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तुरंत ' के चन्द विरही दोहे(११४ )

'तुरंत ' के चन्द विरही दोहे
=======================
वर्षा लाई देश में , जगह जगह पर बाढ़ |
प्रिय तेरे दर्शन बिना , शुष्क गया आषाढ़ ||
**
इधर विरह में सांवरे , गात हो रहा पीत |
इस बारी भी क्या हुआ , काम न पूरा मीत ||
**
पशु-पक्षी भी कर रहे , पिय के साथ किलोल |
अँसुअन बारिश झेलते , मेरे रक्त कपोल ||
**
दिन कटता गृह कार्य में , कठिन काटनी रात |
पल सुधियों के पीव की , बची सिर्फ सौगात ||
**
ग्रीष्म ताप तो हर गई , सावन की बरसात |
हृदय अगन कैसे बुझे , सोचूं मैं दिन-रात ||
**
नभ पर बदली देखकर , नाचे मस्त मयूर |
पद नर्तन कैसे करें , पिया रहे जब दूर ||
**
जब से पिय परदेश में ,चुप चुप है पाज़ेब |
खुशियों की बरसात पर , आ बैठा आसेब ||
**
आँगन बारिश नीर की , इधर बरसते नैन |
दो पल भी मिलता नहीं , मेरे मन को चैन ||
**
गर्म तवे पर ज्यों करे , जल छन छन आवाज़ |
दग्ध बदन पर बज रही , बरखा बनकर साज़ ||
**
क्यों कर अब सिंगार से , रखना प्रियतम मोह |
वर्षा की रुत में अगर , सहना पड़े विछोह ||
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 2, 2020 at 3:33pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी , 

इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये दिल से आभार एवं नमन | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2020 at 7:47am

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

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