कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- तीन
आँगन में आते ही युवक इस तरह उछल पड़ा मानों उसके पाँव तले विषधर आ गया हो
आँगन में बधना देखकर युवक के गले से हल्की चीख निकल पड़ी. वह भयभीत नजरों से नाजिमा की तरफ देखा.
"भाईजान, मुसलमानों के भय से छिपते-छिपाते आपने एक मुसलमान का ही दरवाजा खटखटा दिया है. किन्तु, आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है. गलियों में मजहब और जाति के नाम पर दंगे करने वाले दरअसल न हिन्दू होते हैं,न मुसलमान . वे तो बस वहशी और दरिन्दे होते है. यहाँ हमारी लाशों पर से होकर ही कोई आप दोनों तक पहुँच पायेगा ". नाजिमा का स्नेह पाकर युवती टूट गयी और नाजिमा के गले लगकर फफक पड़ी.
"रो मत बहन! यह रहीम मियाँ का घर है,गिरधरपुर का बस स्टैण्ड नहीं . डरो मत, यहाँ भगदड़ नहीं मचेगी. " फिर उसने युवक से पूछा --"क्या नाम है इसका"
"सुधा ." नाजिमा की बातों से युवक लगभग आश्वस्त हो चुका था. दोनों भाई-बहन को वह अपने कमरे में ले आयी और फिर उसने युवक से हँसते हुए पूछा--"भूख तो लगी होगी पंडित जी? हमारे घर का कुछ खा सकते हैं क्या? "
"बहन, जब जिन्दगी और मौत का फासला सिमट कर कम हो जाता है तो इंसानों के बनाये जाति-धर्म के चोंचले बड़े खोखले लगने लगते हैं . जिन्दगी सिर्फ सुरक्षा मांगती है, संरक्षक का विवरण नहीं. जब अमर सिंह राठौर ने रेगिस्तान में मुसलमान बाप-बेटे की प्यास बुझायी थी तो उनके प्राण-पखेरू यह कहकर उड़ नहीं गए कि यह काफिर का जल है,यदि उस समय जल नहीं मिलता तो उनके प्राण-पखेरू अवश्य उड़ गए होते." जिंदगी जब कोई बड़ा दृष्टान्त प्रस्तुत करती है तो न जाने ये ओछी परम्परायें-मान्यतायें कहाँ अपना दागदार चेहरा छिपा लेती हैं
नाजिमा ने दोनों के सामने दूध की दो प्यालियाँ और चार-पांच रोटियाँ लाकर रख दी और बिना किसी हील-हवाले के दोनों खाने लगे. इस बीच रहीम मिया को जगाकर नाजिमा ने सब कुछ बता दिया. भयवश दबी जबान से रहीम ने उन दोनों को पनाह देने पर एतराज किया. .......................................... क्रमश:
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