For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल -मनोज अहसास

2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2

अपने ही पापों से मन घबराता है
सीने में इक अपराधों का खाता है

लाचारी से कुछ भारी है मजबूरी
आँखों में ताकत है देख न पाता है

उसकी मजबूरी समझूँ या अपना दुख
गुलशन से सहरा में कोई आता है?

लाख कोशिशें कर के माना है हमनें
जो होना है आखिर वो हो जाता है

दिल मे कोई भीड़ सलामत है लेकिन
तेरा चेहरा साफ नहीं दिख पाता है

क्या जाने अफसाना है या सच कोई
आखिर में जो सच की जीत बताता है

ढलता है जब सूरज अपनी भी छत पर
तब जग का अंधियार समझ में आता है

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on June 22, 2020 at 2:38pm

ये सब कॉपी पेस्ट करने की जल्दबाज़ी का।नतीज़ा है आदरणीय

समर कबीर साहब

आपका नाम मैं कैसे भूल सकता हूँ 

आपसे तो मैंने बहुत कुछ सीखा है

सादर प्रणाम स्वीकार करें

आभार

Comment by Samar kabeer on June 22, 2020 at 2:13pm

//आदरणीय समीर साहब

हार्दिक आभार//

मेरा नाम भी भूल गए ?

Comment by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:29pm

आदरणीय समीर साहब

हार्दिक आभार

मिसरा चेक करता हूँ

सुझाव के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

सादर

Comment by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:29pm

आदरणीय सालिक जी

ग़ज़ल पर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार

सादर

Comment by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:28pm

आदरणीय अमीर साहब

हार्दिक आभार

मिसरा चेक करता हूँ

सुझाव के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

  • सादर
Comment by सालिक गणवीर on May 30, 2020 at 4:50pm

प्रिय भाई मनोज एहसास जी

सादर नमस्कार

शानदार ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें.

दिल में कोई भीड़ सलामत है लेकिन

तेरा चेहरा साफ नहीं दिख पाता है...... वा

Comment by Samar kabeer on May 30, 2020 at 2:53pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

'लाख कोशिशें कर के माना है हमनें

ये मिसरा बह्र में नहीं,देखियेगा।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 30, 2020 at 12:52pm

जनाब, मनोज कुमार 'अह्सास' जी, आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें।

मेरा इस बह्र से साबक़ा नहीं पड़ा है। बहरहाल इस बह्र में "लाख कोशिशें कर के माना है हमनें" मिसरा बह्र में नहीं है। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service