया |
नानी रोज़ आती रहीं और रोज़ दीवार में एक रद्दा जोड़ती जातीं |
“सुनीता,तुने इस छोटी जात की लड़की को सहेली बना रखा है |मुझे ये अच्छा नहीं लगता |तू दूसरे स्कूल में बदली करवा ले|”
“नानी वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है !आपका व्यवहार हमें हर्ट करता है |”
“बेटी,ये मैं तेरे भले के लिए कह रहीं हूँ |मास्टरनी होने से वो हमारी बिरादरी की थोड़े ना हो जाएगी,रहेगी तो - - - -“
उसी रोज़ छुट्टी के वक्त,स्कूल से कुछ दूर
“मीना टिक्की खाएगी |”
“तुझे खाना है तो कम्पनी दे दूंगी |”
“नानी आप ?”
“बच्चों का मन है तो मैं भी -- --, अरे भाई तीन प्लेट टिक्की लगा दे |”
“नहीं भईया,दो प्लेट ही बनाना,मीना मैं तेरी प्लेट में खाऊँगी |”
“तीन प्लेट ले ले ,पैसे मैं दे दूँगी |तू अभी-अभी ठीक हुई है |जूठा खाने से फिर कहीं - - --”नानी ने मुँह बनाते हुए कहा |
“नही नानी,अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ और मीना ने प्रोमिस किया था कि मेरे ठीक होने पर वो मुझे पार्टी देगी |क्यों मीना ”सुनीता ने लाडपूर्वक नानी के गले में हाथ डाले हुए और मीना की तरफ देखते हुए कहा |
“ठीक है|,सुनीता,जैसा कहती है |”कुछ गहरी साँस लेते हुए और नानी की तरफ ना देखते हुए वो बोली
दोनों मज़े से टिक्की खाती रहीं |नानी ने किसी तरह आधी टिक्की पानी के जरिए गले से नीचे उतारी और आधी यह कहते हुए छोड़ दी कि उनका जी खराब हो रहा था |
“बेटी,अब तू बिल्कुल ठीक है |भगवान तुझे सद्बुद्धि दे ! ”कहते हुए उसी शाम नानी मामा के घर लौट गईं |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया डा.विजय शंकर सर एवं गिरिराज भंडारी सर
आदरणीय सोमेश भाई , अफसोस कि कानून केवल तन पर काम करता है , मानसिकता नही बदल सकता , दर असल मन के अंदर दूरियाँ वैसी ही हैं । रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
सोमेश जी धन्यवाद्.. अगर यह पात्र का अनुभव है तो मुझे कुछ नहीं कहना ..
संसमरणात्मक कथा की सुन्दर तीसरी कड़ी!आजभी गाव ही नही शहरो में भी ऐसा होना आम बात है!बहुत बहुत बधाईयां!भाई सोमेश जी!
सोमेश भाई , सुन्दर , आप लिख भी रहें हैं और विद्वजनो से सीखने को भी मिल रहा है , इससे बढ़िया बात और क्या होगी :-))), हार्दिक बधाई आपको ! सादर
निधि जी ,संसमरण में प्रख्यात निजी स्कूलों वाला माहौल ढूंढने की कोशिश करेंगी तो कहानी अटपटी ही लगेगी |इस संस्मरण का आधार दिल्ली के देहात क्षेत्र का एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय है |सरकारी स्कूलों में विशेष तौर पर अभी प्राथमिक में स्टाफरूम कल्चर अनिवार्य नहीं है |स्कूलों में कई तरह के वर्ग विभाजन कार्य करते हैं जिसमें जाति ,पद,वरिष्ठता,नियुक्ति-स्वरूप (पक्का-कच्चा ) सभी अपनी तरह से काम करते हैं |आदर्श स्थितियों से परे पुराने समय में शीघ्र विवाह और सन्तान होने और 40 साल की उम्र माँ नानी बनना आम घटना रही है |ई टी.ई जैसे कोर्से करके पहले कई लोग 19-20 वर्ष में नियुक्ति पा लेते थे |अपवाद और पौत्री-स्नेह वशीभूत नानी का रोज़ आना और देहात का स्कूल होने के कारण किसी का आपत्ति ना करना संभव है |पोती होने के कारण और नानी के स्नेह के कारण सुनीता हद्द होने तक चुप रही |मीना नानी के व्यवहार से आहत जरुर थी पर अपनी प्रिय सखि को हर्ट करने से बचने के लिए और नानी के लिहाज़ वश चुप्प रही |यकीन कीजिए ये एक संस्मरण है और ये सब मेरे पात्र के साथ हुआ है |
जैसा आ.गोपाल सर और निधि जी ने ईंगित किया शायद नानी के विद्यालय आगमन की बात को और स्पष्टता की जरूरत है ,ऐसा करने की कोशिश करूँगा
कहानी में कई झोल हैं .. मुझे भी थोडा खटका ..
१. खाना जहाँ तक मेरा ख़याल है स्टाफ रूम में खाया जाता है ..क्लास रूम में नहीं. स्टाफ रूम में और भी टीचर होंगे
२. अगर क्लास रूम में खाया जाएगा तो हो सकता है वहां बच्चे भी होंगे जो खाना खा रहे होंगे या आ-जा रहे होंगे
३. अगर सुनीता टीचर है मतलब कम से कम २५ की तो होगी.. इस हिसाब से उसकी नानी कम से कम ७० साल की तो होगी..
ऐसे में एकाध दिन नानी का स्कूल आना जंच भी जाए रोज रोज उनका आना ज़रा जंचता नहीं है
दुसरे उस उम्र के लोग अकेले स्कूल में खाना लेकर आ पाने की स्थिति में नहीं होते
४. नानी स्कूल में टिफिन देने आ भी जाए .. खाना समाप्त होने तक रुकना कुछ समझ में नहीं आता
५. आखरी दिन छुट्टी के वक़्त नानीजी साथ में कैसे थी? वो तो लंच के समय खाना लेकर आती थी
६. रोज रोज नानी द्वारा अपमान करने के बावजूद सुनीता इतने दिनों तक नानी का व्यवहार क्यों झेलती रही
पहले या दुसरे ही दिन जवाब दे दिया होता.. या मीना ने साथ खाने से इनकार कर दिया होता
प्रिय सोमेश
मैं शिल्प् की बात नहीं करूंगा . कहानी पर कुछ् कहता हूँ ----
"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है |
सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी--------------यहाँ यानि की घर ----
बुलाया क्लास रूम में और जाना हुआ घर
सस्नेह .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online