नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात
हरियाली उपहार में, देती है ब रसात।१।
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हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल
रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।
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धरती के दुख से हुई, अँधियारी हर भोर
बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।
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जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात
सौंधी मिट्टी की महक, उठती है दिन-रात।४।
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वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर
बौराए घन नापते, पलपल नभ का छोर।५।
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मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के मनमीत
बजा बोलता मोर नित, झींगुर को संगीत।६।
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पहली बारिश की भले, धीमी रही फुहार
लेकिन उससे कट गयी, हर कच्ची दीवार।७।
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पहली बारिश याद कर, फिर से भीगी आँख
पर विरहन कैसे उड़े, मिले नहीं जब पाँख।८।
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भीगी मिट्टी की महक, नित्य बढ़ाये प्यास
सावन सूखा रह गया, क्या भादौ से आस।९।
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भीगे जो बरसात में, विविध कह रहे बोल
हम सूखे घर में रहे, द्वार न पाये खोल।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर
Comment
आ. भाई सुरेंद्र नाथ जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बरसात को विषय बनाकर बहुत बेहतरीन दोहे रचे हैं।बधाई स्वीकार कीजिये
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी। बेहतरीन दोहे।
भीगी मिट्टी की महक, नित्य बढ़ाये प्यास
सावन सूखा रह गया, क्या भादौ से आस।९।
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