२२१/२१२२/२२१/ २१२२
किस काम के हैं नेता किस काम का ये शासन
इनके रहे वतन में जब नित्य होनी अनबन।१।
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किस बात से हैं सेवक कहते पहन के खादी
निर्धन के घर अगर ये डलवा न पाये राशन।२।
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अंग्रेज थे बुरे या चम्बल के चोर डाकू
गर जो हो लूट खाना भर देश का ही जनधन।३।
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किस बात की हो चिन्ता किस बात से परेशाँ
मथकर के दे रही है जनता इन्हें तो मक्खन।४।
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जे पी सरीखे नेता जनती न अब सियासत
करता है आमजन को अब कौन बोलो अनशन।५।
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अब फिर से कोशिशें कर बँटवारा चाहते हैं
इनकी ही जिद से पहले बाँटा गया था आँगन।६।
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मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व प्रशंसा के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
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