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डरते  हैं  जो मुश्किल से घबराते हैं  ख़तरों से , 

लरज़ीदः क़दम फिर वो मन्ज़िल को नहीं पाते ,, 

गर अ़ज़्म जो पुख़्ता हो लें काम भी हिम्मत से, 

तो  लोग  सितारों  से  आगे  हैं  निकल  जाते ।

                   

'मौलिक व अप्रकाशित' 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 10, 2020 at 9:57pm

जनाब कबीर साहब हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद शुक्रिया।

आपने बजा फ़रमाया, तकनीकी तौर पर मेरी शायरी और क़ित'अ

में बहुत सारी खा़मियां हो सकती हैं, सीखना चाहता हूं।

आपकी गाइडेंस मेरे लिये बहुत अहम है, मैंने ग़ज़ल की कक्षा

ज्वाइन कर ली है। बेशक आपकी इस्लाह के बाद क़ित'अ बेहतर

हुआ है। आइन्द: भी आपकी नवाज़िश मुश्ताक़ रहूंगा। 

Comment by Samar kabeer on March 10, 2020 at 3:16pm

जनाब अमीरुद्दीन साहिब आदाब,क़ित'अ का प्रयास अच्छा है,लेकिन बह्र और क़वाफ़ी दुरुस्त नहीं हैं,ग़ज़ल सीखने के लिए ओबीओ पर मौजूद 'ग़ज़ल की कक्षा' का लाभ लें, इस क़ित'अ को यूँ कर सकते हैं:-

221 1222 221 1222

"डरते हैं जो मुश्किल से घबराते हैं ख़तरों से

लरज़ीद: क़दम फिर वो मंज़िल को नहीं पाते

गर अज़्म जो पुख़्ता हो लें काम भी हिम्मत से

वो लोग सितारों से आगे हैं निकल जाते"

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