2122 2122 2122 212
महकते अल्फाज़ जैसे अब शरारे हो गए
वक़्त की गर्दिश में शामिल ख़त तुम्हारे हो गए
जिंदगी की उलझनों ने जेहन को घेरा है यूं
तेरी यादों के मरासिम खुद किनारे हो गए
शायरी, सिगरेट, तंबाकू ज़िन्दगी भर की तड़प
एक सहारा क्या गया कितने सारे हो गए
पहले एहसास ओ सुखन में इश्क थे कायम सभी
ओढ़कर जिस्मों को ही अब इश्क़ सारे हो गए
बागवां से जिंदगी का ये सबक सीखा हूं मैं
फूल खिल जाने पर गैरों के दुलारे हो गए
अपनी हस्ती की हिफाज़त कीजिए अहसास जी
जब समंदर से मिले दरिया भी खारे हो गए
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'महकते अल्फाज़ जैसे अब शरारे हो गए'
ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,'महकते' शब्द का वज़्न 122 है,देखियेगा ।
'शायरी, सिगरेट, तंबाकू ज़िन्दगी भर की तड़प
एक सहारा क्या गया कितने सारे हो गए'
ये शैर बह्र से ख़ारिज है ।
'फूल खिल जाने पर गैरों के दुलारे हो गए'
ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है ।
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