लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।
स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।
भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,
इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।
क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।
आ गया है फिर समय जुट एक होना ही पड़ेगा।
दुष्ट नरखांदकों से फिर दो चार होना ही पड़ेगा।
गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,
बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।
सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन उठाएगा।
सिंह लंहड़ों में नहीं बढ़ने लगे हैं शृगाल दल।
खोने लगी है निष्ठा अब थकने लगे हैं हारावल।
लगता है पाखण्ड ही पाखण्ड है चारों तरफ़,
बोझिल धरा है पाप से उठने लगे हैं दावानल।
राह झूठ की है स्वर्ग कैसे पहुँचा जाएगा।
चरमरा रही हैं आज जन सुविधायें व्यवस्थायें।
कैसा था कल युग युवा-पीढ़ी को क्या बतायें।
हाथ में न ले लें अस्त्र, शस्त्र की न बोलें ज़ुबाँ,
खूनी दिवाली हो और बारूद की होली जलायें।
ऐसा हुआ तो देश का इतिहास बदल जाएगा।
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Comment
प्रणाम। आभार सभी का।
आदरणीय , सुन्दर सामयिक सन्देश देती आपकी रचना के लिए बधाई |
वाह बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति आदरणीय हार्दिक बधाई आपको
कथ्य के माध्यम से संदेश देती इस कविता के शिल्प पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है.
इस मंच का लाभ उठाना हर तरह से लाभदायी है.
प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद.
लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।
स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।
भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,
इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।
क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।----वाह्ह बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति,कब कहेंगे हम उन्नत भारत ,विकसित भारत ..बधाई आपको देश से सरोकार की इस सुन्दर प्रस्तुति पर आ० डॉ.गोपाल कृष्णा जी
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