छंद- आल्ह, विधान- 31 मात्रा, (चौपाई +15), अंत 21
.
ढाई आखर प्रेम सत्य है, स्वीकारो पहचानो मित्र.
धन बल सुख-दुख आने-जाने, प्रीत बढ़ाओ जानो मित्र.
कहते हैं लँगड़े घोड़े पर, दुनिया नहीं लगाती दाँव,
भाग्य आजमाने के बदले, स्वेद बहाओ मानो मित्र.
युग बदले हैं हुए खंडहर, थी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on May 12, 2020 at 10:00am — 3 Comments
राजा विक्रमादित्य फिर वेताल को कंधे पर ले कर जंगल से चला. रास्ते में वेताल विक्रम से बोला- 'राजा, तुम चतुर ही नहीं बुद्धिमान् भी हो, लेकिन आज विश्व में जो कोविड-19 के कारण लाखों लोग मर रहे हैं और अनेक मौत के मुँह में जाने को हैं. छोटा क्या बड़ा क्या, अमीर क्या गरीब क्या, डॉक्टर क्या वैज्ञानिक क्या, नेता क्या अभिनेता क्या, दोषी, निर्दोष सभी इस बीमारी से हताहत हो रहे हैं. मनुष्य ने…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on April 18, 2020 at 6:02pm — 2 Comments
रविवार का दिन था। सज्जनदासजी के घर पड़ौसी प्रकाश चौधरी आ कर चाय का आनंद ले रहे थे।
बातों बातों में प्रकाशजी ने कहा- ‘क्या जमाना आ गया, देखिए न अपने पड़ौसी, वे परिमलजी, कोर्ट में रीडर थे, उनके बेटे आशुतोष की पत्नी को मरे अभी साल भर ही हुआ है, मैंने सुना है, उसने दूसरी शादी कर ली है। बेटा है, बहू है और एक साल की पोती भी। अट्ठावन साल की उम्र में क्या सूझी दुबारा शादी करने की। पत्नी नौकरी में थी, इसलिए पेंशन भी मिल रही थी। अब शादी करने से पेंशन बंद हो जाएगी। यह तो अपने पैरों पर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on November 9, 2014 at 9:30am — 7 Comments
दीप जले हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनाएँ
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलाएँ
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्वर्ण घरौंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकाएँ
क़दम बढ़े हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
कलघोषों के बीच
आहुति देते जाएँ
यज्ञ रहे प्रज्ज्वलित
सिद्ध हों सभी ॠचाएँ
पथभ्रष्टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 21, 2014 at 10:47am — 2 Comments
बचें दृष्टि से दृष्टिदोष फैला हुआ है चहुँ दिश।
निकट या दूर दृष्टि सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।
दृष्टि लगे या दृष्टि पड़े जब डिढ्या बने विषैली।
तड़ित सदृश झकझोरे मन जब दृष्टि बने पहेली।
गिद्धदृष्टि से आहत जन-जन वक्र दृष्टि से जनपथ।
जन प्रतिनिधि, सत्ताधीशों के कर्म अनीति से लथपथ।
रखें दृष्टिगत हो जन-जाग्रति, जन-निनाद, जन-क्रांति।…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 9, 2014 at 9:16am — 3 Comments
यदि मैं आज हूँ
आज के बाद भी हूँ मैं
तो वह अवश्य होगा।
यदि जीवन की गूँज
जीने की अभिलाषा
लय भरा संगीत है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि उसमें नदी का
कलकल नाद है
पंखियों का कलरव है
कोयल का कलघोष है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि हम उत्तराधिकारी हैं
हमसे वंशावली है
हम योग का एक अंश हैं, तो
वह अवश्य होगा।
ब्रह्माण्ड की धधकती आग से
निकल कर शब्द ब्रह्म का
निनाद यदि है, तो
वह…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 24, 2014 at 8:24pm — 1 Comment
1- शत्रु के सत्रह हार
काम1, क्रोध2, मद3, लोभ4, मोह5,
मत्सर6, रिपु के संचार।
द्वेष7, असत्य8, असंयम9, गल्प10,
प्रपंच11, करे संहार12।
स्तेय13, स्वार्थ14, उत्कोच15, प्रवंचना16,
विषधर अहंकार17।
जो धारें ये अवगुण सारे
सत्रहों हैं शत्रु…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 23, 2014 at 10:01pm — 5 Comments
1-
संस्कार होंगे
राम राज्य के स्वप्न
साकार होंगे !
2-
बेच ज़मीर
बनता है तब ही
कोई अमीर !
3-
स्वतंत्र हुए
बगल के नासूर
हैं पाले हुए !
4-
है नारी वो क्या
न सिर पे पल्लू न
आँखों में हया !
5-
क्या नाजायज
सत्ता, युद्ध, प्रेम में
सब जायज !
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 14, 2014 at 10:51pm — 4 Comments
शहरों की भीड़ भाड़ में
बस आदमी ही आदमी।
चलता ही जा रहा है
थकता नहीं है आदमी।
वाहनों की दौड़ भाग से
नहीं इसे परहेज
न है इसे प्रतिद्वंद्विता
न द्वेष रखता है सहेज
इसका तो अपना ध्येय है
पीढ़ियों से अपराजेय है
फिर भी देवताओं सा
लगता नहीं है आदमी।
इसकी अभिलाषाओं का
अभी न अंत होना है
अभी न तृप्त होगा यह
अभी न संत होना है
अभी इसे विकास के
सोपानों पर चढ़ना है…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 10, 2014 at 9:40am — 1 Comment
भाईचारा बढ़े संग हम सब त्योहार मनायें।
इक ही घर परिवार शहर के हैं सबको अपनायें।
क्यूँ आतंक घृणा बर्बरता गली गली फैली है।
क्यों बरपाती कहर फज़ा यह तो यहाँ बढ़ी पली है।
पैठी हुईं जड़ें गहरी संस्कृति की युगों युगों से,
आयें कभी भी जलजले यह कभी नहीं बदली है।
भूले भटके मिलें राह में, उनको राह बतायें।
भाईचारा बढ़े---------------
दामन ना छूटे सच का ना लालच लूटे घर को।
हिंसा मज़हब के दम जेहादी बन शहर शहर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 6, 2014 at 12:23pm — 2 Comments
1-
मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।
वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।
बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।
कितनी है परवाज, तभी संकेत मिलेगा।
आए वैसा दौर, अब हिन्दी की क्रांति से।
आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से।…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 4, 2014 at 3:00pm — No Comments
जन निनाद से ही
मंजिल तय हो
निश्चय ही।
विश्वभाषाओं संग हो
हिंदी निश्चय ही।
हिन्दी विश्वपटल पर चर्चित
पर्व मनायें
अब समवेत स्वरों में
गौरवगाथा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 3, 2014 at 8:41am — 6 Comments
विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।
विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।
वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 1, 2014 at 3:00pm — No Comments
याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।
कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चिराई।
अनुभव हुआ एक दिन तेरी, जब हो गई विदाई।
अमरबेल सी पाली थी, इक दिन में हुई पराई।
परियों सी प्यारी गुड़िया को जा विदेश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------
लाख प्रयास किये समझाया, मन को किसी तरह से।
बरस न जायें बहलाया, दृग घन को किसी तरह से।
विदा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सिखार्इ।
दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 27, 2014 at 8:00am — 5 Comments
यह जीवन महावटवृक्ष है।
सोलह संस्कारों से संतृप्त
सोलह शृंगारों से अभिभूत है
देवता भी जिसके लिए लालायित
धरा पर यह वह कल्पवृक्ष है।
यह जीवन महावटवृक्ष है।।
सुख-दु:ख के हरित पीत पत्र
आशा का संदेश लिए पुष्प पत्र
माया-मोह का जटाजूट यत्र-तत्र
लोक-लाज, मर्यादा,
कुटुम्ब, कर्तव्य, कर्म,
आतिथ्य, जीवन-मरण
अपने-पराये, सान्निध्य, संत समागम,
भूत-भविष्य में लिपटी आकांक्षा,
जिस में छिपा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 26, 2014 at 8:00am — 5 Comments
बस बात करें हम हिन्दी की।
न चंद्रबिन्दु और बिन्दी की।
ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।
हों घर-घर बातें हिन्दी की।
ना हिन्दू-मुस्लिम-सिन्धी की।
बस सर्वोपरि सम्मान करें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।।
पथ-पथ प्रख्याति हो हिन्दी की।
ना जात-पाँत हो हिन्दी की।
बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,
हम हिन्दुस्तानी, हिन्दी की।
एक धर्म संस्कृति हिन्दी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 25, 2014 at 7:44pm — 6 Comments
किससे क्या है शिकवा
किसको क्या शाबाशी।
नहीं कम हुए बढ़ते
दुष्कर्मों को पढ़ते
बेटे को माँ बापों पर
अहसाँ को गढ़ते
नेता तल्ख़ सवालों पर
बस हँसते-बचते
देख रहे गरीब-अमीर
की खाई बढ़ते
कितनी मन्नत माँगे
घूमें काबा काशी।
फिर जाग्रति का
बिगुल बजेगा जाने कौन
फिर उन्नति का
सूर्य उगेगा जाने कौन
आएगी कब घटा
घनेरी बरसेगा सुख,
फिर संस्कृति की
हवा बहेगी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 24, 2014 at 7:00pm — 3 Comments
ज़िन्दाबाद--ज़िन्दाबाद।
राष्ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्दी ज़िन्दाबाद।।
ज़िन्दाबाद- जि़न्दाबाद।
हिन्द की है शान हिन्दी
हिन्द की है आन हिन्दी
हिन्द का अरमान हिन्दी
हिन्द की पहचान हिन्दी
इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।
ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद।
वक़्त जन आधार का है
हिन्दी पर विचार का है
काम ये सरकार का है
जीत का न हार का है
हिन्दी से ही आएगा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 23, 2014 at 8:22am — 9 Comments
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।
क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।
कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।
कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।
देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,
सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।
देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।
आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।
सामर्थ्य कर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 22, 2014 at 9:00pm — 7 Comments
लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।
स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।
भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,
इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।
क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।
आ गया है फिर समय जुट एक होना ही पड़ेगा।
दुष्ट नरखांदकों से फिर दो चार होना ही पड़ेगा।
गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,
बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।
सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 21, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |