For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रौशनी दिल में नहीं हो तो ख़तर बनता है,

आग सीने में लगी  हो तो शरर  बनता है।

जिसको ढाला न गया हो किसी भी साँचे में, 

इब्ने आदम यूं ही हरगिज़ न बशर बनता है। 

टूट  जाते  हैं कई  रिश्ते  ग़लत  फ़हमी  से,

रंजिशें ख़ुद ही भुला दे जो, बशर बनता है।

बात जो निकली ज़बां से न वो फिर रुकती है,

राज़  हो जाए  अ़यां  गर, तो ज़ह'र  बनता है।

अदबियत जिसको विरासत में ही मिल जाती हो,

तब कहीं  जा के  'अ़ली'  कोई  'जिगर' बनता है।

हस्बे  फ़ितरत ही वो पहचान लिया  जाता  है, 

कोई बुज़दिल जो कभी सीना सिपर बनता है।

ज़िन्दगी  लग'ती  है  सीपी  को गुहर  होने  में, 

एक दिन में  कहां अन्दाज़  ए नज़र बनता है। 

' मौलिक व अप्रकाशित' 

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2020 at 8:57pm

ब हुज़ूर जनाब कबीर उस्ताद ए मुहतरम आदाब, शुक्रगुजा़र हूँ आपका कि आपने अहक़र की तस्नीफ़ पर रौशनी डालने और रहबरी करने के लिए अपने बेशकी़मती वक़्त का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च किया है। आपसे रहबरी और इस्लाह मिलना मेरे लिए किसी तोहफ़े से कम नहीं है। जनाब रवि भसीन जी और आपके सुझावों और नसीहतों से फैज़ लेकर अपनी रचनाओं को बेहतर करने के लिए कोशां रहूँगा। आपके और रवि भसीन जी के तक़रीबन सभी कमेंट क़ुबूल हैं ।सादर। 

Comment by Samar kabeer on March 31, 2020 at 3:04pm

जनाब अमीरुद्दीन जी आदाब,ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,रवि भसीन जी ग़ज़ल की त्रुटियाँ बता ही चुके हैं ,संज्ञान लें ।

'आग सीने में लगी हो तो ज़रर  बनता है'

इस मिसरे में क़ाफ़िया रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं कर रहा है, 'ज़रर' का अर्थ होता है,नुक़सान, ख़सारा,दर्द,तकलीफ़, और ये सब चीजें होती हैं,बनती नहीं,ग़ौर करें ।

'रंजिशें भूल ही जाए जो, बशर बनता है'

इस मिसरे में भी रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ,यहाँ भी रदीफ़ 'होता है' हो रही है,ग़ौर करें ।

'राज़ हो जाए अ़यां गर, तो ज़हर बनता है'

इस मिसरे में क़ाफ़िया ग़लत है,सहीह शब्द है "ज़ह्र",देखियेगा

'अदबियत जिसको विरासत मेहि मिल जाती हो,

बस कोई ऐसे नहीं 'दाग़' ओ 'जिगर' बनता है'

इस शैर के ऊला में 'जिसको' एक वचन है,और सानी में 'दाग़-ओ-जिगर'बहुवचन, देखियेगा ।

'ह़स्बो फ़ितरत सेहि पहचान लिये  जाते हैं,

रफ़्त: रफ़्ता ज कोई शोख़ नज़र बनता है'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 29, 2020 at 10:59pm

आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान 'अमीर' साहिब, मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने नाचीज़ की सलाह पर ग़ौर किया। मुहतरम, मैं आपसे भी छोटा तालिब-ए-इल्म हूँ। कोई जसारत हो गई हो तो माज़रत-ख़्वाह हूँ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 29, 2020 at 10:21pm

ब हुज़ूर आ़ली जनाब रवि भसीन 'शाहिद' साहिब आदाब। हक़ीर की ग़ज़ल पर आपकी पहुंच, इतना वक्त देने , तशरीह व तनक़ीद और दाद  देने  के लिये बेहद मशकूर व ममनून हूँ। अल्फाज़ की हिज्जे के बारे में आपके ज़रिये दी गयी जानकारी मेरे लिये बहुत अहम है। हस्बो फ़ितरत से मेरा तात्पर्य वंश और प्रकृति से है, छटे शेर में कहां को कहाँ करना दुरूस्त होगा। मैं  शाइरी का 

बहुत ही नया और छोटा तालिबे इल्म हूँ और आपके सभी सुझाव और आलोचनाएं एवं आपकी उपस्थिति सदैव मेरे लिये बड़ी 

अहम रहेंगी। बेशक उस्तादे मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब की करीमाना नज़र पडे़ बग़ैर मेरी हर तस्नीफ़ अधूरी ही रहेगी। 

हाँ मगर आपकी मनोरम उपस्थिति से मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ है जिसके लिए साधुवाद स्वीकारें, सादर। 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 29, 2020 at 8:23pm

आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान 'अमीर' साहिब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने तरही मिस्रे पर, नाचीज़ आपको दाद और मुबारक़बाद पेश करता है।

मुहतरम आपने जो इन अल्फ़ाज़ के हिज्जे लिखे हैं:

व, मेहि, सेहि, ज, लग'ति
इन्हें ऐसे लिखना मुनासिब होगा:
वो, में ही, से ही, जो, लगती
जब आपके अश'आर की तक़ती'अ की जाएगी तो इन अल्फ़ाज़ को उस तरह से पढ़ा जाएगा जिस तरह आपने लिखा है, लेकिन हुज़ूर जब आप अपनी ग़ज़ल लिखित रूप में पेश करेंगे हैं तो उसमें साधारण हिज्जे ही लिखेंगे, जो आम लोग पढ़ सकें, और जिनमें से बहुत से ऐसे होंगे जिन्हें अरूज़ और तक़ती'अ की समझ नहीं होगी।

पाँचवें शे'र में 'ह़स्बो फ़ितरत' से शायद आपका तात्पर्य है 'हस्ब-ए-फ़ितरत' (फ़ितरत के अनुसार)। जनाब-ए-आली, देवनागरी लिपी में उर्दू लिखते समय 'ह' के नीचे तो नुक़्ता कभी भी नहीं आता है।

छटे शे'र में 'कहां' को 'कहाँ' लिखना उचित होगा।

आदरणीय, मैं भी शाइरी का तालिब-ए-इल्म ही हूँ और ये मेरी राय मात्र है, बाक़ी सौ फ़ीसदी मो'तबर इस्लाह तो उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की ही होगी। अगर आप को मेरे सुझाव लाभकारी लगें तो बेहद ख़ुशी होगी, अन्यथा इन्हें नज़र-अंदाज़ कर दीजियेगा। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service