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राजा विक्रमादित्‍य फि‍र वेताल को कंधे पर ले कर जंगल से चला. रास्‍ते में वेताल विक्रम से बोला- 'राजा, तुम चतुर ही नहीं बुद्धिमान् भी हो, लेकिन आज विश्‍व में जो कोविड-19 के कारण लाखों लोग मर रहे हैं और अनेक मौत के मुँह में जाने को हैं. छोटा क्‍या बड़ा क्‍या, अमीर क्‍या गरीब क्‍या, डॉक्‍टर क्‍या वैज्ञानिक क्‍या, नेता क्‍या अभिनेता क्‍या, दोषी, निर्दोष सभी इस बीमारी से हताहत हो रहे हैं. मनुष्‍य ने ऐसा कौनसा अपराध कर दिया है, जो संसार के अधिकतर देश इस महामारी का दंड भुगत रहे है? यदि तुमने इसका सही जवाब नहीं दिया तो तुम्‍हारे टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे.' राजा विक्रम थोड़ी देर चुप रहा.

वेताल का जवाब उसने एक शब्‍द में दिया-भ्रष्‍टाचार.

वेताल बोला- 'वह कैसे राजा?'

 

राजा बोला- 'मनुष्‍य को आडम्‍बर वाला जीवन उसे भ्रष्‍टाचार की ओर धकेलता है. जहाँ ग़रीब अपनी नौकरी, मजदूरी के लिए प्रलोभन का सहारा लेता है, वहीं सर्वोच्च शिखर पर बैठा मनुष्‍य शिखर पर बने रहने के लिए भ्रष्‍टाचार का सहारा लेता हे. अपना काम निकालने के लिए मनुष्‍य हर स्‍तर पर, हर क्षेत्र में अपनी पहचान, अपने सम्‍बंधों, अपनी पहुँच की दुहाई दे कर भ्रष्‍टाचार को बढ़ावा देता है. आज मानव का व्‍यवहार ही मानव का शत्रु बन गया है. यही कारण है आज विश्‍व जिस संक्रमण से गुज़र रहा है, यह व्‍यवहार ही मनुष्‍य के भ्रष्‍टाचार का मूल स्रोत है, इसीलिए इस संक्रमण को निष्‍प्रभावी करने का निदान वर्तमान में सामाजिक दूरी के अतिरिक्‍त कुछ नहीं. जब तक भ्रष्‍टाचार है, इस प्रकार के वायरसों से प्रकृति अपना संतुलन बनाती रहेगी. कहावत भी है, गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है, इसलिए 'भ्रष्‍टाचार से दोषी निर्दोष, बच्‍चे बूढ़े सभी प्रभावित होते हैं, परिणाम स्‍वरूप आज कोविड-19 से सम्‍पूर्ण विश्‍व इस वायरस ग्रसित दंड भुगत रहा है.

 

वेताल ने अट्टहास किया और बोला- 'राजा तुमने चतुराई से अपनी जान बचा ली. मैं चला. वह छूट कर फि‍र पेड़ पर जा कर लटक गया.

 

-आकुल, कोटा 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by नाथ सोनांचली on April 23, 2020 at 2:01pm

आद0 गोपाल कृष्ण भट्ट जी बढिया और सकारात्मक सोच के साथ आपने यह कथा लिखी है। भस्टाचार ही तो है सभी समस्याओं की जननी पर जब कभी भ्र्ष्टाचार की बात होती है, हम केवल आर्थिक भ्रष्टाचार की बात सोचते है जबकि नैतिक भष्टाचार सर्वाधिक है। बधाई स्वीकार कीजिये इस रचना पर।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 19, 2020 at 9:41am

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल कृष्ण भट्ट"आकुल" जी। एक सम सामयिक विषय और गंभीर समस्या पर समाज को चेतावनी देती एक बेहतरीन लघुकथा।यह एक कड़वी सच्चाई है कि कुछ गिने चुने लोगों की लोलुपता का परिणाम अनगिनत निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ रहा है।मैं भी कोटा(राजस्थान) से ही हूँ।

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