कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- चार
भयवश दबी जबान से रहीम ने उन दोनों को पनाह देने पर एतराज किया.
किन्तु नाजिमा ने अपने अब्बा को ऐसा फटकारा कि उनकी बोलती बंद हो गयी . दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते , शायद आँखें भी होती हैं . ना जानें कैसे सुबह रुसुलपुर में यह बात आग की तरह फैल गयी कि रहीम मियां के घर में हिन्दू भाई-बहन को पनाह दिया गया है . फिर क्या था, कुछ लोग रहीम मियां के आंगन में आ धमके. उनमें से दो-चार ही रुसुलपुर के थे बाकी को नाजिमा नहीं पहचानती थी . आये लोगों में से एक ने आगे बढ़कर रहीम मियां से कहा-- "कहां छिपा रखे हो हरामजादों को ?" रहीम मियां भयभीत हो उठे लेकिन नाजिमा ने शायद खुद को इस हालात के लिए तैयार कर लिया था . छुटते ही बोली--"जबान को लगाम दो. उन्हें छिपाया नहीं गया है, मेहमान बनाकर रखा गया है." रुसुलपुर का जुम्मन ठीक नाजिमा के सामने आकर खड़ा हो गया--"चुपचाप उन्हें बाहर निकाल दे नाजिमा. इसी कमरे में है न ?" कमरे की तरफ संकेत करके जुम्मन ने कहा . कमरे की चौखट पर एक पाँव टिकाते हुए नाजिमा दहाड़ उठी-"एक कदम भी आगे बढ़ाया तो ठीक नहीं होगा जुम्मन."
"नाजिमा ,उन दोनों को बाहर निकाल दे."
"भला क्यों "
भीड़ में से किसी ने कहा--"हम उस लड़की को अगवा करेंगे."
"मुंह नोंच लूंगी अगर किसी ने फिर ये बात कही तो ." गुस्से से नाजिमा हांफने लगी थी . रहीम मियां काफी डरे हुए थे. अचानक उन्हें बड़े मियां का ख्याल आया . आंगन में खड़े एक छोटे से लड़के को रहीम ने बड़े मियां को बुलाने के लिए दौड़ा दिया . गांव में बड़े मियां का काफी दबदबा था .
भीड़ में खलबली मच गयी थी. जबरन उन दोनों को बाहर खींच निकालने की योजना बनने लगी. ................................................ क्रमश:
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kahani bahut badhia aage badhi hain
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