रिश्ते सब बिखर गये
दोस्त उज़्र कर गये
वक़्त की हवा में रुख़ों से नक़ाब उतर गये
हम तो बस वफ़ाओं का मज़ार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
ग़म की धूप धीरे-धीरे सब नमी चुरा गई
पत्तियों का नूर और कली का रूप खा गई
मेरे आशियाँ पे कोई बर्क़-सी गिरा गई
ख़ाक भी न मिल सकी कि इस तरह जला गई
ज़ख़्म हो गए हरे
खिल गए, जो थे भरे
दब चुके तमाम दर्द फिर उभर-उभर गये
हम तो बस अचेत-से
मुट्ठियों की रेत-से
वक़्त को गुज़रते, बे-क़रार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
आज हर गली-गली में नफ़रतें मचल गईं
इक़त्दार की हवस में उल्फ़तें बदल गईं
चहचहाहटें फ़ुग़ाँ-ओ-आह में बदल गईं
आरज़ूएँ सारी जैसे हसरतों में ढल गईं
बुझ गये 'चराग़' सब
दफ़्न हो गया अदब
ग़र्ज़ ये के जह् ल आदमी का पासबाँ है अब
गर्म हो गई हवा
हम अ़सीर बे-सदा
ख़्वाब और हक़ीक़तों के पार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
कल तलक बहार थी ज़िन्दगी थी ख़ूब-तर
पुर-सुकून थे परिंदे, भँवरे, तितलियाँ, बशर
मेरे गुलसिताँ पे किस की पड़ गई बुरी नज़र
ख़ाक हो गये चमन के फूल कलियाँ और शजर
हो गये धुआँ-धुआँ
ये ज़मीन-ओ-आसमाँ
धुंद छा गई ये कैसी खो गया है कुल-जहाँ
हम इसी ग़ुबार में
मौसम-ए-बहार में
जल चुके चमन को अश्क-बार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
हसरतें ही रह गईं कि गुलसिताँ सँवार दूँ
रंजिशें भुलाके हर कली को गुल को प्यार दूँ
जान पर भी आ बनी तो हँस-के कर निसार दूँ
जो नज़र लगी है घर को वो नज़र उतार दूँ
पर न मिट सका ये ग़म
हो सका न दर्द कम
दूर हो गये रहे जो ज़िन्दगी में हम-क़दम
हम यहीं खड़े-खड़े
अपनी बात पर अड़े
कोशिशों की हार बे-शुमार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
रिश्ते सब बिखर गये
दोस्त उज़्र कर गये
वक़्त की हवा में रुख़ों से नक़ाब उतर गये
हम तो बस वफ़ाओं का मज़ार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
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