मापनी
२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२
पकड़ा किसी का हाथ तो छोड़ा नहीं कभी.
जोड़ा जो रिश्ता प्यार का तोड़ा नहीं कभी.
महँगा पड़ा है झूठ से लड़ना हमें मगर,
घुटनों को उसके सामने मोड़ा नहीं कभी.
जितनी थी भूख चुग लिए दाने यहाँ वहाँ,
चिड़िया ने पेट के लिए जोड़ा नहीं कभी.
रस्ता पकड़ के एक मैं चलता चला गया,
जोड़ा है सबको धर्म पे फोड़ा नहीं कभी
अंदर हृदय में प्रेम का जगना कठिन न था,
हमने ही उसके दिल को झिंझोड़ा नहीं कभी.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आपकी बारीक नजर को सलाम अरु हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर नमस्कार
आपकी विस्तृत समीक्षा पाकर अभिभूत हूँ
जल्दी में मापनी गलत लिख गयी है, आपने सही कहा
बाकी मैंने सुधार कर लिया है , इसी तरह मार्गदर्श करते रहिये सादर
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । हिन्दी शब्दों का सुन्दर प्रयोग करे हुए उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
शायद जल्दी में मापनी गलत लिख गयी है । मेरे हिसाब से
२२१/२१२१/१२२१/२१२ होनी चाहिए । सादर....
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।
//रस्ता पकड़ के एक मैं चलता चला गया,
जोड़ा है सबको धर्म पे फोड़ा नहीं कभी // जनाब इस शैर के सानी मिसरे की भाषा और शिल्प बेहतर कर सकते हैं :
"सबके दिलों को जोड़ा है तोड़ा नहीं कभी"
//अंदर हृदय में प्रेम का जगना कठिन न था,
हमने ही उसके दिल को झिंझोड़ा नहीं कभी.// जनाब इस शैर के ऊला मिसरे की ज़बान सानी से जुदा है, यूँ कर सकते हैं :
"दिल में जगाना प्यार तो मुश्किल न था मगर"
बसंत कुमार शर्मा जी आपने जो मापनी लिखी है उसकी एक बार फिर जाँच कर लें। सादर।
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