For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उफ़ ! क्या किया ये तुम ने, वफ़ा को भुला दिया,  

उस शख़्स ए बावफ़ा को, कहो क्या सिला दिया।

  

जो ले के जाँ, हथेली पे, हरदम रहा खड़ा, 

तुम ने उसी को, ज़ह्र का, प्याला पिला दिया।

अब क्या भला, किसी पे कोई, जाँ निसार दे, 

जब अपने ख़ूँ ने, ख़ून का, रिश्ता भुला दिया।

गुलशन की जिस ने तेरे, सदा देखभाल की,

उस बाग़बां का तू ने, नशेमन जला दिया।

गर वो मिलेंगे हम से, कभी पूछ लेंगे हम, 

क्यूँ ख़ाक़ में हमारा, भरोसा मिला दिया। 

अब क्या भला किसी पे, करें ऐतबार हम, 

अपने ही हमनफ़स ने, यक़ीं को हिला दिया। 

मुश्किल 'अमीर' ये है, कि हम, भूल जाते हैं, 

उस ने भले ही पीठ पे, ख़ंजर चला दिया।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 920

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 28, 2020 at 1:39pm

जी मुहतरम, इस्लाह के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।  मतला 'उफ़ क्या किया ये तुमने वफ़ा को भुला दिया

                                                                               उस शख़्स-ए-बावफ़ा को नज़र से गिरा दिया'

करने से "आ" की मात्रा क़ाफ़िया हो जाता है और रदीफ़ "दिया"। बग़ैर तरमीम क्या "भुला, सिला, मिला, पिला, जला, हिला" को क़वाफी़ और "दिया" को रदीफ़ माना जाना ग़लत होगा ? रहबरी फ़रमाकर मशकूर फ़रमाएं । सादर। 

Comment by Samar kabeer on May 28, 2020 at 11:56am

//मैंने ये ग़ज़ल नहीं नज़्म कही है। क्या बतौर नज़्म ये रचना सहीह है? //

जी,नहीं ये नज़्म की श्रेणी में नहीं आएगी,मतला यूँ कर लें तो बाक़ी अशआर चल जाएँगे:-

'उफ़ क्या किया ये तुमने वफ़ा को भुला दिया

उस शख़्स-ए-बावफ़ा को नज़र से गिरा दिया'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 28, 2020 at 9:26am

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, रचना पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2020 at 8:07am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 27, 2020 at 12:46pm

जनाब समर कबीर साहिब, आदाब । ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और तनक़ीद ओ इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया। वैसे मैं लिखना भूल गया था मैं ने ये ग़ज़ल नहीं नज़्म कही है। क्या बतौर नज़्म ये रचना सहीह है?  मेहरबानी फरमाकर अपने क़ीमती नज़रिए से रौशनास फरमाएं। 

Comment by Samar kabeer on May 27, 2020 at 12:13pm

जनाब अमीरुद्दीन ख़ान 'अमीर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन क़वाफ़ी ग़लत हैं,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service