1- शत्रु के सत्रह हार
काम1, क्रोध2, मद3, लोभ4, मोह5,
मत्सर6, रिपु के संचार।
द्वेष7, असत्य8, असंयम9, गल्प10,
प्रपंच11, करे संहार12।
स्तेय13, स्वार्थ14, उत्कोच15, प्रवंचना16,
विषधर अहंकार17।
जो धारें ये अवगुण सारे
सत्रहों हैं शत्रु हार।
2- बसंत
बसंत
बस अंत
सभी दर्द, व्यथा, घृणा,
द्वेष, दम्भ, स्वार्थ और
भ्रष्टाचार का।
बस अंत, बस अंत
तभी सार्थक
बसंत
3- जीवन
‘जी वन’ चाहे,
‘जीव न’ चाहे
‘जी’ व ‘न’ की
दुविधा में
’जीवन’
बीता जाये।
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Comment
बहुत सुंदर. badhai
सुंदर क्षणिकाएं...प्रेरक..और सारगर्भित सत्य..बधाई आदरणीय.
" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. " |
बहुत सुन्दर ....आभार आपकी बधाई के लिय , आज ही हमने देखा खुद को सक्रीय सदस्य के रूप में चुना गया
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online