इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई
आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई
माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई
कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटीं न तुम
इश्क की मंडी में जानाँ तबसे मंदी हो गई
बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा
रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई
कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
बहुत शुक्रिया शिज्जु जी ...
आ. दिगंबर नासवा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई आपको
शुक्रिया सुरखाब साहब ...
आ़ दिगंबर नासवा साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारक बाद
बहुत आभार लक्ष्मण जी ...
अच्छा है सुझाव आपका ... दरअसल मैं चाँद के चौदह और पंद्रह दिन का चक्र पूरा करना चाहता था इसलिए स्पष्ट कर के लिखा ...
बहुत बहुत आभार सराहना के लिए ...
आ. भाई दिगम्बर जी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
दो हफ्ते को - पखवाड़े' करने से भी दोष निकल जायेगा । सादर...
बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी ...
ये दोष हर बार मेरी नज़र में नहीं आ पाता ... आपके सुझाव बहुत उत्तम हैं ... आपका आभार है ग़ज़ल है को सुगम बनाने के लिए ...
जनाब दिगंबर नासवा जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'चाँद दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,"चाँद" की जगह "माह" कर सकते हैं,और नहीं करें तो भी कोई बात नहीं,एक सुझाव मात्र है ।
'कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटी न तुम
इश्क की मंडी में जाना तबसे मंदी हो गई'
इस शैर के ऊला में 'लौटी' को "लौटीं" और सानी में 'जाना' को "जानाँ" करना उचित होगा ।
'कान दरवाज़े की कुंडी में अटक के रह गए'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर लें तो ऐब निकल सकता है:-
'कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए'
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online