जीवित रहने के लिए जीव,
रहता है जिस पर निर्भर।
आटे से बनती है जो और
गोल गोल जिसकी सूरत।।
सही पहचाने नाम है उसका,
कहते हैं सब रोटी।
मम्मी के हाथों की रोटी,
बड़े स्वाद की होती।।
भूखे को मिल जाए जो रोटी,
तो त्रप्ति उसको होती।
आत्मनिर्भर बनने के लिए,
कमानी पड़ती है रोजी रोटी।।
भूल ना जाना तुम ये बात,
जब भी पकाओ तुम रोटी।
सबसे पहले गाय की रोटी,
और अंत में कुत्ते की रोटी।।
मानव की मूल आवश्यकताओं में,
एक जरूरत होती रोटी।
विनती यही है प्रभु से मेरी,
मिलती रहे सबको हक की रोटी।।
Comment
Ji bilkul,abhi app ko samajhne ki koshish kar rahi hoon
आ. नीता जी, सादर अभिवादन । एक अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
साथ ही निवेदन है कि अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर सक्रियता के साथ उपस्थिति दर्ज कराने की परम्परा का भी निर्वहन करें । सादर
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