समय के साय
समय पास आकर, बहुत पास
कोई भूल-सुधार न सोचे
अकल्पित एकान्तों में सरक जाए
झटकारते कुछ धूमैले साय अपने
गहरे, कहीं गहरे बीच छोड़ जाए
कुछ ऐसे घबराय बोझिल साय
भरमाय मन में कटे-पिटे गुमसुम
सुनसान कमरों में कोई इस कोने
कोई उस कोने आसन बिछाए
मानो कोई पथिक युग से थका हारा
राह चलते रुक जाए और होले-होले
कंधे से समय की गठरी उतार
भावविभोर, अभिलषित गाँठें खोले
कोई एक साया, एक साया "विशेष"
पूज्य-पुण्य अमोल-रत्न हो मानो
आने वाला हर नया नाता संवेदित
उस अमुक विशेष साय की
प्रदक्षिणा करते नहीं थकता
और हम नए हर रिश्ते की धड़कन में
आवाज़ में, चाल में, विचार में
"विशेष" पुराने उस साय की पदचाप सुनते
जीते हैं आशंकाहत, रगों में बरसों चौकन्ने
वह अमुक साया हर नए साय का तीर्थ बना
भविष्य की संभावनाओं को हमसे ठगता
वास्तव में "कैंसर"-सा रोग बन जाता है
बढ़ते-बढ़ते अनियंत्रित वह "कैंसर"
अब सारे शरीर में फैला
हँसता जाता है, हँसता ही जाता है
अनबूझे उपहास में दानव-सी हँसी
नया रिश्ता ऐसे में मानो घुट मरते
खिलने से पहले छोड़ देता है दम
रह जाता है भीतर-बाहर अनेकानेक
असीम असहनीयअकेलेपन का मातम
झुर्रियों में उलझी मस्तक-रेखाएँ
सफ़ेद हो रहे बाल
खाली हथेली पर मिटती जुड़ती-कटती
सलवटों भरी अधटूटी लकीरें
अपना सब कुछ हार कर अंत में
ज़िन्दगी से दूर हो जाती है अपनी ही पहचान
यादें हमारी कि जैसे कोई रेलगाड़ी के डब्बे
असीम अनिश्चितता का गंभीर भान लिए
रेंगती पटरियों से छूटे, धड़ाम-धड़ाम गिरे
समय के साय में उस पल
समाप्त हो जाती है ’हमारी’ सृष्टि
बंद कर लेती है ज़िन्दगी
वेदना के द्वार भी
खोजने को अब कुछ बाकी नहीं
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी
आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है हार्दिक बधाई ।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, प्रिय भाई समर कबीर जी।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online