For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर कुछ सवैया छंद

यदा यदा हि धर्मस्‍य--------

1

मानव देह धरी अवतारी, मन सकुचौ अटक्‍यो घबरायो।

सच सुनके कि देवकीनंदन हूँ मैं जसुमति पेट न जायो।

सोच सोच गोकुल की दुनिया, सब समझंगे मोय परायो।

सुन बतियन वसुदेव दृगन में, घन गरजो उमरो बरसायो।

कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं, कौन घड़ी पल छिन इहँ आयो।

कछु दिन और रुके मधुसूदन, फि‍रहुँ विकल कल चैन न पायो।

परम आत्‍मा जानैं सब कछु, ‘आकुल’ मानव देह धरायो।

कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण, श्‍यामहिं चित्‍त तनिक भरमायो।

 

2

रूप सरूप स्‍वाद मधु फीका, रसपल मानिक सुवरन हीरा।

ममता उघरि परै नैनन सों अब तो तुच्‍छ ये श्‍याम सरीरा।

कूल कदम्‍ब की छाँव बैठि के, सोचें घनश्‍यामा यमु तीरा।

कौन काम आये गोकुल सौं, कौन वचन सुन कै भइ पीरा।

आँखिन बंद करी सुई देखौ, जसुमति नंद को बिकल सरीरा।

सच कहो जाय ना होय अनर्था, कोविध मिटहिं न भाग लकीरा।

भ्रमित करी जग पुरसोत्‍तम ने, ‘आकुल’ आपहिं सह सब पीरा।

जसुमति जीवन गयौ वियोग में, नंद गाँव को जीव अधीरा।

3

लीला करी किशोर वयन की, पाछे गोकुल गये कभी ना।

माया सौं रचि रास निकुंजन, ब्रजमंडल बस गोकुल ही ना।

धार उद्धार करौ भूतल ब्रज, खाली कंस नगरिया ही ना।

महाभारती कहो इनहिं सब, योगी कृष्‍ण कभी दंभी ना।

पूर्ण पुरुस पुरसोत्‍तम भू पर, आये मानव देह धरी ना।

माया ही सब कूँ सच लागे, यामे द्वय मत होइ सकै ना।

योगी कृष्‍णा की लीला के, ‘आकुल’ समझहिं भेद कोई ना।

नाहिं नंद जसुमति के कृष्‍णा, जाय देवकी माँ के भी ना।

 

4

सांख्‍य योग व कर्मदीक्षा, भगवद्गीता ज्ञान सुनायो।

जसुमति सुतम देवकी नंदन, सबहिं लुप्‍त कियो बिसरायो।

बालक्रिड़ा तक ही को वरनन, पढ्यों पुस्‍तकअन में आयो।

महाभागवत ही मूकहिं है, कहीं नहीं सबरौ समझायो।

कहा भयों जसुदा वसुदेवा कहा देवकी नंद ने पायो।

सुख दुख थोड़ो बहु जो भी के सारौ जीवन यूँ हि गँवायो।

 

5

मानव देह धरी तबहिं तो, मानव के गुण अवगुण धारे।

कीन्‍हीं हिंसा लगे लांछन, कह लो भले सभी उद्धारे।

प्रेम रास मोह माया जगती, सब मानव ही के गुण न्‍यारे।

मानव कर्म करे धर्महि सौं, तीनों लोकन पाँव पखारे।

पूजौ सबने मानहि भगवन भाव भक्ति के वचन बघारे।

कवियन वक्‍ता श्रोता लेखक, सबहिं लक्षहि नाम पुकारे।

माया कहो कहो ‘आकुल’ कछु, समझो थोड़े छंद हमारे।

जब जब भू पर संकट आयो, प्रभु ही मानव देह पधारे। 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1312

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 1:27am

आप निम्नलिखित लिंक को देखें, आदरणीय. सभवतः आपके प्रयास के क्रम में कुछ सहयोग मिले. इस आलेख में सवैयों के जो प्रकार हाइपरलिंक में हैं, उन्हें क्लिक कर उनके विधानों से सम्बन्धित लेख तक जाया जा सकता है. 

http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...

सादर

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 20, 2014 at 10:54pm

ये रचना 1995 में रची थी। तब छंद शास्‍त्र का ज्ञान कतई नहीं था। जो पढ़ा था, वही रचा। वैसे उसके बाद द्वारिका जा कर शोध किया और सच्‍चाई जानी। माता यशोदा, देवकी, नंदराय, बलदाऊ, रोहिणीजी सभी द्वारिका में ही रहे । भग्‍नावशेषों को रूबरू देखा है मैंने वहाँ । बाद में प्रख्‍यात लेखक स्‍व0 शिवाजी सावंत के 'युगंधर' काे पढ़ा जो स्‍वयं में एक उत्‍तर महाभारत का शोध ग्रंथ ही है। सम्‍पूर्ण कृष्‍णलीला का यह अनुपम ग्रंथ पढ़ा तो अभिभूत हो गया। ज्ञानपीठ प्रकाशन के उनके ग्रंथ सचमुच संग्रहणीय हैं। महाभारत के एक महानायक कर्ण पर आधारित 'मृत्‍युंजय', शिवाजी के पुत्र संभाजी पर उनका 'छावा' ग्रंथ शोध ग्रंथ की भाँति ही हैं। 

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 20, 2014 at 10:40pm

सात भगण के स्‍थान पर आठ भगण के चिह्न लिखने में आ गये हैं। इसे इस प्रकार देखें-

S।।S।।S।।S।।S।।S।।S।। SS

दो और आगे के सवैया छंद देखें-

रूप सरूप कहा मध लोन, रसोपल मानिक हाटक हीरा।

नैनन सों ममता उघरै अब तो बल ना अभिराम सरीरा।

छॉंव अशोक छटा महिं बैठक आँखिन सोचत वे यमु तीरा।

कौन सुकाज करो मथुरा, रह जो जन भेद खुलो भइ पीरा।

आँखिन मीच जसोमति देखिन बाबउ आकुल देख सरीरा।

जाय न झूठ कहो अब सौविध, कोविध मेटहिं भाग लकीरा।

पाहुन राखि लियो मन माहिं, सही सब जीवन आपहिं पीरा।

जीवन बीत गयो जसुदा नँद राधिका सौं नँदगाँव अधीरा।  

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 20, 2014 at 10:25pm

आदरणीय 

प्रणाम।

सत्‍य कहा आपने । मैं केवल सवैया के बारे में सुना करता था। लेकिन जब आपके इस संस्‍थान से जुड़ा हूँ। सवैया का ज्ञान होने लगा है। सत्‍य है, ये सवैया का प्रकार बिल्‍कुल नहीं है। बस 16-16 मात्राओं का निर्वाह करते हुए रचना रची है। इसे रचना ही कहें। कोई नाम यदि हो सके तो आप दें। मैं अभी सवैया का अध्‍ययन कर रहा हूँ। रचना को पसंद करने के लिए आभार। बहुत पुरानी रचना थी जिसे मैंने मात्राओं के निर्वाह के साथ व्‍यक्‍त कर दिया है। इसी लिए प्रकाशन से पूर्व स्‍वीकृति चाही थी, प्रभाकरजी ने इसे अप्रूव्‍ड कर दिया इसलिए विशेष ध्‍यान नहीं दिया। हाँ रचना कह सकते हैं, सवैया कतई नहीं-----क्‍योंकि यगण भगण आदि का निर्वाह नहीं हाे रहा है। क्षमा चाहूँगा। मार्गदर्शन देंगे। श्री राम शिरोमणि जी से भी क्षमाप्रार्थी हूँ। हाँ, इसे मत्‍तगयंद सवैया में परिवर्धित कर रहा हूँ। आशीर्वाद चाहूँगा। दो छंदावली देखें-

इस वर्णिक छंद के चार चरण होते हैं. हर चरण में सात भगण (S I I) के पश्चात् अंत में दो गुरु (S S) वर्ण होते हैं. 

S।।S।।S।।S।।S।।S।।S।।S।। SS  

मानव देह ध री अव तार, लियो सकु चौ अट क्‍यो घब रायो

साँ‍चि सुनूँ कि असॉंचि कहै जन मैं जसुदा कब पेट न जायो।

सोच करूँ अब गोकुल बासिन, जो समझो यदि मोय परायो।

लोक लिहाज करत नैनन बादर गरजो उमरो बरसायो।

 

कौन घड़ी तब गोकुल सौं नस, कौन घड़ी पल मैं इहँ आयो।

और कछू दिन बास कियो मधुसूदन, व्‍याकुल चैन न पायो।

या ढिंग आय करूँ अब कोविध भागन लेख कछू भरमायो।

बाल सुजान सबै कछु, कीरत ‘आकुल’ मानव देह धरायो।

-----


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2014 at 10:44pm

बहुत अच्छी भाव अभिव्यक्ति हुई है आदरणीय गोपाल कृष्णजी. गोकुल के आनन्द को मानों शब्द मिल गये हैं.

बधाई स्वीकार करें.

लेकिन इन प्रस्तुतियों को सवैया कह कर आपने बड़ी उलझन में डाल दिया. मैं भी भाई रामशिरोमणि के कही से इत्त्फ़ाक रखता हूँ.

आप इन सवैया छन्दों का प्रकार बतायें. यदि ये मिश्रित सवैया भी हैं तो उस तरह के सवैयों के भी कुछ मानक होते हैंं 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2014 at 9:54pm

आदरणीय गोपाल भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण  सवैया रचना के लिए बधाई  , शिल्प का ज्ञान मुझे नहीं है आदरणीय |

Comment by ram shiromani pathak on August 18, 2014 at 6:42pm

भाव सुंदर है आदरणीय, लेकिन यह कौन सा सवैया छंद है समझ नहीं पाया....कृपा कर मार्गदर्शन करें....सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. नीलेश भाई ने अच्छा मार्गदर्शन किया है। इससे यह…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यूँ तो पूरी गजल ही लाजवाब हुई है पर ये दो शेर पर अतिरिक्त बधाई…"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी नमस्कार बहुत खूब ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सभी शैर बहुत अच्छे…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, ग़ज़ल पर अपकी टिप्पणी के लिए आभार पर कुछ विस्तार से मार्ग दर्शन करते तो अच्छा…"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका अपने समय दिया कुछ त्रुटियों की…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास है। तीन शेर 4,5, व 6 तो बहुत अच्छे लगे। बधाई…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं में कुछ ग़ल़त नहीं है। हुआ अपने आप में पूर्ण शब्द…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी टिप्पणी के अनुसार काफिया में कोई कमी हे तो स्पष्ट समझायें। कुछ उदाहरण…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"तौर-ए-इमदाद ये भला तो नहीं  शहर भर में अब इतना गा तो नहीं     मर्ज़ क्या है समझ…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का मतला भरपूर हुआ है। अन्य शेर आयोजन के बाद संवारे जाने की मांग कर रहे…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ दयाराम मैठानी जी। आपके द्वारा इंगित मिसरा ऐसे ही बोला जाता है अतः मैं इसे यथावत रख रहा…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. अजय जी"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service