221 - 2121 - 1221 - 212
है कौन ऐसा जिसको यहाँ आज ग़म नहीं
हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं
दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक
साँसें हुईं मुहाल कि मसला शिकम नहीं
ग़म को वसीह करते ये अटके हुए बदन
नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं
आई वबा ये कैसी कि मातम है हर तरफ़
ग़मगीन चहरे लाशों पे लाशें भी कम नहीं
मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज ये
मिल जाऊँ बन के ज़र्रा इसी में तो ग़म नहीं
ग़द्दारों ने समाधि से चद्दर खसोट ली
क्या होगा इससे बढ़के भी कोई अलम? नहीं
ख़ुद अपनी मय्यतों को जो काँधा न दे सके
मारे नसीब के हैं वो मुर्दों से कम नहीं
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
देर आयद दुरुस्त आयद!
देर आये दुरुस्त आयद !
बुद्धम शरणम गच्छामि।
अमीर साहब, मैं अभी भी अपनी पहली टीप पर ही दृढ़ हूँ, और व्यक्तिगत रूप से मुझे आप से कोई परेशानी नहीं है, और न कभी होगी ! आपका हर प्रश्न सर माथे, लेकिन जनाब आप वरिष्ठ नागरिक हैं, थोडा संजीदगी आपसे अपेक्षित है !
चेतन प्रकाश जी लगता है कि शे'र में किये गये बदलाव से आप पहले से भी ज़्यादा आहत हैं। अब आपको तुलनात्मक रूप से मूल शे'र ही ज़्यादा उचित लग रहा है तभी तो शे'र को बदलने पर आपकी टीस मुखर हो गयी है, और असंयमित व्यहवार का परिचय दे रहे हैं। बहरहाल आपको दी गई चेतावनी भविष्य के संदर्भ में है, इसे गीदड़ भभकी मात्र समझने की भूल न करें।
आदाब, अमीर साहब! आप अपना मूल शैर, "सरकार ने समाधि से चद्दर खसोट ली / क्या होगा इससे बढ़ के भी कोई अलम नहीं " !
पहले ही अफवाह फैलाने / झूठ प्रसारित करने वाला है, इसे सही मानकर स्वविवेक से बदल चुके है ! फिर मुझे किस बात की 'गीदड़ भभकी' दे रहे हैं, जनाब ?
जनाब चेतन प्रकाश जी आप को चेताया जाता है कि बेवज्ह झूठ और अफ़वाह फैलाने का जो आरोप आप मुझ पर लगा रहे हैं उसे स्पष्ट बताएं कि वो क्या हैं और उन आरोपों के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करें अन्यथा की स्थिति में भविष्य में आपके विरुद्ध समुचित और आवश्यक विधिक कार्यवाही करने के लिए मैं स्वतंत्र रहूँगा। सादर।
आदाब, अमीर साहब, मुझे शब्दों पर नहीं, आपके कहे झूठ पर आपत्ति रही ! शब्द से किसे आपत्ति हो सकती है, जनाब, भारतीय हों अथवा ग्रीक काव्यशास्त्र के विद्वान और अंग्रेजी काव्यशास्त्र का कोई भी मनीषी, कहूँ तो अमेरिकी काव्यशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान शब्द की शक्ति के सम्मुख नतमस्तक हैं !
आदरणीय, भारतीय वांग्मय और काव्यशास्त्र में तो शब्द को ब्रह्म ही कहा गया है ! शब्द की साधना से कोई कवि / शाइर जाना जाता है ! फिर शब्द से किसको द्रोह हो सकता है! कहना न होगा, बुढ़ापे का असर आपकी मेधा पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है ! यही कारण है कि आपका स्वयं के विवेक पर भरोसा
भरोसा नहीं रह गया है !
और, एक बार फिर आप मूल विमर्श से हटकर असंगत राजनीतिक टिप्पणी कर रहे हैं , इति !
जनाब चेतन प्रकाश जी, लगता है कि उक्त वर्णित शे'र में आपको 'सरकार' शब्द पर आपत्ति है, क्योंकि यह तो सभी जानते हैं कि कोविड 19 महामारी के दौरान लगभग चार लाख लोगों ने केवल भारत में अपनी जानें गँवा दी हैं, जब ये महामारी अपने चरम पर थी तो न केवल इस वायरस ने नंगा नाच दिखाया बल्कि सरकारी अव्यवस्थाओं के चलते पूरे विश्व में भारत की छवि को धूल धूसरित कर दिया। जिन शवों को लकड़ियों के अभाव में अन्तिम संस्कार के बग़ैर जानवरों की लाशों की तरह नदियों में फेंक दिया गया,जहाँ उन्हें चील कौवे और कुत्ते नोचते रहे जिन अधजली लाशों को कुत्ते खाते रहे उनके बारे में आप क्या कहेंगे, बिना आॅक्सीजन और दवाओं के तड़प तड़प कर दम तोड़ते हमारे अपने ही थे न, या ये सब कोरी अफ़वाहें मात्र हैं, या फिर आपके अनुसार ये सब मीडिया के व्यवसायिक चैनलों का षड्यंत्र है ? लगता है कि आपके पड़ौसी, दोस्त, सम्बन्धी, परिवार में से किसी को भी इस दंश को झेलना नहीं पड़ा है जिस दंश को लगभग पूरा देश दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से झेल रहा है। हम इन्सानों को हमारी अंतरात्मा इतना संवेदन शून्य कैसे होने दे सकती है कि हम अपनों के साथ हुए इस क्रूरतम व्यवहार की शिकायत भी न करें, यदि ऐसा ही है तो हमें सामाजिक प्राणी कहना सही नहीं है।
आपको 'सरकार' शब्द पर आपत्ति है तो ठीक है मैं 'ग़द्दार' कहूँगा! क्यों ठीक है न, आपकी सरकार बच गई।
आजी तमाम, दोस्त, हम लोग एक उच्च कोटि के साहित्यिक / काव्यात्मक समूह ओ बो ओ के सदस्य हैं और परस्पर पारिवारिक माहौल में स्नेह पूर्ण व्यवहार करते रहें हैं! सो, अगर कोई आपत्ति ब॔धु विशेष रूप से मेरे कथन अथवा
अथवा व्यवहार को लेकर हो तो बेझिझक आप प्रश्न करें, मैं जवाब देने को प्रतिबद्ध हूँ !
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