1212 - 1122 - 1212 - 112
इबादतों में अक़ीदत की सर-कशी न मिला
महब्बतों में मेरे यार दुश्मनी न मिला
हवाओं में न कहीं अब ये ज़ह्र घुल जाए
फ़ज़ा को साफ़ ही रहने दे शोरिशी न मिला
कहीं नहीं है कोई ग़ैर दूर-दूर तलक
मगर क़रीब भी मुझको मेरा कोई न मिला
सिहर उठा हूँ किया याद वक़्त वो जब जब
चिता को आग लगाने को आदमी न मिला
मिले हैं यूँ तो हज़ारों हसीं ज़माने में
जिसे तलाशता रहता हूँ बस वही…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on May 10, 2022 at 1:57pm — 10 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
मुझको पहलू में सुला लेना मेरे प्यारे वतन
अपने आँचल की हवा देना मेरे प्यारे वतन
आ रहा हूँ तुझसे मिलने जंग के मैदान से
अपनी बाहों में उठा लेना मेरे प्यारे वतन
आ मिलूंगा जब तुझे मैं बाज़ुओं में लेके तू
मुझको झूला भी झुला देना मेरे प्यारे वतन
प्यार करना माँ के जैसे चूमकर माथा मेरा
मुझको सीने से लगा लेना मेरे प्यारे वतन
ख़ाक अपनी तेरे क़दमों छोड़ जाता हूँ…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 27, 2022 at 4:40pm — 2 Comments
22 22 - 22 22 - 22 22 - 22 2
ऐ सरहद पर मिटने वाले तुझ में जान हमारी है
इक तेरी जाँ-बाज़ी उनकी सौ जानों पर भारी है
अपने वतन की मिट्टी हमको यारो जान से प्यारी है
ख़ाक-ए-वतन बेजान नहीं ये इस में जान हमारी है
एक …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 25, 2022 at 4:37pm — 6 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
क़वाफ़ी चंद और अशआर कहने हैं कई मुझको
चुनौती दे रहे हैं चाहने वाले नई मुझको
ये किसने दिलकी चौखट पर ज़बीं ख़म करके रख दी है
अक़ीदत की मिली है ये इबारत इक नई मुझको
चले आओ ख़ुतूत-ओ-फ़ोन से ये दिल न बहलेगा
कि तुम से रू-ब-रू करनी हैं अब बातें कई मुझको
हवाओं में घुली है फिर वो ख़ुशबू जानी-पहचानी
सुनाई दी अभी आवाज़ उसकी वाक़ई मुझको
तेरे पैकर की गर्मी से पिघलता है…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 23, 2022 at 1:41pm — No Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
तुझे है जीतने की धुन तो ये इक़रार ले पहले
न हारेगा कभी भी तू किसी भी हार से पहले
अगर कुंदन के जैसा चाहता है तू चमकना तो
ज़रा शो'लों के दरियासे तू ख़ुद को तारले पहले
हवाओं की तरह आज़ाद बहना अच्छा लगता है
तो परवा छोड़ दुनिया की ज़रा रफ़्तार ले पहले
फ़रिश्तों की तरह मासूम होना है तेरी ख़्वाहिश
इताअत में तू रब की इस ख़ुदी को मार ले पहले
तुझे महताब…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 21, 2022 at 3:47pm — No Comments
2212 1211 2212 12
जिसको हुआ गुमाँ कि 'ख़ुदा' हो गया है वो
रुस्वाई के भंवर में तो ख़ुद जा गिरा है वो
अच्छा भला था 'ख़ुल्द' में 'इब्लीस' हो गया
झूठी अना की शान को मुन्किर हुआ है वो
हद से ज़ियाद: ख़ुद पे भरोसे का ये हुआ
थूका जो आस्मान पे मुँह पर गिरा है वो
मिट्टी जो फेंकी चाँद पे मैला नहीं हुआ
करनी पे अपनी ख़ुद ही तो शर्मा रहा है वो
थोड़ी सी धूप के लिये था जो रवाँ-दवाँ
सूरज को ले के…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 17, 2022 at 11:38am — 9 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा
हसीं मंज़र ही देखा था पस-ए-मंज़र नहीं देखा
वो जैसा उनको देखा है कोई दिलबर नहीं देखा
हसीं तो ख़ूब देखे हैं रुख़-ए-अनवर नहीं देखा
ज़माने में कहीं तुम सा कोई ख़ुद-सर नहीं देखा
सितमगर तो कई देखे मगर दिलबर नहीं देखा
वो मेरे ज़ाहिरी ज़ख़्मों को मुझसे पूछते हैं क्या
दिवानों ने कभी दिल में चुभा नश्तर नहीं देखा
जो कहते थे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 13, 2022 at 6:03pm — 8 Comments
नए साल की आमद पर तुझ को
क्या तुहफ़ा पेश करूँ ऐ दोस्त
ये दिल तो सदा से तेरा है
अब जान भी तेरी हुई ऐ दोस्त
हर साल के हर नए माह तुझे
ख़ुशियों का नया पैग़ाम मिले
हर दिन के हर लम्हे तुझसे
ग़म कोसों दूर रहे ए दोस्त
नाकामी किसे कहते हैं भला
तुझको न रहे कुछ इसकी ख़बर
थम जाएं कहीं जो तेरे क़दम
ख़ुद आए वहां मंज़िल ए दोस्त
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' on January 1, 2022 at 12:00am — 4 Comments
उसकी आँखें जो बोलती होतीं
कितने अफ़्साने कह रही होतीं
यूँ ख़ला में न ताकती होतीं
सिम्त मेरी भी देखती होतीं
काश आँखें मेरी इन आँखों से
हर घड़ी बात कर रही होतीं
उसकी आँखें जो बोलती होतीं...
देखकर मुझको मुस्कराती वो
अपनी आँखों में भी बसाती वो
जब कभी मुझसे रूठ जाती वो
मुझको आँखों से ही बताती वो
मेरे आने की राह भी तकतीं
नज़रें बस दरपे ही टिकी होतीं
उसकी आँखें जो बोलती…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on December 23, 2021 at 9:47pm — 4 Comments
221 - 1222 - 221 - 1222
ये दर्द मिरे दिल के कब दिल से उतरते हैं
दिल में ही किया है घर सजते हैं सँवरते हैं
आती हैं बहारें तो खिलते हैं उमीदों से
गुल-बर्ग मगर फिर ये मोती से बिखरते हैं
जब टूटे हुए दिल पर तुम ज़र्ब लगाते हो
पूछो न मेरे क्या क्या जज़्बात उभरते हैं
पैवस्त ज़माने से थे जो मेरे सीने में
अब दर्द वही फिर से रह-रह के उभरते हैं
देखे हैं मुक़द्दर तो बिगड़े हुए बनते…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on December 21, 2021 at 10:13pm — 10 Comments
221 - 2122 - 221 - 2122
इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं
हाकिम हैं कितने ही जो ईमान बेचते हैं
अज़मत वक़ार-ओ-हशमत पहचान बेचते हैं
क्या-क्या ये बे-हया बे-ईमान बेचते हैं
मअ'सूम को सज़ा दें मुजरिम को बख़्श दें जो
आदिल कहाँ के हैं वो इरफ़ान बेचते हैं
घटती ही जा रही है तौक़ीर अदलिया की
जबसे वहाँ के 'लाला' 'सामान' बेचते हैं
उनके दिलों में कितनी अज़मत ख़ुदा की होगी
पत्थर तराश कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on December 16, 2021 at 10:39am — 8 Comments
1121 - 2122 - 1121 - 2122
जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के
वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के
जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक
सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके
तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी
मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के
जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं
चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के
न मिटाओ…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on December 11, 2021 at 11:59am — 16 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है
अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है
मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे
मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है
मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको
सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है
लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर
चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है
कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on December 10, 2021 at 6:54pm — 18 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जाते
फ़क़त इक दाद देने कम ही आते हैं गुज़र जाते
न हो उनकी नज़र तो बाँध भी पाता नहीं मिसरा
ग़ज़ल हो नज़्म हो अशआर मेरे सब बिखर जाते
हुई मुद्दत नहीं मैं भी 'मुरस्सा' नज़्म कह पाया
ग़ज़ल पे सरसरी नज़रों से ही वो भी गुज़र जाते
अरूज़ी हैं अदब-दाँ वो हमें बारीक-बीनी से
न देते इल्म की दौलत तो कैसे हम निखर जाते
मिले…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on October 14, 2021 at 6:10pm — 17 Comments
122 - 122 - 122 - 122
(भुजंगप्रयात छंद नियम एवं मात्रा भार पर आधारित ग़ज़ल का प्रयास)
दिलों में उमीदें जगाने चला हूँ
बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ
कि सारा जहाँ देश होगा हमारा
हदों के निशाँ मैं मिटाने चला हूँ
हवा ही मुझे वो पता दे गयी है
जहाँ आशियाना बसाने चला हूँ
चुभा ख़ार सा था निगाहों में तेरी
तुझी से निगाहें मिलाने चला हूँ
ख़तावार हूँ मैं सभी दोष …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on October 14, 2021 at 3:13pm — 38 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
हुस्न तो मिट जाएगा फिर भी अदा रह जाएगी
ढल चलेगी ये जवानी पर वफ़ा रह जाएगी
साथ मेरे तुम हो जब तक प्यार की सौग़ात है
बिन तुम्हारे ज़िन्दगी ये इक सज़ा रह जाएगी
जब तलक माँ-बाप राज़ी बस दुआ मक़्बूल है
दिल दुखा तो फ़र्श पर ही हर दुआ रह जाएगी
ईद का दिन है तेरी रहमत भी है अब जोश में
मेरे जैसों की भी झोली ख़ाली क्या रह जाएगी
कर भलाई के भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on September 12, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
2122 - 2122
तू शफ़ीक़-ओ-मह्रबाँ है
तुझसा माँ कोई कहाँ है
तेरे आँचल का ये साया
मुझको जन्नत का गुमाँ है
तेरा दामन मेरी दुनिया
और क़दम सारा जहाँ है
रंज हो या हो ख़ुशी बस
तू सदा ही ख़ुश-बयाँ है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी तो
ख़ाक है या फिर धुआँ है
तेरे दामन के ये रौज़न
माँ ये मेरी कहकशाँ …
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' on September 12, 2021 at 2:30pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 212
करते हो इतनी जो ये तकरार तुम
कैसे दिलबर के बनोगे यार तुम
तौलते हो प्यार भी मीज़ान में
प्यार को समझे हो क्या व्यापार तुम
इश्क़ में जब तक न होगी हाँ में हाँ
हो नहीं सकते कभी दिलदार तुम
हम-ज़बाँ हों इश्क़ में - पहला सबक़
सीख कर करना वफ़ा इज़हार तुम
जानेमन जज़्बात को समझे बिना
पा नहीं सकते किसी का प्यार तुम
दिल के…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on September 7, 2021 at 5:59pm — 13 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
ख़ून की जब तक ज़रूरत थी मेरे चाहा मुझे
बा'द अज़ाँ बस दूध की मक्खी समझ फेंका मुझे
उसने जब मंज़िल की जानिब गामज़न पाया मुझे
तंज़ से मा'मूर नफ़रत की नज़र देखा मुझे
हक़-ब-जानिब बढ़ गए जब ये क़दम रुकते नहीं
मुश्किलों ने बढ़के यूँ तो लाख रोका था मुझे
अपने अहसाँ के 'इवज़ वो कर गया ख़ूँ का हिसाब
यारो …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on August 31, 2021 at 10:55pm — 2 Comments
2122 - 1122 - 1122 - 22/112
काश होता न जो तक़दीर का मारा मैं भी
देता इफ़लास-ज़दाओं को सहारा मैं भी
रौशनी मेरे सियह-ख़ाने में रहती हर शब
टिमटिमाता जो कोई होता सितारा मैं भी
वो निगाहों में मिरी जैसे बसे रहते हैं
काश नज़रों में रहूँ बनके नज़ारा मैं भी
वो भी मेरी ही तरह दर्द सहे आहें भरे
यूँ ही तन्हा न रहूँ इश्क़ का मारा मैं भी
जिस तरह क़ैस ने सहरा में गुज़ारे थे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' on August 22, 2021 at 5:00pm — 6 Comments
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