1212 - 1122 - 1212 - 22
जुनून-ए-इश्क़ जिसे हो कहाँ ठहरता है
हवादिसात के सहरा से भी गुज़रता है
हक़ीक़तों की ज़मीं पर जो आ ठहरता है
तसव्वुरात के दरिया में कब उतरता है
बुझा सका है कभी इश्क़ की लगी भी कोई
भड़कती आग का दरिया है ख़ुद उतरता है
मियाँ शराब नहीं सिर्फ़ शय बुरी, तन्हा
बुतों का हुस्न भी ईमाँ ख़राब करता है
तमाम दर्द मेरे दिल के मिट ही जाते हैं
दिया हुआ ये तेरा दर्द जब उभरता है
जुड़ा है किस का महब्बत में टूटकर फिर दिल
चटख़ गया तो वहीं टूट कर बिखरता है
किया है दिल ने भरोसा 'अमीर' फिर उस पर
वही जो कह के हर इक बात से मुकरता है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
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