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१२२२ १२२२ १२२२ १२२ 

तेरी हर शै मुझे भाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

मुझे तू देख शरमाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

कभी हो इश्क़ तो रुन-झुन कहीं महसूस होगी

इशारे कर के समझाए तो क्या वो इश्क़ होगा 

 

पिए ना जो कभी झूठा, मगर मिलने पे अकसर

गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

सभी से हँस के बोले, पीठ पीछे मुंह चिढ़ाए

मेरे नज़दीक इतराए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

हज़ारों बार हाए, बाय, उनको बोलने पर   

पलट के बोल दे हाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

सभी रिश्ते, बहू, बेटी, बहन, माँ, के निभा कर

मेरे पहलू में इठलाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

तुझे सोचा नहीं होता अभी, पर यक-ब-यक ही

नज़र आएं तेरे साए तो क्या वो इश्क़ होगा

 

तेरी खातिर कहे हैं शेर, मैंने ज़िन्दगी के

तेरा दिल ही न छू पाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

हवा मगरिब, मैं मशरिक, उड़ के चुन्नी आसमानी

मेरी जानिब चली आए तो क्या वो इश्क़ होगा

 

उसे छू कर, मुझे छू कर, कभी जो शोख तितली 

उड़ी जाए उड़ी जाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

नदी, झरने, पवन, झींगुर, सितारे, मेघ, तितली

जिसे देखूं वही गाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

मुझे तू एक टक देखे, कहीं खो जाए, पर फिर

अचानक से जो मुस्काए, तो क्या वो इश्क़ होगा

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 560

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Comment by Harash Mahajan on February 24, 2019 at 9:48pm

आदरणीय नासवा जी सूंदर पेशकश । बधाई ।

Comment by दिगंबर नासवा on February 21, 2019 at 8:56am

बहुत आभार समर कबीर साहब आपका इस मार्ग दर्शन के लिए ...

Comment by Samar kabeer on February 20, 2019 at 10:08pm

जी,यही बहतर है,सहीह निर्णय ।

Comment by दिगंबर नासवा on February 20, 2019 at 8:18pm

सहमत हूँ आदरणीय समर जी ... इस शेर को खारिज करना ही उचित है ...

Comment by Samar kabeer on February 20, 2019 at 2:13pm

मेरे नज़दीक "चाये" क़ाफ़िया उचित नहीं है ।

Comment by दिगंबर नासवा on February 20, 2019 at 12:05pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय समर साहब ... चाय, चाये ... मैंने चाए  बना के इस्तेमाल किया है ... वैसे चाय ही ठीक शंड है शायद ...

उम्मीद है ख़ारिज नहीं होगा ये शेर ... 

Comment by Samar kabeer on February 19, 2019 at 2:26pm

जनाब दिगंबर नासवा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा'

'चाय' कि "चाये"?

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