ग़ज़ल (1222 *4 )
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उमड़ता जब हृदय में प्यार कविता जन्म लेती है
प्रकृति जब जब करे शृंगार कविता जन्म लेती है
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नहीं देखा अगर जाये किसी से जुल्म निर्धन पर
बने संघर्ष जब आधार कविता जन्म लेती है
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हुआ विचलित अगर मन है किसी भी बात को लेकर
गलत जब हो नहीं स्वीकार कविता जन्म लेती है
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कभी पीड़ा हुई इतनी हुआ सहना जिसे मुश्किल
बहे जब आँसुओं की धार कविता जन्म लेती है
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नयन देखे कहीं पर खूबसूरत नायिका अप्रतिम
लगें बजने हृदय के तार कविता जन्म लेती है
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ज़रूरी हो गया सरकार की करतूत पर लिखना
बने जब जब क़लम तलवार कविता जन्म लेती है
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बसंती हो गया मौसम चली होली की' पिचकारी
मनाते जब भी' हम त्यौहार ,कविता जन्म लेती है
***
उड़ानें नित्य सपनों की नहीं संभव कि हों पूरी
सपन होते कभी साकार कविता जन्म लेती है
***
'तुरंत' अब तक यही देखा दुखों की हो विदाई जब
खुशी के पल मिलें दो चार कविता जन्म लेती है
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भाई रामबली गुप्ता जी , उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार , मेरे विचार में शब्दों के हेर फेर से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है कथ्य वही का वही रहेगा | जब की जगह तब तो क़तई आवश्यक नहीं ,क्योंकि जब ही कथ्य को स्पष्ट कर रहा है |
सुंदर सर्जना के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय
कुछ जगह मुझे लगा शब्दों को बदला जाना चाहिए जैसे-
बने संघर्ष जब<तब
हुआ विचलित अगर मन है<अगर विचलित हुआ है मन
बहे जब आसुओं की धार<बहे तब आसुओं की धार
सपन होते कभी साकार< सपन हों जब कभी साकार
देखें जरा एक बार
पाठकीय टिप्पणी मात्र समझें
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी , उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत जी, आदाब।
सुन्दर रचना हुई है बधाई स्वीकार करें। सादर।
आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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