बह्र-फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फैलुन
मुँह अँधेरे वो चला आया मेरे घर कमबख्त
आ गई फिर से मुसीबत मेरे सर पर कमबख्त
इस समय खौफजदा लगती है दुनिया सारी
सबके सीने में समाया हुआ है डर कमबख्त
चाहता हूँ मैं उड़ूँ नील गगन मे लेकिन
साथ देते ही नहीं अब मेरे ये पर कमबख्त
बन के तूफान चला आया शहर के अन्दर
कर गया कितनों को बरबाद समन्दर कमबख्त
लाख चाहूँ मैं उसे मुट्ठी में कर लूँ लेकिन
दो कदम दूर ही रहता है मुकद्दर कमबख्त
वो भी कहता है कि पहुँचा हुआ साधू है वो
हाथ में ले के जो चलता फिरे खंजर कमबख्त़
मिन्नतें लाख करूँ हाथ भी जोड़ूँ लेकिन
मेरी अर्जी पे करे गौर न अफसर कमबख्त
जानता कुछ भी नही खुद को वो समझे दानिश
सारी दुनिया को समझता है वो कमतर कमबख्त
मुद्दतों से जो कई राज छुपा रक्खे थे
ले गया राज वो सब दिल में उतरकर कमबख्त
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी, आदाब। दमदार अश'आ़र से मुज़ैय्यन शानदार ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।
"सबके सीने में समाया हुआ है डर कमबख्त" और
"वो भी कहता है कि पहुँचा हुआ साधू है वो" मिसरों में आपने "हुआ" को 1 1 पर लिया है, अगर बहतर लगे तो यूँ भी कर सकते हैं :
(1) सबके सीने में समा बैठा कोई डर कमबख्त,
(2) सब उसे कहते हैं साधू है बड़ा पहुँचा वो. सादर।
जनाब राम अवध जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
कमबख्त
बन के तूफान चला आया शहर के अन्दर'
इस मिसरे में 'शह्र' को आपने 12 पर लिया है,जबकि उर्दू शाइरी में इसे 21 पर लेना उचित होता है,देखियेगा ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online