For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुज़ारिश

मुहब्बत में मज़हब न हो
मज़हब में हो मुहब्बत
मुहब्बत ही हो सभी का मज़हब
तो सोचो, हाँ, सोचो तो ज़रा
कैसी होगी यह कायनात
कैसी होगी यह ज़मीन
खुश होगा कितना यह आसमान

कायनात जो खुदगरज़ी में हर लम्हा
सिकुड़ती जा रही है कब से ...
अब सात समंदरों के किनारों को तोड़
चंगुल में दबोचते आज के मज़हब को छोड़
दिल से आएँ अगर सभी दिल के करीब
तो यह कायनात फ़कत "बड़ी लगेगी" नहीं
फैल जाएगी यह हकीकत में इतनी कि
सच में हो जाएगी बड़ी, सभी को लगेगी अपनी

पर यह तो मुनासिब होगा तब न
मज़हब जब मज़हब न होगा
रुह की बुलंदी के रास्ते में रुकावट बना
मज़हब के नाम कोई खंजर न होगा
मुहब्बत से मेरी-तुम्हारी-सभी की
एक इलतिजा होगी
कि मुहब्बत ही रहे हर किसी का मकसद
मुहब्बत ही हो असल में सभी का मज़हब

"मैं" और "तुम" के नकली नारों का गला घोट
मज़हब की ज़ंग लगी ज़ंजीरों को तोड़
मुहब्बत में पा लेगा इनसान असली मज़हब
न होगा कोई सवाल तब औकात का
इनसान का इनसान पर होगा ऐतबार
कायनात में कहीं कोई मुफ़्लिसी न होगी
मुहब्बत पर हर इनसान का तब बराबर
ग़ालिबन पाक इख़्तियार होगा

मशऱिक से मग़रिब तक "एक ही मज़हब" का
हँसता हुआ यह सुनहरा सपना
है मेरा ही नहीं, कुदरत को भी है मंज़ूर
यह आज एक सपना ही सही
सोचता हूँ किसी दिन कितना प्यारा
कितना मुबारक होगा इस सपने को जीना
दिलों में सभी के होगी मुहब्बत की खुशबू
सब तरफ़ मौसिमे बहार होगी

आहिस्ता-आहिस्ता ही सही
जब भी आएगा वह दिन "एक" मज़हब का
सुन लो आज अरबाबे-सुखन का नारा
वही दिन काबिले अदब होगा
वही मज़हब काबिले आदाब होगा
              ---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

-------------------------------------
मुफ़्लिसी                 = दरिद्र्ता
मौसिमे बहार           = बसंत का मौसम
औकात                  = प्रतिष्ठा
काबिले अदब          = प्रतिष्ठा के काबिल
काबिले आदाब        = सलाम के काबिल
मग़रिब                  = पश्चिम
गुज़ारिश                 = निवेदन
इलतिजा                  = निवेदन
अरबाबे-सुखन         = कवि लोग
आहिस्ता                 = धीरे
ग़ालिबन                 = सम्भवत:

मशऱिक                  =  पूर्व

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 15, 2020 at 4:01pm

मेरे प्रिय भाई समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।
आपने अच्छे सुझाव दिए, उनके लिए तहे दिल से शुक्रिया। वह सारे मैंने अभी सही करके रचना को पुन: पोस्ट किया है।
ऐसे ही मार्ग-दर्शन करते रहें। सच, मन करता है, मैं कई साल पहले आपका शागिर्द रहा होता तो कितना सीख लेता आपसे।
आपके कुशल और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना रहती है।

Comment by vijay nikore on February 15, 2020 at 3:56pm

मेरे प्रिय मित्र लक्ष्मण जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on February 12, 2020 at 8:11am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, अच्छा पैग़ाम देती एक बहतरीन रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'एक इलतजा होगी'

इस पंक्ति में 'इलतजा' 

को "इलतिजा" कर लें ।

'मज़हब की ज़ंग लगी ज़जीरों को तोड़'

इस पंक्ति में 'ज़जीरों' को "ज़ंजीरों" कर लें ।

'ग़ालीबन पाक इख़्तियार होगा'

इस पंक्ति में 'ग़ालीबन' 

को "ग़ालिबन" कर लें ।

'पूरब से मगरिब तक "एक ही मज़हब" का'

इस पंक्ति में 'पूरब से मगरिब' को "मशरिक़ से मग़रिब" कर लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2020 at 6:32pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। समसामयिक उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
13 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
21 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service