For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद बहुत ही आती है तू

याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।

कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चि‍राई।

अनुभव हुआ एक दि‍न तेरी, जब हो गई वि‍दाई।

अमरबेल सी पाली थी, इक दि‍न में हुई पराई।

परि‍यों सी प्‍यारी गुड़ि‍या को जा वि‍देश परणाई।।

याद बहुत ही आती है तू---------

लाख प्रयास कि‍ये समझाया, मन को कि‍सी तरह से।

बरस न जायें बहलाया, दृग घन को कि‍सी तरह से।

वि‍दा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सि‍खार्इ।

दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें बड़ाई।

बि‍दा कि‍या मन मन घन बरसे, फूटी कंठ रुलाई।।

याद बहुत ही आती है तू---------

कृष्‍ण काल का मोक्ष हुआ, ऐसा अनुतोष दि‍या है।

वंश बेल की नींव डाल, अप्रति‍म परि‍तोष दि‍या है।

कुल रोशन कर घर समाज में खूब प्रशंसा पाई।

घर की डोर सम्‍हाल, कुल मर्यादा प्रीत बढ़ाई।

मेरे घर का मान बढ़ा, तू रह सदैव सुखदाई।।

याद बहुत ही आती है तू--------------

इक-इक युग सा बीता है, हर साल परायों जैसा।

मरु में मृगमरीचि‍का सा, सहरा में सायों जैसा।

ज्‍यूँ-ज्‍यूँ दि‍न बीते हैं, बूढ़ी आँखें हैं पथराई।

कौन करेगा भाई की, शादी में बाट रुकाई।

अब घर आयें बच्‍चों के सँग बेटी और जमाई।।

याद बहुत ही आती है तू--------------

 

सूद सहि‍त खुशि‍याँ बाँटूँगा, तू आना बन ठन कर।

भाई की शादी में सँग नचना, गाना मन भर कर।

तुम लोगों से ही तो लेगा वो आशीष बधाई।

जीजाजी से ही तो बँधवायेगा पगड़ी टाई।

मेरे मन की अभि‍लाषा की तब होगी भरपाई।।

याद बहुत ही आती है तू--------------

*मौलिक एवं अप्रकाशित*

Views: 513

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on September 1, 2014 at 5:53pm
आ० गोपालजी ,
पिता का मातृत्व मात्र उसी क्षण नहीं छुप पाता है ,जब वह बेटी को विदा करता है |बहुत सुंदर शब्द चित्र दिया आपने उस मार्मिक क्षण को |
साधुवाद |
Comment by Santlal Karun on September 1, 2014 at 5:34pm

आदरणीय आकुल जी,

कोयल-सी, सोंनचिराई बेटी के दो घरों के द्विगुणित स्नेह-सम्मान, आशाओं-अपेक्षाओं, दायित्व-मर्यादा आदि को उकेरता हुआ यह गीत अत्यंत मार्मिक है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:21pm

आदरणीय गोपाल भाई , बेटी बिदा के बाद पिता की मन: स्थिति को बहुत सुन्दर बयान किया है आपने  |हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें | गेयता कहीं कहीं बाधित लगी , ये भी हो जाए तो सोने मे सुहागा |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 28, 2014 at 2:31pm

इस सुंदर भाव पूर्ण रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2014 at 10:15am

" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. "

 सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service