For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं (ग़ज़ल)

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू'अ
2122 / 1212 / 22

ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं
जान आफ़त में डाल बैठे हैं [1]

दिल से हम को निकाल बैठे हैं
देखिए पुर-मलाल बैठे हैं [2]

कह चुके हैं हमें वो जाने को
फिर भी देखो मजाल बैठे हैं [3]

बढ़ गए आगे सब हुनर वाले
हम यहीं बे-कमाल बैठे हैं [4]

अब ज़रूरत नहीं सलाहों की
हम तो सिक्का उछाल बैठे हैं [5]

मेरे और उनके दरमियाँ जाने
कितने ही माह-ओ-साल बैठे हैं [6]

वक़्त थम जाए अब यहीं उनके
मेरे काँधे पे बाल बैठे हैं [7]

ये मईशत है आँख का धोका
इसके नीचे अकाल बैठे हैं [8]

ख़ुद समझ लो सफ़र रहा कैसा
हम जो यूँ ख़स्ता-हाल बैठे हैं [9]

ज़ह्न में सोच का बवंडर है
और हम बे-ख़याल बैठे हैं [10]

भूके बच्चों को आस देने को
लोग पत्थर उबाल बैठे हैं [11]

दूर मंज़िल है इश्क़ की रह में
सौ उरूज-ओ-ज़वाल बैठे हैं [12]

अश्क आँखों में अब कहाँ वो हम
अपनी ग़ज़लों में ढाल बैठे हैं [13]

दिल की दहलीज़ पे इक अर्से से
जाने कितने सवाल बैठे हैं [14]

इन किताबों में क्या मिलेगा अब
हम तो गूगल खंगाल बैठे हैं [15]

तुम ही कर लो जो बन पड़े यारो
आज 'शाहिद' निढाल बैठे हैं [16]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 989

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 11, 2020 at 8:11pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहिब, आपकी हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से आपका आभारी हूँ। जी आप ग़ज़ल में अशआर की गिनती के बारे में सहीह फ़र्मा रहे हैं, मैंने इसीलिए दो मतले कहे थे। बहुत शुक्रिया जनाब!

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 11, 2020 at 7:21pm

वाह वाह गज़ब के अशआर हुए हैं , मेरी निजी राय में एक ग़ज़ल में ९ शेर काफी हैं , उससे ज़ियादा अशआर हों तो एक अलग ग़ज़ल कह लेनी चाहिए , इसके दो कारण एक तो ९ अशआर की ग़ज़ल किताब के एक पेज में आ जाती है , दुसरे आजकल पाठक भी लम्बी ग़ज़ल के सभी शेर पढ़ते नहीं है | 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 11, 2020 at 12:39pm

आदरणीया Dimple Sharma जी, आपकी इस ज़र्रा-नवाज़ी और हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ!

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:22am

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'जी नमस्ते, आपकी ग़ज़ल जितनी उम्दा है उतना ही नया कुछ भी सीखाती है , पढ़ कर आनन्द आ गया । बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 10, 2020 at 11:47pm

/वक़्त थम सा गया है जबसे आप

अपने बिखरा के बाल बैठे हैं'/

ओ हो हो, उस्ताद जी, क्या कहने आपके! आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय: और आप के फ़न को हज़ारों सलाम!

Comment by Samar kabeer on June 10, 2020 at 6:23pm

// क्या इसे बदल कर यूँ किया जा सकता है?
2122 / 1212 / 22
वक़्त थम जाए पहलू में जानम
अपने बिखराये बाल बैठे हैं//

इस शैर को यूँ कह सकते हैं:-

'वक़्त थम सा गया है जबसे आप

अपने बिखरा के बाल बैठे हैं'

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 10, 2020 at 5:53pm

आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम, सादर प्रणाम! नाचीज़ की ग़ज़ल को अपना क़ीमती वक़्त देने के लिए, अमूल्य इस्लाह से नवाज़ने के लिए और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार।

/इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं: 'अब नहीं है सलाह की हाजत'/
जी बहुत सुन्दर मिस्रा दिया है आपने, आपका बहुत शुक्रिय:

/क्या बात हुई? 'बाल बिखरे' तो ठीक है,लेकिन 'बैठे हैं'?ये मिसरा भर्ती का है।/
जी ठीक है। उस्ताद जी, सुंदर मंज़रकशी हो रही थी, सो कह दिया। क्या इसे बदल कर यूँ किया जा सकता है?
2122 / 1212 / 22
वक़्त थम जाए पहलू में जानम
अपने बिखराये बाल बैठे हैं

/इस मिसरे में तनाफ़ुर है,'सफ़र रहा' को "रहा सफ़र" कर सकते हैं।/
उस्ताद जी, आपकी पैनी नज़र को सलाम, और आपको इस्लाह देने के लिए एक बार फिर तह-ए-दिल से शुक्रिय:!

Comment by Samar kabeer on June 10, 2020 at 3:18pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' साहिब आदाब, ग़ज़ल अच्छी हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

'अब ज़रूरत नहीं सलाहों की'

'सलाह' शब्द को बहुवचन करने के लिए आगे पीछे के शब्दों का सहारा लेना पड़ता है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'अब नहीं है सलाह की हाजत'

'मेरे काँधे पे बाल बैठे हैं'

क्या बात हुई? 'बाल बिखरे' तो ठीक है,लेकिन 'बैठे हैं'?ये मिसरा भर्ती का है ।

'ख़ुद समझ लो सफ़र रहा कैसा'

इस मिसरे में तनाफ़ुर है,'सफ़र रहा' को "रहा सफ़र" कर सकते हैं ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 9, 2020 at 11:58am

आदरणीय रूपम कुमार 'मीत' जी, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। आप जैसे युवा प्रतिभाशाली शाइर के संपर्क में आकर बहुत ख़ुशी हुई। विशेष दाद के लिए विशेष आभार।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 9, 2020 at 11:51am

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार। इस मंच को सलाम जो साहित्य प्रेमियों को आपस में जोड़ता है, अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी देता है, और सीखने के अवसर प्रदान करता है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
43 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
51 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई "
53 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आभार रक्षितासिंह जी    "
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"अच्छे दोहे हुए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी। एक ही भाव को आपने इतने रूप में प्रकट किया है जो दोहे में…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, दोहों पर उपस्थिति, और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
5 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, एक सार्वभौमिक और मार्मिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर प्रणाम,  आदरणीय"
8 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  हृदयस्पर्शी रचना ! हाल ही वह घटना मुझे याद आ गयी, सटीक शब्दों में मन को…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service